फिल्म अभिनेता इरफान खान न केवल अपनी एक्टिंग के कारण प्रसिद्ध थे बल्कि धर्मों की विचारधारा को सही अर्थों में पेश करने व उसके साथ डटकर खड़े रहने का भी दम रखते थे। इसे कट्टर लोगों की संवेदनहीनता ही कहें कि इरफान की मृत्यु के बाद भी उन्हें इरफान की लोकप्रियता बर्दाश्त नहीं हुई और कुछ कट्टर लोगों ने उनके लिए अनुचित व अशोभनीय शब्दावाली का प्रयोग किया। लोगों की तंग सोच का इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे मरने के बाद भी किसी व्यक्ति से शत्रुता नहीं त्याग रहे। युद्ध में भी दुश्मन के शव का निरादर नहीं किया जाता।
दरअसल इरफान ने इस विचार को बुलंद किया था कि इस्लाम में आतंकवाद और हिंसा के लिए कोई जगह नहीं। इस्लाम प्यार, अमन व भाईचारे का संदेश देता है। इरफान ने अपने मजहब को लेकर आतंकवाद, रोजा और रमजान के संबंध में अपनी राय भी रखी और इसकी वजह से वो कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए। एक डिबेट के दौरान उन्होंने इस पर खुलकर बोला। 25 जुलाई 2016 को एक डिबेट में आतंकवाद के संबंध में पूछे गए सवाल पर उन्होंने इस्लामी संगठनों द्वारा किए जा रहे आतंकवादी हमलों की भर्त्सना करते हुए कहा, बहुत बड़ी संख्या में मुसलमान आतंकवाद की ऐसी हरकतों का विरोध करते हैं। मैंने जैसा इस्लाम समझा है उसका अर्थ शांति और भाईचारा है, आतंकवाद नहीं। जो लोग यह करते हैं, वो इस्लाम को समझ ही नहीं पाए हैं। इरफान खान ने बकरीद पर बकरों व अन्य पशुओं की क्रूर बलि पर आत्मचिंतन को बल दिया था। उन्होंने कहा था कि बकरे की कुबार्नी से पुण्य नहीं मिलता है। अपना अजीज छोड़ना ही कुबार्नी है। इसके साथ ही उन्होंने रोजा पर बयान देते हुए कहा था कि रोजा का मतलब भूखे रहना नहीं है। यह आत्मचिंतन के लिए है। यह भूखे मरने के लिए नहीं है। ये एक मेडिटेशन है। कुबार्नी की प्रथा जब शुरू हुई थी तब ये खाने का प्राथमिक स्रोत हुआ करता था। इसकी प्रथा इसलिए प्रचलित हुई ताकि लोगों में देने की भवना पैदा हो। यदि इरफान के विचारधारा को ऐतिहासिक नजरिए से देखें तब इस्लाम इंसानियत के लिए भाईचारे और समर्पण की बात करता है, जिसे सूफी लोग भारत में साबित कर चुके हैं।
बाबा शेख फरीद से लेकर बाबा बुल्ले शाह तक सूफीयत लोकप्रियता किसी धार्मिक या जातिगत सीमा की मोहताज नहीं थी। मुस्लिम लोगों के साथ करोड़ों हिंदू-सिखों में आज भी उनके प्रति श्रद्धा व सम्मान है। सूफी पंथ ने लोगों को ईश्वर के साथ और इंसान को आपस में जोड़ा है। सूफियत के कारण ही भारत में इस्लाम को इज्जत मिली। इस्लाम के अनुसार यदि किसी मुस्लमान का पड़ोसी भूख से मर जाता है तब ऐसे मुस्लमान की इबादत पर पानी फिर जाता है। नि:संदेह इरफान जैसे लोगों ने जिस इस्लाम की बात की थी उसकी प्रशंसा गैर-मुस्लिम भी करते हैं। यूं भी इरफान अपनी सद्भावना और भाईचारे के कारण हिंदूस्तान के करोड़ों दिलों में अपनी जगह बना गए हैं। अपने विरोध के बावजूद वे अपने विचारों पर अडिग रहे। प्रसिद्ध शख्सीयतों का जीवन, विचारधारा संप्रदायों के लिए प्रेरणदायक होती हैं। भारत में इरफान के विचार अमन व भाईचारे को मजबूत करेंगे। ऐसे विचार सदा समाज के लिए प्रेरणास्रोत बने रहेंगे।
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