मेहमानों की रक्षा हमारा दायित्व

Our responsibility to protect guests

न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अरडरन जारो-जार रो-रो रहीं थी और माफी मांग रहीं थी। वह दृश्य बेहद विचित्र था। मामला यह था कि इंग्लैंड की एक महिला न्यूजीलैंड के टूर पर गई थी तो संदिग्ध परिस्थिति में उसका शव बरामद हुआ, उसकी हत्या की आशंका जताई गई थी। प्रधानमंत्री जैसिंडा अरडरन का दिल इस घटना से बुरी तरह पसीज गया और वह कह रहीं थीं कि न्यूजीलैंड में ऐसा नहीं होना चाहिए था। न्यूजीलैंड विश्व भर में एक सुरक्षित पर्यटन स्थल के तौर पर प्रसिद्ध है। उक्त घटना पर सरकार ने केवल दुख ही नहीं व्यक्त किया बल्कि मेहमानों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाएने शुरू कर दिए। मृतक के परिवार को इस बात से सुकून तो मिला होगा कि उनकी बेटी के लिए न्यूजीलैंड दुखी है। यह हमारा ही देश है जहां आदमी की कोई कद्र-कीमत नहीं। विशेषकर राजनेताओं की नजर में यहां पता नहीं कितने ही अपने-पराए (विदेशी) हर साल अपराधियों का शिकार बनते हैं लेकिन किसी भी नेता के पास किसी मृतक के मां-बाप की आंखों से आंसू पोंछने तक का समय भी नहीं। महानगरों में विदेशी लोगों के साथ बुरा व्यवहार व धोखाधड़ी आम होती है।

कुछ साल पहले एक अफ्रीकी विद्यार्थी याननिक को पंजाब में कुछ शरारती व्यक्तियों ने इतनी बुरी तरह से पीटा कि वह कोमा में चला गया। आखिर दो साल बाद उसकी मौत हो गई लेकिन इस घटना को पंजाब से बाहर किसी को पता ही नहीं चला था। पुत्र का शव लेने पहुंचा उसका पिता मीडिया को यह कह रहा था कि उसने अपने पुत्र को भारत में पढ़ने के लिए भेजकर बहुत बड़ी गलती की है। संवेदनहीनता की इससे बड़ी मिसाल क्या हो सकती है कि इस घटना की राजनैतिक स्तर पर कोई ज्यादा निंदा ही नहीं की। इस मामले को राजनैतिक स्तर की बजाय प्रशासनिक स्तर पर ही निपटाया गया।

प्रशासन ने ही उक्त युवक के घायल होने की हालत में उसका इलाज करवाने व शव परिजनों को सौंपने तक प्रबंध किया। अफ्रीकी युवक की मौत हमारे पत्थर दिल राजनेताओं को न हिला सकी। हैरानीजनक बात है कि जो भारत निहत्थे व निदोर्षों की रक्षा के लिए जान की बाजी लगाने के लिए जाना जाता था, उसके नेताओं के पास किसी बहाने पर भी अब चुप है। यहां मृत्यु सस्ती व जीवन फालतू नजर आ रहा है। आए दिन देश के किसी हिस्से में दंगे फसाद होते हैं। मनुष्य की मृत्यु तो कोई बड़ी बात नहीं रह गई। मृतकों के परिवारों को कोई पूछता नहीं लेकिन राजनैतिक रैलियां, सभाओं में इन मामलों में दशकों बाद शब्दिक जंग जरूर होती है। यहां मृतक की उम्र, कद, रंग बाद में देखा जाता है लेकिन धर्म-जाति पहले। अपने-अपने धर्म के मारे गए व्यक्ति के लिए आवाज उठाई जाती है। विदेशी लोगों को ठगने की घटनाएं तो आम होती थी अब मारपीट व मौत की घटनाएं भी घट रही हैं। मेहमानों को सुरक्षा व सम्मान देकर ही हम देश की शान बहाल कर सकते हैं। हमें न्यूजीलैंड से काफी कुछ सीखने की जरूरत है।

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