पाकिस्तान की नई सरकार ने भारत की तरफ इशारा करते हुए पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने की बात कही है। प्रधानमंत्री इमरान खान के बाद विदेश मंत्री महमूद कुरैशी ने पाक की विदेश नीति में अमन, शांति व मित्रता पर बल दिया है। इन नेताओं के दावों को समय आने पर ही परखा जाएगा लेकिन फिर भी इस बयान से माहौल में तनाव जरूर कम होगा। हालांकि इमरान खान के सत्ता संभालने के बाद भी जम्मू-कश्मीर में बॉर्डर के नजदीक आतंकवादी गतिविधियां जारी हैं। यदि नई सरकार बीते सालों की हिंसा पठानकोट, दीनानगर व कश्मीर में सैनिक कैंपों पर हमले को दोनों देशों के संबंधों में बड़ा धब्बा मानती है तो शांति का रास्ता निकालना ही होगा। जहां तक इमरान की पाक सेना के साथ नजदीकी की चर्चा है यदि इमरान सेना के आगे झुकने की बजाय एक मजबूत नेता बनकर सेना को दिशा-निर्देश देने में सफल हो जाते हैं तो यह उनकी बड़ी उपलब्धि होगी। पिछले कई दशकों से पाकिस्तानी सेना के सरकार पर हावी होने व कश्मीर में हिंसा करने के आरोप लगे हैं। इन परिस्थितियों में यदि सेना अपनी पुरानी हरकतों को नहीं छोड़ती तब उसके पसंदीदा नेता (इमरान) की छवि भी खराब होना तय है। यूं भी इमरान 22 सालों बाद सरकार बनाने में सफल हुए हैं और जनता को बड़ी उम्मीद है कि वह पाकिस्तान को नई दिशा देंगे। पिछली सरकारों ने केवल अमेरिका से प्राप्त आर्थिक मदद से ही देश को चलाया था। आतंकवाद व भ्रष्टाचार के कारण देश बुरी तरह पिछड़ गया है। इन हालातों में आंतरिक स्थिरता के साथ-साथ पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध पाकिस्तान के लिए लाभप्रद होंगे। पाकिस्तान की पारंपरिक विदेश नीति के साथ उसका अपना ही ज्यादा नुक्सान हुआ है। दोगली नीति के कारण आतंकवादी राजनैतिक नेताओं की तरह रैली करने के साथ-साथ जेलों में खूब मौज-मस्ती कर रहे हैं। इमरान को पिछली सरकार की दोगली नीति का त्याग कर स्पष्ट व ठोस नीतियां अपनानी होंगी। आतंकवाद की पीठ थपथपाना पाकिस्तान के हित में नहीं। इमरान की सूझबूझ व स्वतंत्र कार्यशैली से ही पाकिस्तान को समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है।
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