बरनावा। पावन भंडारे की नामचर्चा में पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के अनमोल वचनों की रिकॉर्डिड वीडियो चलाई गई। पावन वचनों में पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि जैसा सबको मालूम है कि ये महीना सच्चे दाता, रहबर मालिक, बेपरवाह शाह सतनाम जी महाराज के अवतार माह के रूप में साध-संगत मनाती है। आप सबको मुर्शिद-ए-कामिल के पाक पवित्र अवतार माह की बहुत-बहुत मुबारकबाद, बहुत-बहुत आशीर्वाद। मालिक आपके घरों में बरकतें दे, आप दिन-दोगुनी रात चौगुनी मानवता, इन्सानियत में आगे बढ़ते जाएं, मालिक की तमाम खुशियों के हकदार बनते जाएं और मालिक की वो कृपा, दया-मेहर आपके ऊपर मूसलाधार बरसती जाए।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि सच्चे दाता रहबर इस पवित्र महीने में इस धरा पर आए। जीवों को सच का संदेश दिया। सच के राह पर चलना सिखाया और ये बताया कि आप राम, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब, किसी भी नाम से पुकारो, ये परमपिता परमात्मा का है। उस सुप्रीम पावर, उस गॉड का है, अल्लाह, ओम, हरि, उस मालिक का है। भाषा बदलने से मालिक नहीं बदलते। भाषा में हर वस्तु का नाम लगभग अलग होता है। पानी को जल, नीर, वाटर, वॉशर, आब, नीलू, नीरू, अनि आदि बहुत से नामों से पुकारा जाता है। लेकिन पानी का नाम बदलने से क्या पानी स्वाद या पानी का रंग बदल जाएगा? नहीं बदलता। तो सोचने वाली बात है कि जब पानी का नाम बदलने से पानी नहीं बदलता तो मालिक का नाम बदलने से वो मालिक कैसे बदल सकता है। नाम अलग-अलग लिए जाते हैं पर सबका मालिक एक है। हम सब एक हैं।
आपजी ने फरमाया कि भाषा अलग, पहनावा अलग, खान-पान अलग लेकिन परमपिता परमात्मा, अल्लाह, राम, गॉड, खुदा, रब्ब ने और किसी को कुछ भी अलग नहीं दिया। यह नहीं है कि एक धर्म वाले के सिंग उगे हों और एक के पूंछ, ऐसा कुछ नहीं है। मालिक ने सबको हाथ, पांव, नाक, मुंह , कान, दांत, हड्डियां, चर्बी यानि ऊपर लपेटा चमड़ा दिया, सब माँ के गर्भ से पैदा हुए हैं। ये नहीं कि जो ऊंचे बड़े वाला है वो आसमान से टपका हो। तो भगवान अल्लाह, राम ने कुछ अलग नहीं दिया। इसलिए हमारी जात आदमियत, इन्सानियत, मानवता, मनुष्यता है। ये एकता का संदेश पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी दाता रहबर ने दिया और अमल करना सिखाया और अमल करवाया। आज बेपरवाह जी के वचनों पर अमल करने वाले पूरी दुनिया में एक नहीं, सौ-हजार नहीं, लाख-करोड़ नहीं, बल्कि करोड़ों हैं। ये सतगुरु, मुर्शिद-ए-कामिल के वचनों पर अमल करने वाले लोग हैं, उनके मुरीद हैं, जिन्होंने इन्सानियत के इस रास्ते को अपनाया है। ये माना है कि हम सब एक हैं और हमारा मालिक एक है।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि लोग भाषा के नाम पर, जात-धर्म के नाम पर एक-दूसरे को लड़ाते हैं। जोकि बेहद गलत है। अपना उल्लू सीधा करने के लिए भोले-भाले लोगों को लड़ा दिया जाता है, अपना उल्लू सीधा करने के लिए लोग, लोगों को बुद्धू बनाकर मुर्गों की तरह आपस में लड़ा देते हैं और खुद खड़े तमाशा देखते हैं, नाजायज फायदा उठाते हैं। इसलिए ऐसे लोगों की बातों में कभी नहीं आना चाहिए। आपजी ने फरमाया कि आप कब से साथ रह रहे होते हैं, भाईचारा होता है, आपस में प्यार होता है, पता नहीं कौन कैसी आग या कान में कोई बात फूंकता है तो आपसी झगड़े-फसाद, खुद भाई ही भाई का दुश्मन हो जाता है। लोग दिमाग से काम नहीं लेते।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि कहने से तो भेड़ चलती है। कहते हैं कि एक भेड़ अगर कुंए में गिर जाए तो 10-15 साथ में जरूर गिर जाती हैं। उन्हें लगता है कि अंदर काफी खाने-पीने का सामान है। तो आप तो इन्सान, आदमी, मनुष्य हैं। आप किसी के कहने पर क्यों एक-दूसरे के कत्लोगारत पर उतर आते हैं। क्यों झगड़े-नफरतें फैलाने लगते हैं? दीवार से दीवार सांझी होती है, खेत से खेत सांझा होता है, अरे गलियां सांझी, बीच में बैठने की जगह सांझी, रिश्ते-नाते सांझे, आखिर क्या हुआ कि जरा सी बात पर भड़के और झगड़े शुरू, आखिर क्यों? क्योंकि उकसाने वाले भाग जाते हैं और आपका अकाज हो जाता है। इसलिए ऐसे लोगों की बात कभी न मानों, मुर्शिद ने यहीं सिखाया है कि रहना मस्त और होना होशियार चाहिए।
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