आजकल हमारा जीवन सुपर फास्ट हो गया है। अभी मनुष्य के पास तरह तरह की हवा से भी अधिकं तीव्रगति की सवारियां और तरह-तरह के यान हैं। इन सब की तेज गति से भी लोग संतुष्ट नहीं हैं। कंप्यूटर के नामं से जो मशीन विज्ञान ने निकाली है, उसकी शक्ति, स्मृति और रफ्तार नित्य प्रति बढ़ती जा रही है। बटन दबाओ और सामने आ जाती हैं सारे ज्ञान-विज्ञान की चीजें। अब हमारे सारे ज्ञान-विज्ञान आसमान में बादलों की तरह विचरण कर रहे हैं। पाषाण युग से आधुनिक युग तक मानव की यात्रा में लाखों वर्ष लग गये। अब आज के मनुष्य में न वह धैर्य है और न समय। वाहनों की विकास यात्रा से हम मानव समाज की विकास यात्रा को बहुत हद तक समझ सकते हैं।
पहले लोग पैदल चलते थे। फिर उन्होंने तरह तरह के जानवरों को अपना वाहन बनाया जैेसे हाथी, घोड़ा,गधा, ऊंट, याक और बैल आदि। फिर गाड़ियां बनी जिनमें इन मवेशियों को जोता गया। फिर साइकिल युग आया, रेलगाड़ी का युग आया, तरह तरह के मोटर साइकिलें व मोटर गाड़ियां सड़कों पर दौड़ने लगी मगर आदमी की भूख इनकी रफ्तार से मिटी नहीं। उन्होंने हवाई जहाज बनाया, पानी में तैरने वाले यान बनाए मगर उनसे उनका मन नहीं भरा तो वह ऐसे-ऐसे राकेट बनाने लगा हैं कि मंगल, चंद्र तक जा पहुंचे हैं। उनकी खोज जारी है। अब वे सूर्य फतह करने की तैयारी में हैं। वे ऐसे हवाई यान बनाना चाहते हैं कि ब्रह्मांड में बसी अनेकों दुनियां से हमारी पृथ्वी का संबंध ऐसा बने कि धरती आकाश घर आंगन सा हो जाये।
विज्ञान ने हमें अपना विस्तार करने के बहुत रास्ते दिये हैं। जब सड़कों पर चलने वाली मोटर साइकिल जहाज की तरह आसमान में उड़ेगी। अब धरती पर चलने वाली रेलगाड़ी से बहुत आगे बुलेट टेÑन भारत में चलेगी जिस पर जापान के साथ मिलकर काम हो रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि आज के मनुष्य को आवाज से भी अधिक तीव्र गति से चलने वाले वाहन भले ही प्राप्त हो जायें मगर रफ्तार के मामले में उसकी भूख प्यास मिटने वाली नहीं है। मुझे लगता है कि आने वाले वक्त में मनुष्य के शरीर में ही कोई मशीन फिट होगी जिसके बटन दबाने पर ही आदमी चिड़ियों की तरह बड़ी तीव्र गति से आसमान में उड़कर अपने गन्तव्य स्थान में पहुंच जाएगा। उस समय हम एक नई दुनियां के नये आदमी होंगे।
आदमी के विकास की रफ्तार में इतनी तेजी आई है कि दुनियां उसकी मुट्ठी में आ गई है। वह पलक मारते ही एक बटन दबाने पर जिस देश को देखना चाहे, जिस व्यक्ति से मिलना चाहे, अपने बिछावन पर पड़े पड़े अपने मोबाइल के स्क्रीन पर सब कुछ देख लेते हैं। विज्ञान ने लोगों के हाथ में मोबाइल पकड़ा दिया है। हम भले ही घर बैठे बैठे अपने मोबाइल या टीवी पर भले ही सारा ब्रह्यांड देख लें मगर एक ही छत के नीचे रहने वाले अपने माता-पिता को देख नहीं पाते। उनके मोबाइल पर भले ही उनके यार-‘ दोस्त आ जाये। उनके घरों के जश्नों के दृश्य उनके मोबाइल पर भले ही आ जायें मगर उनके माता-पिता के चित्र न उनके हृदय में हैं और न उनके मोबाइल पर।
