सच्चे सतगुरु जी ने कुएं का खारा पानी वचनों से किया मीठा

Miracles of Shah Satnam Singh Ji

प्रेमी भूरा सिंह सेवादार गांव मलकाणा, तह. तलवंडी साबो, जिला बठिंडा (पंजाब) से लिखता है कि पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने किस प्रकार उनके गांव के कुएं का खारा पानी मीठा किया। उस अनोखे खेल का वर्णन इस प्रकार है :-

दिसंबर 1965 की बात है कि शहनशाह पूजनीय परम पिता जी ने मलकाणा गांव में सत्संग मंजूर किया। प्रेमी भूरा सिंह तथा उनके गांव की साध-संगत मिल-जुलकर सत्संग की तैयारी कर रही थी। उन्हीं दिनों गांव के कुछ शंकावादी जीवों ने प्रश्न उठाया कि यदि सच्चे सौदे वाले पूर्ण संत-महात्मा हैं तो हमारे गांव के कुएं का खारा पानी मीठा कर दें। सत्संग का दिन आ गया। पूजनीय परम पिता जी वाली दो जहान सच्चे पातशाह जी सत्संग फरमाने के लिए गांव मलकाणा पधारे। शहनशाह जी के वहां पहुंचने पर साध-संगत व प्रेमी भूरा सिंह सेवा-समिति वाले के परिवार ने बहुत ही खुशी मनाई क्योंकि उनका रहबर स्वयं चलकर आज उनके घर आ पहुंचा था।

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साध-संगत को उतारे वाले घर दर्शन देने के बाद सत्संग का प्रोग्राम शुरू करवा दिया। शहनशाह जी थोड़ी देर बाद सत्संग में विराजमान हुए। सत्संग में नाम देकर जब पूजनीय परम पिता जी वापिस अपने उतारे वाले घर आ रहे थे तो रास्ते में प्र्रेमी हाकम सिंह ने सच्चे पातशाह कुल मालिक के पास प्रार्थना की कि शहनशाह जी आप जी जाते-जाते अपने इस नादान बच्चे के घर भी जरूर पावन चरण-कमल डालकर जाएं जी। आप जी के घर पधारने से हमारे परिवार को आत्मिक शांति व आप जी का सच्चा प्यार मिलेगा। हाकम सिंह की अरदास परवान हो गई। शहनशाह जी साध-संगत के साथ जा रहे थे। रास्ते में एक वीरान कुआं था। अन्तर्यामी दाता जी एकदम उस कुएं के पास जाकर रूक गए।

शहनशाह जी ने कुएं की तरफ से हाथ से इशारा करते हुए फरमाया, ‘‘भाई! यह कुआं उदास क्यों है?’’ इस पर प्रेमियों ने बताया, ‘पूजनीय परम पिता जी! इसका पानी इतना खारा है कि इसे पीने से दस्त लग जाते हैं। इसलिए गांव वाले इसका पानी नहीं पीते।’ उस समय प्रेमियों ने दयालु पूजनीय परम पिता जी के पावन चरण कमलों में अर्ज कर दी, ‘शहनशाह जी इस कुएं का पानी मीठा हो जाए। सारे गांव वालों की बस यही इच्छा है।’ लेकिन मालिक तो बिना कहे ही वह कार्य करना चाहते थे। इसलिए पूजनीय परम पिता जी ने कुएं के बारे में बात चलाई थी।

दयालु दाता सच्चे पातशाह जी ने अपने नूरी मुखड़े से अपने आप को छुपाते हुए फरमाया, ‘‘भाई! हम तुम्हारे लिए बेपरवाह सार्इं शहनशाह मस्ताना जी महाराज के पास अरदास करते हैं, शायद तुम्हारी यह अरदास मंजूर हो जाए, इसका पानी तो जरूर मीठा हो जाएगा, परंतु तुम तो हाथों पर सरसों उगाने वाली बात करते हो।’’ शहनशाह सच्चे पातशाह जी सर्वशक्तिमान के पावन वचन तो हो ही गए थे, वह टल नहीं सकते थे। शहनशाह जी की मेहर से उस कुएं का पानी मीठा हो गया। गांव के शंकावादी लोग यह देखकर हैरान रह गए। कई वर्षों से वीरान से पड़े उस कुएं का पानी मीठा होने से गांववासियों के भाग्य जाग गए। घट-घट के जानणहार कुल मालिक जी ने गांव के लोगों की इच्छा को पूरा कर दिया। पूजनीय परम पिता जी के इस परोपकार के लिए सारे गांव वाले शहनशाह जी का लाख-लाख शुक्राना करने लगे।

सारा गांव अब भी उसी कुएं से पानी भरता है। यह कुल मालिक की दया मेहर का प्रत्यक्ष प्रमाण है। कोई भी जीव अब भी कुएं को आंखों से देख सकता है और गांववासियों से उसका इतिहास सुन सकता है। गांव वाले अब भी पूजनीय परम पिता जी की उस दया मेहर का अहसान मानते हैं। पूजनीय परम पिता जी ने गांव मलकाणा के लोगों के प्रबल प्रेम को देखते हुए वहां कई सत्संग फरमाए और बहुत से जीवों को नाम की अनमोल दात बख्शकर संसार सागर से पार किया। इस साखी से स्पष्ट होता है कि पूर्ण संत-महात्माओं के वचन अटल होते हैं। बेशक सारा ब्रह्मण्ड पलट जाए, परंतु संतों के वचन कभी भी नहीं पलटते।

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