‘याद-ए-मुर्शिद’ पर विशेष
संत-सतगुरू परमपिता परमात्मा के भेजे हुए अवतार होते हैं। सतगुरु जीवों को जन्म-मरण से रहित करने के लिए आते हैं। उनके चेहरे से रब्बी नूर का समुन्द्र हमेशा बहता है। संत प्रकृति के उसूलों को मानते हुए इस पंचतत्व भौतिक चोले को बदलते हैं, लेकिन उनका नूर जर्रे-जर्रे में झलकता है। पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने रूहानियत के इतिहास में नया मील पत्थर कायम करते साध-संगत पर महान परोपकार किया। आप जी ने पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को गुरूगद्दी बख्शिश करते ही यह पावन वचन फरमाए, हम थे, हम हैं और हम ही रहेंगे।
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भाव पहले पूजनीय बेपरवाह साईं शाह मस्ताना जी के रूप में भी और अब पूज्य गुुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के रूप में भी हम ही काम करेंगे। आज करोड़ों साध-संगत सैंट डॉ. एमएसजी के रूप में पूज्य हजूर पिता जी के प्रति अपार श्रद्धा, प्यार और सत्कार प्रकट करती है।
डेरा सच्चा सौदा की दूसरी पातशाही पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज का पूरा जीवन मानवता और इन्सानियत को समर्पित रहा है। आप जी ने लाखों जीवों का नशा और बुराइयां छुड़वाकर उनको नाम-शब्द के साथ जोड़कर उनका उद्धार किया। आप जी के पूजनीय माता-पिता जी के घर सब दुनियावी पदार्थ मौजूद थे, लेकिन संतान प्राप्ति की कामना अक्सर ही उनको सताती रहती थी। आप जी का अवतरण 25 जनवरी 1919 को श्री जलालआणा साहिब, तहसील कालांवाली, जिला सरसा (हरियाणा) में हुआ। आप जी के अवतार धारण करने से घर में एक रब्बी ज्योत आने का अहसास हुआ। आप जी के माता का नाम पूजनीय माता आस कौर जी और पूजनीय पिता जी का नाम सरदार वरियाम सिंह जी था। आप जी अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे।
आप जी बचपन से ही गरीबों के लिए दयालुता रखते थे। पूजनीय माता जी ने आप जी का नाम बचपन में सरदार हरबंस सिंह रखा। आप जी ने बचपन में इन्सानियत के भले के ऐसे कार्य किए जो आप जी को दूसरों से समाज में अलग दर्शाते थे, जिनमें गरीब परिवारों की बेटियों का विवाह करने में आर्थिक सहयोग करना, लोगों के लिए रोजगार के साधन उपलब्ध कराना, धार्मिक कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना। आप जी बचपन से ही अपने माता जी के साथ अक्सर डेरा सच्चा सौदा आते रहते थे और पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज से अपार रहमतें हासिल करते। बेपरवाह सार्इं जी के दर्शन करने के लिए आप जी के अंदर हमेशा एक अलग ही तड़प रहती।
एक बार दिसंबर 1953 में पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज गांव गदराना में सत्संग फरमाने के लिए पधारे हुए थे और उस समय आप जी उस गांव में अपने किसी रिश्तेदार के घर आए हुए थे। पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज जब सुबह के समय गांव की सैर कर रहे थे तो उन्होंने अपनी लाठी से एक पैड़ (पदचिन्ह)के ऊपर गोल दायरा बनाया और अपने साथ के सेवादारों को फरमाने लगे, ‘‘देखो भाई यह रब्ब की पैड़ है, इधर से रब्ब गया है।’’ लेकिन उस समय पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज की यह बात किसी के समझ में नहीं आई। 14 मार्च 1954 में आप जी को पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज से पवित्र नाम शब्द की अनमोल दात प्राप्त हुई।