पहले परिवार का अर्थ होता था- दादा-दादी, माता-पिता, चाचा-चाची, भाई-बहन मगर अब सारी दुनियां को अपनी मुट्ठी में लेकर चलने वालों का यह बड़ा परिवार कहां खो गया, पता नहीं चलता है। अब परिवार का मतलब है मियां-बीवी और दो बच्चे बस। सरकार कहती है छोटा परिवार, सुखी परिवार मगर आप अखबारों के पन्ने उलट कर देखिये और अपने पड़ोस में रहने वाले पड़ोसियों के घर देखिये तो मालूम पड़ेगा कि छोटे परिवारों में भी आग लगी है। वहां भी कलह-क्लेश का ऐसा तांडव होता है कि कोर्टं में तलाक के ढेर बढ़ते जा रहे हैं। इस वैज्ञानिक युग में मानवता, नैतिकता, विश्वास, बंधुत्व, विश्व शांति आदि की बड़ी आवश्यकता है क्योंकि आज विज्ञान ने ऐसे ऐसे विध्वंसक बमों और हथियारों का जखीरा बड़े -बड़े देशों के पास लगा दिया है कि यदि वे आपस में कभी भिड़ गये तो सारी दुनिया जलकर राख हो जाएगी।
आइंस्टीन ने सच ही कहा था कि यदि कभी तीसरा विश्वयुद्ध हुआ तो आदमी उसी पाषाण युग में पहुंच जाएगा जहां उसने अपनी जीवन यात्रा प्रारंभ की थी इसलिए हम विज्ञान के विरोध में खड़े नहीं हैं। उनकी उपलब्धियों के प्रति अनुग्रहीत हैं मगर विज्ञान के भौतिकीय विकास और विस्तार के साथ साथ मानवता और उसके गुण ,प्रेम, सहानुभूति, करूणा, श्रद्धा, बंधुत्व,अपनत्व, उत्सर्ग, राष्टÑ प्रेम, समाज प्रेम, परिवार प्रेम एक दूसरे के प्रति सेवा सहयोग और उत्तदायित्व का भी विस्तार होना चाहिए जो हमारी फास्ट लाइफ में लुप्त होता जा रहा है। हम अतीत की मर्यादा और वर्तमान के उत्तरदायित्व से विमुख होने लगे हैं। आप टेÑन में कहीं यात्रा कर रहे हैं तो खिड़की से बाहर नजर दौड़ाइये तो देखियेगा कि रेलगाड़ी हवा की तरह आगे उड़ी जा रही है और उसी रफ्तार में पीछे की दुनियां पीछे छूटती जा रही है।
आज के जीवन के दर्शन और चिंतन मनन ने आधुनिकता के नाम पर एक ऐसे बौने आदमी का अवतरण हो रहा है जिसमें आदमियत और नैतिकता का अभाव है, उसमें स्वार्थ और नफरत की बारूद भरी है। कहने का तात्पर्य यह है कि विज्ञान जिस नये आदमी की परिकल्पना साकार करना चाहता है, उसमें हमारे प्राचीन मूल्यों और मर्यादाओं का कोई मेल नहीं है। संयुक्त परिवार से लघु परिवार निकला और लघु परिवार पानी के बुलबुले की तरह विलुप्त होने लगा है। पति अमेरिका में काम कर रहा है। पत्नी लंदन में काम कर रही है।
बेटा कनाडा में पढ़ रहा है। बेटी स्विटजरलैंड में पढ़ रही है। अब बतलाइये इसको हम कैसा परिवार कहें। जिस तरह विज्ञान रोज नये-नये अनुसंधान कर रहा है। वैसा अनुसंधान मानव शास्त्र और समाज शास्त्र में नहीं हो रहा है। आज आवश्यकता इस बात की है कि हमारा सुपर फास्ट लाइफ जिस रफ्तार से चाहे बढ़े मगर, उसका संबंध घर’-परिवार, समाज और देश व दुनियां से बना रहे क्योंकि इस संबंध से टूटा हुआ आदमी कुछ भी बन जाये मगर वह आदमी बनकर नहीं रह पायेगा।
-ज्योत्सना निधि