पब्जी का कहर और लापरवाह अभिभावक

Pabji's havoc and careless guardian
पंजाब में एक सप्ताह में दो बच्चों की पब्जी गेम से मौत दर्दनाक व चिंतनीय विषय है। चिंता इस बात की है कि यह गेम धीमा जहर है, इस मामले में न तो समाज और न ही सरकारें कोई नोटिस ले रही हैं। कंपनियां और गेम्स खेलने वाले लोग पर्दे के पीछे रहकर अपने कारोबार के लिए बच्चों को खतरनाक मनोरंजन परोस रहे हैं। विगत वर्ष ब्लू व्हेल नाम की गेम के कारण कुछ बच्चों ने खुदकुशी की थी। लॉकडाऊन के कारण इन दिनों बच्चे घरों में रहने के कारण वीडियो गेम्स को टाईम पास करने का माध्यम समझकर इस्तेमाल कर रहे हैं।
वास्तव में ऐसी दुखद घटनाओं के लिए माता-पिता भी जिम्मेदार हैं जो बच्चों को न तो समय देते हैं और न ही उनकी केयर करते हैं। माता-पिता बच्चों को स्मार्टफोन पर गेम खेलता देखकर संतुष्टि महसूस करते हैं कि बच्चा उनसे न तो कोई वस्तु मांग रहा या न ही उन्हें परेशान कर रहा। वास्तव में ऐसी गेम्स खेलने से बच्चा मानसिक गिरावट की गहरी खाई में गिरता चला जाता है जहां से निकालने के लिए मां-बाप के पास न तो हिम्मत रह पाती है, न कोई युक्ति और न ही समय। यह गेम लगातार खेलने से मानसिक रूप से बच्चों के जहन में ऐसा कब्जा कर लेती हैं कि बच्चा घर-परिवार, आसपास और शिक्षा सब भूलकर तनाव में पहुंच जाता है। ज्यादा गेम खेलने से बच्चों के नाड़ी तंत्र व रक्त का प्रवाह में ऐसा परिवर्तन होने लगता है कि गेम्स में उतार-चढ़ाव से बच्चे के दिल की धड़कन व रक्त प्रवाह में आसाधारण परिवर्तन होने लगते हैं, जिसके कारण बच्चों की मौत हो जाती है। कुछ गेम्स तो टास्क ही खतरनाक देती हैं जैसे हाथों की नस काटनी, डरावनी फिल्म देखना, छत से छलांग लगाना, भड़काऊ संगीत सुनना और आखिर खुदकुशी करना। सही मायने में गेम्स खतरा या मौत नहीं देती बल्कि जीवन और खुशी देती है।
नि:संदेह हमें आरामतलबी छोड़कर शारीरिक गतिविधियों की ओर लौटना होगा और बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेवारियां समझनी व निभानी होंगी। तीन-चार दशक पहले विशेष रूप से गांवों में बच्चे स्कूल की शिक्षा से फुर्सत में घरों व खाली स्थानों में गिल्ली-डंडा, कबड्डी, सहित अनगिनत देशी गेम खेलते थे जिससे बच्चों में आपसी प्यार और समाज में मिलकर रहने के गुण सीख लेते थे। ऐसी गेम्स खेलने से बच्चों के दिल से दिमाग तरोताजा रहते हैं। थकावट व नीरसता खत्म हो जाती है। गेम खेलने से शारीरिक कसरत के साथ-साथ खुशी भी मिलती है। इलैक्ट्रॉनिक्स गेम्स बच्चों में हार का भय पैदा करती हैं जबकि पुरानी गेम्स में जीत और हार का एक जैसा प्रभाव होता था। सरकारों के साथ-साथ समाज को भी इस मामले में गंभीर होकर बच्चों को पुरानी गेम्स खेलने के साथ-साथ गांवों-शहरों में खेल के लिए जगह की व्यवस्था करने की आवश्यकता है अन्यथा पर्दे की दुनिया में खोया बचपन भावी जीवन की मुश्किलें बढ़ाता रहेगा।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।