आठ साल से किसानों को जागरूक कर रहे राजपाल सिंह
निसिंग (सच कहूँ न्यूज)। आधुनिक कृषि पद्धति के तहत डीएसआर विधि से धान की खेती करने वाले प्रगतिशील किसानों में गांव बस्तली निवासी चौ. राजपाल सिंह का नाम पहले स्थान पर आता है जो बीते आठ वर्षों से डीएसआर विधि अपनाकर धान की कृषि कर रहे हैं। इनके द्वारा कम खर्च पर धान की अच्छी पैदावार से प्रेरित होकर गांव व आसपास के किसानों ने भी इस विधि को अपनाना शुरू किया था।
राजपाल सिंह ने क्षेत्र के किसानों को धान की सीधी बिजाई के लिए प्रेरित किया। दुनार फूड्स प्रा.लि. की ओर से उन्हें नि:शुल्क डीएसआर मशीन भी मुहैया कराई गई।
खंड में चार मशीन होने के कारण इस विधि को अपनाने वाले क्षेत्र में अब सैंकड़ों किसान हैं। धान के सीजन में बिजली की किल्लत के चलते पानी की कमी व कृषि पर होने वाले अधिक खर्च को देखते हुए भी किसानों का रूझान डीएसआर विधि की तरफ बढ़ा। किसानों के हित में यह विधि सबसे कारगर सिद्ध होगी।
इससे फसल पर आने वाले अत्याधिक खर्च के साथ साथ 20 से 30 फीसदी पानी की बचत होगी। एडीओ डा राधेश्याम गुप्ता ने भी किसानों से अधिक से अधिक धान की रोपाई डीएसइआर विधि से करने की सलाह दी है ताकि कम खर्च पर फसल की पूरी पैदावार ली जा सके।
डीएसआर विधि से धान बिजाई के ये हैं फायदे
- इस विधि से धान की खेती करने से भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती है।
- कम खर्च पर फसल की अच्छी पैदावार।
- अधिक मात्रा में पानी की बचत।
- धान की शीघ्र बिजाई संभव, पौध लगाने के झंझट से छुटकारा
- भूमि के स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव, फसल में कीडेÞ एवं बिमारियों का कम प्रकोप
- कम खर्च पर रबी फसल की अच्छी पैदावार।
टूर पर मिले प्रगतिशील किसानों ने किया प्रेरित
राजपाल ने बताया कि वह थाईलैंड में किसानों के साथ टूर पर गया था। वहां किसानों के बीच कम पानी व कम लागत पर धान की अच्छी पैदावार देने वाली इस विधि के बारें में हुई बातचीत से प्रेरित हुआ।
जिसकी जानकारी अर्जित करने के लिए वह खंड कृषि कार्यालय पहुंचे। उनके परामर्शानुसार वह उचानी स्थित कृषि वैज्ञानिक डॉ. धर्मबीर यादव से मिले जिन्होंने इस विधि के बारें में उसे विस्तार पूर्वक बताया।
उनके सहयोग से उसे दुनार कंपनी द्वारा डीएसआर मशीन मिल पाई। तभी से राजपाल अपने खेतों में इस विधि के प्रयोग से कृषि करने लगा। आज राजपाल क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए प्रेरणा बनकर प्रशिक्षक की भूमिका निभा रहा है। अब क्षेत्र में सैंकड़ों एकड़ धान की रोपाई डीएसआर विधि से की जा रही है।
क्या आपको भी आ रही है खेती व पशुपालन में समस्या
अगर आप किसान हैं या किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं या फिर खेती के क्षेत्र में नए हैं या अभी खेती करने का मन बना रहे हैं, तो निश्चित ही आपके मन में एक नहीं बल्कि ढेरों सवाल उठते होंगे।
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-एग्रीकल्चर डेस्क
धान रोपाई से पहले ऐसे तैयार करें खेत
- कुरुक्षेत्र विज्ञान केंद्र के कृषि विशेषज्ञ डा. प्रद्युमन भटनागर ने दी अहम जानकारियां
