सार्क के सदस्य देश मालदीव ने भारत के पारम्परिक शत्रु पाकिस्तान के साथ ऊर्जा के क्षेत्र में समझौता कर भारत के लिए चिंता का नया द्वार खोल दिया हैं। मालदीव की सरकारी विद्युत कंपनी स्टेलको ने पिछले दिनों देश की ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने के लिए पाकिस्तान के साथ यह समझौता किया है। मालदीव में चीन के निरंतर बढ़ रहे प्रभाव से भारत पहले ही चिंतित है, ऐसे में पाक-मालदीव की जुगलबंदी से नई दिल्ली की परेशानी और बढ़ेगी। हेलीकॉप्टर और वर्क परमिट के मुद्दे पर जारी तनाव के बीच मालदीव ने पाकिस्तान के साथ ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में समझौता कर यह साफ कर दिया है कि मालदीव भारत के हितों से कोई सरोकार नहीं रखता है।
विशिष्ट भौगोलिक एवं सामरिक संरचना के चलते मालदीव भारत के लिए खासा महत्वपूर्ण है। तटीय प्रदेश केरल से केवल तीन सौ किमी की दूरी पर स्थित होने के कारण मालदीव जैसे देश में पाकिस्तान की पैठ बढ़ती है तो भारत को उत्तरी-पूर्वी राज्यों के साथ-साथ दक्षिण से नई सामरिक चुनौतियों का सामना करना पडेÞगा। हिन्द महासागार के रास्ते पश्चिम एशिया से चीन और पूर्वी एशिया की ओर जाने वाला मार्ग इसी द्वीप क्षेत्र से होकर निकलता हैं। इस क्षेत्र का उपयोग भारत व्यापारिक यात्राओं के लिए भी करता है, ऐसे में हिन्द महासागर में अपनी स्थिति मजबूत करने और दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए मालदीव के साथ मजबूत संबंध बनाए रखना भारत के लिए जरूरी भी है। साल 2000 में चीन द्वारा यहां सैन्यबेस बनाए जाने का मुद्दा भी उठा था। बीच में ऐसी खबर भी आई थी कि चीन ने तत्कालीक राष्ट्रपति अब्दुल गयूम के सामने पनडुब्बियों के सैनिक अड्डे के निर्माण हेतू कुछ द्वीपों के खरीद किए जाने का प्रस्ताव रखा है।
लेकिन भारत की कड़ी आपत्ति के चलते मालदीव चीन के प्रस्ताव पर आगे नहीं बढ़ा। देखा जाए तो मालदीव में भारत की नीति हमेशा से ही ढुलमुल रवैये वाली रही है । पड़ोसी पहले की नीति पर चलने वाली मोदी सरकार ने भी अपने चार साल के कार्यकाल में मालदीव की लगभग उपेक्षा ही की है। साल 2012 में भारत समर्थक मोहम्मद नशीद की लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार के विरूद्ध जब प्रदर्शनों और विरोध का सिलसिला शुरू हुआ तब नशीद भारत से सहयोग की उम्मीद लगाए हुए थे उस वक्त भारत ने नशीद का सहयोग करने के बजाए इसे मालदीव का आंतरिक मामला कहकर चुप्पी साध ली।भारत ने नाशीद की बर्खास्तगी की आलोचना करने के बजाए मोहम्मद वहीद हसन की सरकार को बधाई देकर न केवल नाशीद के जख्मों पर नमक छिड़का बल्कि मालदीव में हुए अलोकतांत्रिक सत्ता परिर्वतन पर भी अपनी मुहर लगा दी। इसी प्रकार जब मालदीव में कट्टरपंथियों द्वारा हिंदू संग्राहलय को तोड़ा गया तब भी भारतीय नेतृत्व चुप्पी साधे रहा। भारत की चुप्पी का परिणाम यह हुआ कि मालदीव ने भारत की नराजगी की परवाह किये बिना माले स्थित इब्राहिम नासीर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को विकसित किए जाने संबंधित समझौता बिना किसी कारण के रद्द कर दिया। पिछले दिनों भी मालदीव के एक अखबार ने भारत को सबसे बड़ा दुश्मन बताया और कहा कि पीएम मोदी मुस्लिम विरोधी हैं।
देखा जाए तो साल 2012 में नई सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही मालदीव में भारत विरोधी भावनाओं का विस्तार होने लगा है। मौजूदा राष्ट्रपति अबदुल्ला यामीन की कार्यशैली पूरी तरह भारत विरोधी रही है। यामीन के बारे में यहां तक कहा जा रहा है कि वह अपने देश में भारत की किसी तरह की भागीदारी पंसद नहीं करते हैं। पिछले दिनों उन्होंने भारतीयों के लिए वर्क परमिट जारी करना बंद कर दिया था जिसकी वजह से वहां उन परियोजनाओं का काम प्रभावित हो रहा है, जिसमें भारत की भागीदारी है। वर्क परमिट, डॉर्नियर सर्विलांस एयरक्राफ्ट और नौसेना के हेलीकॉपटर से जुड़े मुद्दों को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। डार्नियर सर्विलांस एयरक्राफ्ट की तैनाती के भारत के प्रस्ताव को यामीन सरकार द्वारा स्वीकार नहीं किए जाने के पीछे एक वजह पाकिस्तान को भी बताया जा रहा है। पाकिस्तान ने उसे इसी तरह के एयरक्राफ्ट मुहैया कराने का प्रस्ताव किया है। साल 2013 में भारत की ओर से उपहार में दिए गए दो धु्रव एडवांस लाईट हेलिकॉप्टर को रखने की समय सीमा बढाने से इंकार कर दिया था। यामीन ने इस साल के आंरभ में ही साफ कह दिया था कि भारत अपने हेलिकॉप्टर और पायलटों को वापस बुला ले।
