पाक की जिद्द और नामोशी

Pakistan

कश्मीर के मामले में पाकिस्तान की जिद्द ही उसकी बदनामी का कारण बन गई है। संयुक्त राष्ट्र से लेकर मुस्लिम देशों के संगठन आर्गेनाईजेशन आॅफ इस्लामिक में पाकिस्तान को कोई मुंह नहीं लगा रहा। ताजा मामला सऊदीअरब का है। पाकिस्तान के साथ इससे बुरा क्या हो सकता है कि देश के सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा सऊदी अरब के शासक क्राउन प्रिंस को मिलने गए लेकिन उन्होंने मिलने से ही इंकार कर दिया। पहले रियाद द्वारा बाजवा को सम्मानित किया जाना था, वह भी कैंसल कर दिया गया। ऐसा इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ जब पाक के एक सर्वोच्च अधिकारी को दूसरे मुल्क से इस तरह बेइज्जत होकर वापिस लौटना पड़ा हो।

दरअसल सऊदीअरब ने पाकिस्तान को 6 अरब डॉलर का कर्ज की डील रद्द कर दी है और पहले जारी कर्ज को लौटाने तक तेल की सप्लाई बंद करने का निर्णय लिया है। इस निर्णय से पाक शासक बेहद परेशान हो गए हैं,। सऊदी अरब के प्रिंस ने पाकिस्तान के इरादों को भांपते हुए सख्त रास्ता अपना लिया है। पाकिस्तान हर मंच पर कश्मीर की दुहाई देकर भारत के खिलाफ अपनी मुहिम मजबूत बनाना चाहता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्थितियां पाक के खिलाफ हैं। पाकिस्तान धर्म का पत्ता खेलने से हिचकिचा नहीं रहा और कश्मीर मुद्दे को धार्मिक रंगत देने के लिए मुस्लिम देशों के संगठनों में अपने समर्थन में प्रस्ताव लाना चाहता है। हद तो तब हो गई जब पाक के विदेश मंत्री ने अपने स्तर पर ओआईसी का सत्र बुलाने की चेतावनी दे दी। यह अपने आप में सऊदी अरब का अपमान था।

इस मामले में भारत की कूटनीति काफी हद तक सफल होती नजर आ रही है। भारत सरकार ने पहले ही सऊदी अरब जैसे देश जिसका मुस्लिम देशों के संगठन में दबदबा है, के साथ अपने सम्बन्ध मजबूत कर लिए हैं। दरअसल मुस्लिम देश भी पाकिस्तान की नीतियों से अवगत हो चुके हैं और लगातार इस देश की मदद करने से पीछे हट रहे हैं। पाकिस्तान के लिए अब सही यही है कि तरक्की, खुशहाली व अमन-शांति की मजबूती के लिए बनाए गए अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भारत के खिलाफ जहर उगलने की बजाय संगठनों के वास्तविक उद्देश्यों के तहत काम करे। अमेरिका सहित अन्य विकसित देश कश्मीर मुद्दे को भारत-पाक का द्विपक्षीय मुद्दा करार दे चुके हैं बेहतर हो यदि पाकिस्तान आतंकवाद को पूरी तरह रोककर भारत के साथ बातचीत का माहौल बनाए। अमन-शांति के प्रयास करने से ही पाकिस्तान की भलाई है।

 

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