इन दिनों किसानों ने धान की फसल को लेकर तैयारियां शुरु कर दी हैं। 16 जून से प्रदेशभर में धान की रोपाई का दौर शुरू हो जाएगा। रोपाई से पहले धान के बीज का उपचार किसानों के लिए सबसे जरूरी कार्य है।
कुरुक्षेत्र विज्ञान केंद्र के कृषि विशेषज्ञ डा. प्रद्युमन भटनागर ने सच कहूँ से विशेष बातचीत में बताया कि धान की नर्सरी बीजने से पहले खेतों में 10-12 गाड़ी कंपोस्ट खाद डालकर मिला दें। खेत तैयार करते समय बत्तर आने पर खेत को 2-3 जुताई करके खेत को अच्छी तरह तैयार कर लें। इसके बाद खेत में पानी भरकर कद्दू करें।
इसी समय 22 किलो यूरिया व 62 किलो सिंगल सुपरफास्फेट व 10 किलो जिंक सल्फेट प्रति एकड़ डालें व सुहागा लगाएं। सुहागा लगाने के 4-5 घंटे बाद जब रेगा बैठ जाए तो पहले से उपचारित व अंकुरित किया हुआ बीज 40-50 ग्राम प्रति वर्गमीटर के हिसाब से 2-3 सैंटीमीटर खड़े पानी में बीजेंं। पहले 7-8 दिन पनीरी में बहुत हल्का-हल्का पानी लगायें।
पौध शैय्या में खरपतवार नियंत्रण के लिए बिजाई के 1-3 दिन बाद 600 ग्राम सोफिट या 1.2 लीटर ब्यूटाक्लोर या सेटर्न या स्टा प को 60 किलोग्राम सूखी रेत में मिलाकर अंकुरित धान बोने के 6 दिन बाद प्रति एकड़ नर्सरी में डालें।
इससे 50 से 60 प्रतिशत खरपतवारों की रोकथाम हो जाती है। पानी शाम के समय लगाना अच्छा रहता है। 15 दिन बाद खरपतवार निकालकर 22 किलो यूरिया प्रति एकड़ डालें। अगर पनीरी में लोहे की कमी आ जाती है तो 0.5 प्रतिशत फेरस सल्फेट +2.5 प्रतिशत यूरिया का स्प्रे करें। बरसीम वाला खेत धान पनीरी बीजने के लिए अच्छा रहता है।
25-30 दिन में पौध खेत में लगाने योग्य हो जाती है। बासमती किस्मों की रोपाई 15 जुलाई से पहले कर दें। ऐसा करने से बदरा रोग का प्रकोप कम होता है।
रोपाई की विधि
धान की रोपाई जून माह के तीसरे सप्ताह में आरंभ कर लें। रोपाई सही फासले (15 संै.मी. *15 सैं.मी.) पर करें और एक स्थान पर 2-3 पौधे खडे पानी में रोपे। रोपाई के 6-10 दिन बाद पानी रोक दें ताकि पौधों की जड़ें विकसित हो जाएं।
छोटी बढ?े वाली बौनी किस्मों में रोपाई से पहले या कद्दू करते समय 44 किलो यूरिया, 50 किलोग्राम डीएपी या 150 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 40 किलोग्राम यूरेट आॅफ पोटाश एवं 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति एकड़ तथा लंबी बढ?े वाली किस्मों में 25 किलो डीएपी या 75 किलो सिंगल सुपर फास्फेट तथा 10 किलों जिंक सल्फेट प्रति एकड़ रोपाई से पहले कद्दू या लेव करते समय प्रयोग करें।
धान की बौनी किस्मों में 45 किलो यूरिया व लंबी किस्मों में 25 किलों यूरिया प्रति एकड़ रोपाई के 21 दिन बाद खेत में पानी कम करके छिंटे द्वारा प्रयोग करें। दूसरी मात्रा के समान तीसरी मात्रा रोपाई के 42 दिन बाद करें। इसके बाद फसल में खाद न डालें।
यदि फास्फोरस की खाद डीएपी से डाली गई हो तो बौनी धान की किस्मों में 20 किलो (रोपाई के समय)व लंबी धान की किस्मों में 10 किलो यूरिया प्रति एकड़ कम डालें। कल्लर वाले खेतों में 20 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति एकड़ प्रयोग करें।
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