नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। उच्चतम न्यायालय ने ‘पेगासस’ जासूसी विवाद की जांच के लिए पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से जांच आयोग के गठन पर नाखुशी जाहिर करते हुए उसके कामकाज पर शुक्रवार को रोक लगा दी। न्यायमूर्ति एन. वी. रमना और न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने राज्य सरकार द्वारा न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता में गठित जांच आयोग के कामकाज पर तत्काल रोक लगा दी। इसके साथ ही पीठ लोकुर आयोग को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया।
याचिकाकर्ता स्वयंसेवी संस्था ‘ग्लोबल विलेज फाउंडेशन चैरिटेबल ट्रस्ट’ एवं अन्य की जनहित याचिकाओं पर संज्ञान लेते हुए शीर्ष अदालत ने नोटिस जारी किया। स्वयंसेवी संस्था ने शीर्ष अदालत से राज्य सरकार द्वारा गठित आयोग के कामकाज पर तत्काल रोक लगाने की मांग की थी। याचिकाकर्ता का कहना है कि उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की जांच के लिए 27 अक्टूबर को एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। ऐसे में राज्य सरकार की ओर से उसी मामले की जांच के लिए अलग आयोग गठित करना अनुचित है।
शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल सरकार का पक्ष रख रहे डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा कि राज्य सरकार ने मौखिक वचन दिया था कि वह अलग से आयोग का गठन नहीं करेगी करेगी। बावजूद इसके सरकार की ओर से आयोग का गठन किया गया और बताया जा रहा है कि जांच की जा रही है। इस पर श्री सिंघवी ने कहा कि सरकार उस आयोग के कामकाज में दखल नहीं दे रही। पीठ ने पश्चिम बंगाल की इस दलील को अस्वीकार कर दिया तथा नाखुशी जाहिर करते हुए आयोग के कामकाज पर रोक के साथ-साथ उसे नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा। उच्चतम न्यायालय ने विभिन्न याचिकाकर्ताओं की गुहार पर 27 अक्टूबर को पेगासस जांच के मामले में जांच के लिए एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति का गठन किया था।
क्या है मामला
याचिकाकर्ता स्वयंसेवी संस्था ने गुरुवार को विशेष उल्लेख के तहत पश्चिम बंगाल द्वारा गठित जांच आयोग के मामले में तत्काल सुनवाई करने का अनुरोध किया था। पेगासस विवाद प्रमुख विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, वकीलों, नौकरशाहों, कई मंत्रियों और सत्ता से जुड़े लोगों की इजरायली जासूसी सॉफ्टवेयर के जरिए मोबाइल पर हुई आपसी बातचीत अवैध तरीके से सुनने के आरोपों से जुड़ा हुआ है।
बताया जाता है कि लोकुर आयोग ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी, तृणमूल कांग्रेस नेता अभिषेक बनर्जी, वरिष्ठ वकील प्रशांत किशोर, दिल्ली पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना, बंगाल के मुख्य सचिव एच के द्विवेदी सहित 30 से अधिक लोगों को अपनी जांच में शामिल होने के लिए कहा था। शीर्ष अदालत ने कथित जासूसी के इस मामले में 27 अक्टूबर को एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। इसकी निगरानी का जिम्मा सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर वी रवींद्रन को सौंपा था।
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