पराली से प्रदूषण : तर्क, हठ व हकीकत

Hanumangarh News
Stubble Burning: फसल अवशेष जलाने पर होगी कार्रवाई, दो महीनों तक प्रभावी रहेगा प्रतिबंधित आदेश

बीते दिनों पंजाब के बरनाला में किसानों के भारी जनसमूह ने आर्थिक सहायता न मिलने तक पराली जलाने का निर्णय लिया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्णय के खिलाफ बरनाला में हुआ। सम्मेलन पराली के मामले में सबसे भारी इक ट्ठ था। यह बात महत्वपूर्ण है कि किसानों ने इस धारणा को तोड़ा है कि वे केवल अपनी जिद के कारण पराली जला रहे हैं। सम्मेलन के दौरान किसानों ने कृषि, कृषि-मशीनरी व देश के कुल प्रदूषण संबंधी तर्क व आंकड़े देकर यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि सिर्फ पराली ही प्रदूषण की एकमात्र वजह नहीं है।

किसानों ने पराली जलाने को अपनी मजबूरी बताया है। दरअसल किसानों के दर्द को समझने की भी जरूरत है। पंजाब की अमेरन्द्र सरकार स्पष्ट तौर पर इस बात की घोषणा कर चुकी है कि पराली जलाने पर किसानों के खिलाफ कार्रवाई धक्केशाही है वहीं दूसरी तरफ दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने की रिर्पोटों के साथ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के पराली न जलाने के निर्देशों के कारण केंद्र व राज्य सरकारों दरमियान टकराव के हालात पैदा हो सकते हैं। अगले वर्ष लोक सभा चुनावों व हरियाणा सहित पांच राज्यों में विधान सभा चुनावों के कारण राज्य सरकारें किसानों पर मामले दर्ज करने से गुरेज करेंगी परंतु प्रशासनिक स्तर पर खींचातानी का माहौल जरूर बन सकता है।

दरअसल बात किसी न किसी तरह इस सीजन को निकालने की नहीं बल्कि कृषि जैसे अहम मुद्दे का सफल व सर्व सहमति वाला हल निकालने की जरूरत है। केवल किसानों के वोट बैंक पर नजर रखने की नीति छोड़ कर वातावरण व कृषि की बेहतरी के लिए कोई सकारात्मक कदम उठाना होगा। इसके विपरीत केंद्र व राज्य सरकारें हाथ पर हाथ रख कर सिर्फ सुप्रीम कोर्ट व नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में शपथ पत्र देने तक सीमित हो गई हैं। पराली की खपत के लिए कोई तकनीक विकसित करने व प्रॉजैक्ट लाने की दिशा में सरकारें कागजी कार्रवाईयों से आगे नहीं बढ़ रहीं।

पंजाब व हरियाणा कृषि प्रधान राज्य हैं, जिनके अपने,विश्वविद्यालय हैं परंतु पराली के लिए इन संस्थानों ने कोई कारगर हल नहीं निकाला। उधर मध्य प्रदेश में एक रिसर्च संस्था ने पराली से दरवाजे, टाईलें, पेपर वेट व छतों का सामान जैसी वस्तुएं बनाकर आशा की किरण जगाई है। राज्य सरकार केवल केंद्र आगे हाथ फैलाने की बजाय खुद भी प्रॉजैक्ट लाने की पहल करे। किसानों को ढील देना या सख्ती करने की पैंतरेबाजी से निकल कर किसानों को पराली के लाभ देने का प्रयास करना चाहिए। इच्छा शक्ति के साथ काम किया जाये तो कुछ भी नामुमकिन नहीं।

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