पाक-मालदीव का ताजा ऊर्जा समझौता ऐसे वक्त में हुआ है, जबकि सटेलको की बहुत सी परियोजनाओं का संचालन चीनी कंपनियों द्वारा किया जा रहा है। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि मालदीव को पाकिस्तान के साथ समझौता करने की जरूरत क्यों आन पड़ी। दूसरा, पाकिस्तान वित्तीय रूप से भी मालदीव को किसी तरह की मदद पहुंचाने की स्थिति में नहीं है। उसके खुद की अर्थव्यवस्था अब तक के सबसे खराब दौर से गुजर रही है। ऐसे में मालदीव भारत की शर्त पर पाकिस्तान से संबंध बढ़ा कर वहां से क्या हासिल करना चाहता है? तृतीय, सबसे बड़ा प्रश्न समझौते के वक्त को लेकर उठ रहा है। मालदीव ने पाकिस्तान के साथ समझौता ऐसे वक्त में किया है जबकि भारत के न केवल पाकिस्तान के साथ बल्कि मालदीव के साथ भी संबंध अब तक के सबसे निचले स्तर तक पहुंच गए है। पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा उरी में किए गए आतंकी हमले के बाद जब भारत ने पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मेलन को रद्द करने की मांग की थी तो केवल मालदीव ही ऐसा देश था जिसने भारत के निर्णय का विरोध किया था। ऐसे विपरीत वक्त में पाकिस्तान के साथ मालदीव का बिजली समझौता भारत के लिए चिंता का सबब बन सकता है। भारत की चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि मालदीव का उपयोग पाकिस्तान भारत के खिलाफ जासूसी के लिए कर सकता है, जिससे इस क्षेत्र की सुरक्षा स्थिति और भी जटील हो सकती है।
उक्त हालात इस लिए भी चिंताजनक है क्यों कि संकट के समय भारत ने मालदीव की मदद की। साल 1988 में जब पिपुल्स लिबरेशन आगेर्नाइजेशन आॅफ तमिल इल्म से जुडे आतंकवादियों ने मालदीव पर हमला किया तो तात्कालिक राष्ट्रपति अब्दुल गयूम ने भारत सरकार से सहायता की याचना की। इस पर भारत सरकार ने ‘आॅपरेशन कैक्टस’ के तहत सेना भेजकर आतंकवादियों को खदेड़ने में मालदीव की मदद की है।उसके समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा के लिए भारत वहां नेशनल पुलिस एकेडमी के निर्माण में सहयोग कर रहा है। इसके अलावा समुद्री डाकुओं से सुरक्षा के लिए भारत ने वहां अपने युु़द्ध पोत तैनात कर रखे हैं। इससे पहले साल 2015 में भी मालदीव की संसद ने विदेशी नागरिकों को अपने देश में भूमि खरीदने संबंधी अधिकार देकर भारत के सामने एक तरह का खतरा पैदा कर दिया है। इस अधिकार के तहत कोई भी विदेशी नागरिक मालदीव की अर्थव्यवस्था में एक अरब डॉलर का निवेश करके भूमि का स्थाई मालिक बन सकता है। प्रर्यटन पर आधारित अर्थव्यवस्था होने के कारण मालदीव ने आयात-निर्यात नियमों में कई प्रकार की ढील दे रखी हैं। इसकी आड़ में जिहादी तत्व बेनामी व फर्जी कंपनियों के मार्फत मालदीव में धन एकत्रित करते हैं। बाद में इसी धन का प्रयोग श्रीलंका, केरल और तमिलनाडू में विध्वसंक गतिविधियों में किया जाता है।
इसे अलावा मालदीव में एक हजार से अधिक ऐसे द्वीप हंै, जो पूरी तरह निर्जन और विरान है। जिनकी निगरानी और सुरक्षा का कोई पुख्ता इंतजाम मालदीव सरकार ने नहीं कर रखा है। ऐसी स्थिति में भारत का चिंतित होना लाजमी है। कोई संदेह नहीं कि मालदीव से भारत के लिए सुरक्षा चुनौतियां लगातार बढ रही हैं। पाक-मालदीव के बीच बढ़ते संबंध भारत के सामने नई मुश्किल पैदा करेगे इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता है। फिर भी, इस तथ्य को नहीं भुलना चाहिए कि मालदीव सार्क का महत्वपूर्ण सदस्य है, दक्षिण एशिया में अगर भारत को अपना प्रभुत्व बनाए रखना है तो उसे हर हाल में मालदीव को साथ रखना ही होगा।
एन.के. सोमानी
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