छ सालों का समय बीतने के बाद पूजनीय बेपरवाह साईं शाह मस्ताना जी महाराज ने सेवादारों के हाथ आप जी को एक संदेश भेजते हुए फरमाया कि वह अपना घर गिराकर सारा सामान लेकर आश्रम में आ जाएं। आप जी ने साईं जी के पावन वचनों को सहर्ष स्वीकार करते हुए ज्यों का त्यों ही किया। बेपरवाह सार्इं जी ने आप जी की कड़ी परीक्षा लेते हुए आप जी के घर का सारा सामान गरीबों में बंटवा दिया। 28 फरवरी 1960 को पूजनीय बेपरवाह साईं शाह मस्ताना जी महाराज ने आप जी को डेरा सच्चा सौदा का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया और पावन वचन फरमाए, ‘‘हमने श्री जलालआणा साहिब वाले जैलदार सरदार हरबंस सिंह को सतनाम सिंह बना दिया है।’’
पावन वचन फरमाते हुए पूजनीय बेपरवाह साईं शाह मस्ताना जी महाराज ने दोनों जहानों की दौलत आप जी की झोली में डाल दी और आप जी को आत्मा से परमात्मा कर दिया। पावन गुरूगद्दी पर विराजमान होने के उपरांत आप जी ने दिन-रात एक करके गाँवों-शहरों में सत्संग फरमाए और लाखों लोगों को नाम-शब्द की अनमोल दात प्रदान की। सत्संगों के दौरान आप जी ने लोगों को नशा, माँसाहार, चरित्रहीनता, धार्मिक भेदभाव, जातपात, पाखंडों और अंधविश्वास से बचाने के लिए जागरूक किया। आपजी ने संदेश दिया कि परमात्मा एक है और सभी उसकी संतान हैं। प्रभु को प्राप्त करने के लिए पैसे, दान-चढ़ावे की नहीं सिर्फ सच्ची भावना व भक्ति की जरूरत है। आप जी को एक महान समाज सुधारक के तौर पर जाना जाने लगा। आप जी ने अनेक आश्रमों का निर्माण करवाया।
उत्तर प्रदेश के बागपत (बरनावा) आश्रम का निर्माण भी आप जी ने स्वयं करवाया। आप जी ने सरल भाषा में अनेक ग्रंथों की रचना की। आप जी ने गद्दी पर रहते हुए ही पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को डेरा सच्चा सौदा का उत्तराधिकारी घोषित किया। 23 सितंबर 1990 को पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को पावन गुरुगद्दी की बख्शिश करते हुए आप जी ने फरमाया, ‘‘हम थे, हम हैं और हम ही रहेंगे।’’ आप जी ने इशारा किया कि हम पूूज्य गुरु जी के रूप में हमेशा साध-संगत के अंग-संग रहेंगे। उस समय ही आप जी ने रूहानियत की दौलत पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की झोली में डाल दी।
पूजनीय परम पिता जी डेरा सच्चा सौदा रूपी बाग को सजा कर 13 दिसंबर 1991 को अनामी धाम जा समाए। भले ही सतगुरु का बिछोड़ा असहनीय होता है लेकिन पूजनीय परम पिता जी द्वारा फरमाए गए पावन वचन, ‘‘हम थे, हम हैं और हम ही रहेंगे’’ की रहमत के रूप में साध-संगत सैंट डॉ. एमएसजी के दर्शनों, वचनों पर चलते हुए रहमतों के समुंद्र दिन-रात लूट रही है। आप जी के जीवन के बारे में लिखना तो गागर में सागर भरने जैसा है। आप जी के जीवन से संबंधित अनेक ही ऐसी साखियां (वृतांत) हैं, जो कि आप जी के बचपन से ही रब्बी जोत होने का अहसास करवाती हैं।
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां जी के पावन नेतृत्व में आज डेरा सच्चा सौदा दुनिया भर में अपनी एक अलग पहचान बनाकर 147 मानवता भलाई के कार्य कर रहा है। हाल ही में समाज में बुरी तरह फैल चुके चिट्टे के प्रकोप के खिलाफ पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने ऐसी आवाज बुलंद की है कि लोग नशों और बुराईयों से पीछा छुड़वाकर राम-नाम से जुड़ने लगे हैं और समाज में बुराईयों का खात्मा होना शुरू हो गया है। अब वह दिन दूर नहीं, जब पूरा समाज नशों से तौबा कर राम-नाम के साथ जुड़ेगा। रवि गुरमा शेरपुर
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