नदियों के लिए अंतराष्ट्रीय कार्रवाई दिवस पर सच कहूँ की विशेष कवरेज
Increasing Pollution in Rivers
नदियों के किनारे ही अनेक मानव सभ्यताओं का जन्म और विकास हुआ है। नदी तमाम मानव संस्कृतियों की जननी है। प्रकृति की गोद में रहने वाले हमारे पुरखे नदी-जल की अहमियत समझते थे। निश्चित ही इन्हीं कारणों के चलते उन्होंने नदियों की महिमा में ग्रंथों तक की रचना कर दी। भारत के महान पूर्वजों ने नदियों को अपनी माँ और देवी स्वरूपा बताया है। नदियों के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है, इस सत्य को वे भली-भांति जानते थे। इसीलिए उन्होंने कई त्यौहारों और मेलों की रचना ऐसी की है कि समय-समय पर समस्त भारतवासी नदी के महत्व को समझ सकें। नदियों से खुद को जोड़ सकें। नदियों के संरक्षण के लिए चिंतन कर सकें।
- नदियों की रक्षा के लिए आवाज उठाने और नदियों के लिए नीतियों में सुधार की मांग के लिए हर साल 14 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है। आईयें सच कहूँ की विशेष रिपोर्ट में जानते हैं कि हमारे देश में कितनी नदियां साफ हुई हैं और कैसे हम नदियों को साफ-सुथरा बनाने में योगदान दे सकते हैं।
चंडीगढ़ (सच कहूँ डेस्क)। अब जरा एक नजर नदियों की स्थिति पर भी डाल लेते हैं ताकि हम अपनी जिम्मेदारी को ठीक से समझ लें और उसे अधिक वक्त के लिए टालें नहीं, बल्कि तत्काल नदी संरक्षण में अपनी भूमिका तलाश लें। नदियां हमें जीवन देती हैं लेकिन विडम्बना देखिए कि हम उन्हें नाला बना रहे हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने अध्ययन में कहा है कि देश की 70 फीसदी नदियां प्रदूषित (Increasing Pollution in Rivers) हैं और मरने की कगार पर हैं।
इनमें गुजरात की अमलाखेड़ी, साबरमती और खारी, आंध्रप्रदेश की मुंसी, दिल्ली में यमुना, महाराष्ट्र की भीमा, हरियाणा की मारकंडा, उत्तर प्रदेश की काली और हिंडन नदी सबसे ज्यादा प्रदूषित हैं। गंगा, नर्मदा, ताप्ती, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, महानदी, ब्रह्मपुत्र, सतलुज, रावी, व्यास, झेलम और चिनाब भी बदहाल स्थिति में हैं। लोग काफी समय से सीवर, औद्योगिक कचरा, पॉलीथिन आदि डाल रहे हैं, जिस से आज भारत की नदियां दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषित हो गई हैं।
नदियां साफ-स्वच्छ होने की जगह और अधिक मैली | Increasing Pollution in Rivers
वैसे एनडीए की सरकार ने स्वच्छता को प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर रखा था। इसमें शौचालय निर्माण और राष्ट्रीय नदी गंगा की सफाई प्रमुख तौर पर शामिल थी। एशिया में गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना, आमूर, लेना, कावेरी, नर्बदा, सिंघु, यांगत्सी नदियां, अफ्रीका नील, कांगो, नाइजर, जम्बेजी नदियां, उत्तरी अमेरिका में मिसिसिपी, हडसन, डेलावेयर, मैकेंजी नदियां, दक्षिणी अमेरिका में आमेजन नदी, यूरोप में वोल्गा, टेम्स एवं आस्ट्रेलिया में मररे डार्लिंग विश्व की प्रमुख नदियां हैं।वहीं भारत सरकार ने करोड़ों रुपये जल और नदी के संरक्षण पर खर्च कर दिए हैं, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही है। नदियां साफ-स्वच्छ होने की जगह और अधिक मैली ही होती गई हैं।
समाज की भागीदारी को सुनिश्चत किया जाए | Increasing Pollution in Rivers
नदियों के संरक्षण के अभियान में अब तक समाज की भागीदारी कभी सुनिश्चित नहीं की गई। जबकि समाज को उसकी जिम्मेदारी का आभास कराए बगैर नदियों का संरक्षण और शुद्धिकरण संभव ही नहीं है। यह आंदोलन है, भले ही सरकारी योजना की शक्ल में है। हम जानते हैं कि समाज की सक्रिय भागीदारी के बिना कोई भी आंदोलन अपने लक्ष्य को नहीं पा सकता। ऐसा ही उदाहरण डेरा सच्चा सौदा की साध-संगत द्वारा ‘हो पृथ्वी साफ मिटे रोग अभिशाप’ के तहत किया जाता है। इसी अभियान के तहत हरिद्वार में 2012 में पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी के नेतृत्व में लाखों डेरा श्रद्धालुओं ने गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के लिए हजारों टन गंगा नदी में से कूड़े कचरे का मलवा निकाल कर आम जन को नदियों को स्वच्छ बनाने का संदेश दिया था।
वातावरण शुद्ध होगा तभी भगवान में ध्यान जमेगा
गंगा जी, जिसे गंगा मैय्या भी कहते हैं, लोगों की गंदगी दूर करती है, उसमें लोग सीवरेज, गंदे नाले और कचरा ड़ालते हैं, जो बेहद शर्म की बात है। जिस प्रकार आप अपनी माँ की गोद में गंदगी नहीं डालना चाहते, उसी भांति गंगा जी में गंदगी नहीं डालनी चाहिए। स्वच्छ वातावरण होना चाहिए, क्योंकि अगर वातावरण शुद्ध होगा तभी भगवान में ध्यान जमेगा, अगर चारों ओर गंदगी होगी तो कहां से ध्यान जमेगा।
ईश्वर की भक्ति से ही आत्मबल बढेगा, जो सफलता की कुंजी है। सरकारें सफाई को रखने के लिए जोर लगाती हैं, परंतु अगर जनता गंदगी फैलाती है तो सरकारें कहां तक प्रयास करेंगी? गंदगी को देखकर भारत में आने वाले विदेशी लोग इस देश को डर्टी (गंदा) कहते हैं, जिसे सुनकर बहुत पीड़ा होती है। भारत सारी दुनियां का गुरु देश कहलाता है, अगर सभी देशवासी अपने आसपास के इलाके की साफ-सफाई रखने के लिए जागरूक हो जाएं तो ऐसा सुनना न पडे।
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां
इन तरीकों से नदियां प्रदूषण से बच सकती
- अधिक से अधिक शौचालय स्थलों पर ही स्वच्छता सुविधा उपलब्ध करना और मल के उपचार और मल अपशिष्ट के पुन: उपयोग को बढ़ावा देना।
- मल मूत्र प्रबंधन के लिए वित्तीय निवेश और पर्याप्त कोष सुनिश्चित करना।
- स्थानीय स्तर पर ही सस्ती और केन्द्रीयकृत टैक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर सीवरेज का शोधन सुनिश्चित करना
- सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट से निकलने वाले शोधित अपशिष्ट को दोबारा इस्तेमाल करना या नदी में सीधे डालना।
- अशोधित सीवेज को ला रही उसी खुली नाली में शोधित अपशिष्ट को नहीं डालना चाहिए।
- एसटीपी से निकलने वाले शोधित अपशिष्ट को बाग बगीचों, झीलों या उद्योगों में पुनरुपयोग करना चाहिए।
- एसटीपी का निर्माण तब ही करना चाहिए, जब उससे निकलने वाले शोधित जल का फिर से उपयोग करने की योजना हो।
- शहर के बीचों बीच खुले नालों से निकलने वाले सीवेज को बायोरेमिडेशन तकनीक से शोधित किया जाए।
- एक नदी के सभी हिस्सों में पर्यावरणीय प्रवाह अनिवार्य किया जाना चाहिए।
- शहरों को पानी का इस्तेमाल कम करना चाहिए और पानी के लिए भुगतान करना चाहिए।
- जल संरक्षण तकनीक को सस्ता करना चाहिए और रिचार्ज जोन का संरक्षण किया जाए।
- नदियों को प्रदूषित करने वाली औद्योगिक इकाइयों पर कार्रवाई के लिए कड़े नियमों को लागू किया जाए
- प्रदूषण नियंत्रण करने वाली तकनीकों को प्रोत्साहित किया जाए।
देश के सभी जलाशयों की सफाई की जाए | Increasing Pollution in Rivers
36 में से 31 राज्य एवं केन्द्र शासित प्रदेशों से गुजर रही नदियों में प्रदूषण बढ़ रहा है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक 2015 में नदियों के 32 हिस्से (स्ट्रेच) प्रदूषित थे, जो 2018 में बढ़कर 45 हो गए। अनियोजित शहरीकरण के कारण नदी के किनारों पर अशोधित जल की मात्रा काफी बढ़ गई है। नदी का पानी पीने के लिए शहरों में भेजा जाता है और शहरों से सीवेज और औद्योगिक प्रदूषित पानी वापस नदी में पहुंच जाता है। ऐसे में, यह बेहद जरूरी हो गया है कि देश के सभी जलाशयों की तत्काल सफाई की जाए।
वहीं सीपीसीबी की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 521 नदियों के पानी की मॉनिटरिंग करने वाले प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक देश की 198 नदियां ही स्वच्छ हैं। इनमें अधिकांश छोटी नदियां हैं। जबकि, बड़ी नदियों का पानी भयंकर प्रदूषण की चपेट में है। जो 198 नदियां स्वच्छ पाई गर्इं, इनमें ज्यादातर दक्षिण-पूर्व भारत की हैं। नदियों की स्वच्छता के मामले में तो महाराष्ट्र का बहुत बुरा हाल है। यहां सिर्फ 7 नदियां ही स्वच्छ हैं, जबकि 45 नदियों का पानी प्रदूषित है। गंगा सफाई के लिए मिले डेढ़ हजार करोड़ खर्च ही नहीं हुए जिस कारण गंगा का हाल जस का तस बना हुआ है।
गंगा सहित अन्य नदियों के प्रदूषित होने का सबसे बड़ा कारण सीवरेज
मोक्षदायिनी श्री गंगा भी इससे अछूती नहीं है। माँ गंगा का आंचल उसके स्वार्थी पुत्रों ने कुछ जगहों पर इतना मैला कर दिया है कि उसके वजूद पर ही संकट खड़ा हो गया है। धार्मिक क्रियाकलापों से गंगा उतनी दूषित नहीं हो रही जितनी कि तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या, जीवन के निरंतर ऊंचे होते हुए मानकों, औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के हुए अत्यधिक विकास के कारण मैली हो रही है। गंगा सहित अन्य नदियों के प्रदूषित होने का सबसे बड़ा कारण सीवरेज है। बड़े पैमाने पर शहरों से निकलने वाला मल-जल नदियों में मिलाया जा रहा है जबकि उसके शोधन के पर्याप्त इंतजाम ही नहीं हैं।
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