आज आम आदमी महंगाई के साथ खाद्य पदार्थो में हो रही मिलावट खोरी से खासा परेशान है। हमारे बीच यह धारणा पुख्ता बनती जा रही है कि बाजार में मिलने वाली हर चीज में कुछ न कुछ मिलावट जरूर है। लोगों की यह चिंता बेबुनियाद नहीं है। आज मिलावट का कहर सबसे ज्यादा हमारी रोजमर्रा की जरूरत की चीजों पर ही पड़ रहा है। खाने पीने के पदार्थो में मिलावट कोई नयी समस्या नहीं है। मिलावट और खराब उत्पाद बेचे जाने की खबरें आम हो चुकी हैं. साल-दर-साल इसका दायरा व्यापक होता जा रहा है। भारत में त्योहारी सीजन आते ही घर घर में मिठाइयां बननी शुरू हो जाती है और बाजारों में मिठाई की दुकानें सज्ज जाती है। दीपावली देश का सबसे बड़ा त्योहार है। दीपावली से पूर्व ही त्योहारों की श्रृंखला भी शुरू हो जाती है। त्योहारी सीजन शुरू होने के साथ ही मिलावटखोर भी सक्रिय हो जाते हैं जो सस्ती मिठाइयां तथा मावा बेचकर ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में आमजन के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते हैं। एक अनुमान के अनुसार बाजार में उपलब्ध लगभग 30 से 40 प्रतिशत समान में मिलावट होती है । खाद्य पदार्थों में मिलावट की वस्तुओं पर निगाह डालने पर पता चलता है कि मिलावटी सामानों का निर्माण करने वाले लोग कितनी चालाकी से लोगों की आँखों में धूल झोंक रहे हैं और इन मिलावटी वस्तुओं का प्रयोग करने से लोगों को कितनी कठिनाइयाँ उठानी पड़ रही हैं ।
आजकल के सबसे चर्चित मामले कोल्ड ड्रिंक्स को लेते हैं । हमारे देश में कोल्ड ड्रिंक्स में मिलाए जाने वाले तत्वों के कोई मानक निर्धारित न होने से इन शीतल पेयों में मिलाए जाने वाले तत्वों की क्या मात्रा होनी चाहिए, इसकी जानकारी सरकार तक को नहीं है । दरअसल कोल्ड ड्रिंक्स में पाए जाने वाले लिडेन, डीडीटी मैलेथियन और क्लोरपाइरिफॉस को कैंसर, स्नायु, प्रजनन संबंधी बीमारी और प्रतिरक्षित तंत्र में खराबी के लिए जिम्मेदार माना जाता है । कोल्ड ड्रिंक्स के निर्माण के दौरान इसमें फॉस्फोरिक एसिड डाला जाता है । फॉस्फोरिक एसिड एक ऐसा अम्ल है जो दांतों पर सीधा प्रभाव डालता है । इसमें लोहे तक को गलाने की क्षमता होती है । इसी तरह इनमें मिला इथीलिन ग्लाइकोल रसायन पानी को शून्य डिग्री तक जमने नहीं देता है । इसे आम भाषा में मीठा जहर तक कहा जाता है ।
मिठाइयों में ऐसे रंगों का प्रयोग हो रहा है, जिससे कैंसर का खतरा रहता है और डीएनए में विकृति आ सकती है। दवाओं में मिलावट तो मिलावट की सब सीमाओं को पार कर गई है । इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नकली दवाओं की समस्या और औषधि विनियमन पर गठित माशेलकर समिति ने नकली दवाओं का धंधा करने वालों को मृत्युदण्ड देने की सिफारिश की है। प्रश्न उठता है कि आखिर मिलावट के इस महारोग से निबटने के कानूनी रूप से क्या प्रावधान हैं? सच्चाई तो यह है कि समस्या की जड़ में देश में जरूरी मानकों का अभाव है। देश मे शायद ही ऐसी कोई चीज हो जो मिलावट न हो। मिठाइयों मे इस्तेमाल किये जाने वाला मावा शायद ही कहीं असली मिले। हर साल सरकार भी मिलावट रोकने की खानापूर्ति के लिए तैयार हो जाती है। समाचार पत्रों में मिलावट रोकने के विज्ञापन और समाचार रश्मि तौर पर जारी किये जाते है। त्योहार आकर चले जाते है और पीछे छोड़ जाते है मिलावट का जहर जो अगली दीवाली तक बच्चे से बुजुर्ग तक के स्वास्थ्य को डसता रहता है। अस्पतालों के चक्कर पर चक्कर काटना आपकी मजबूरी हो जाता है क्योंकि मिलावट का जहर आपके शरीर पर कहर बनकर टूटता है। और अन्ततोगत्वा आप ऐसी बीमारी के शिकार हो जाते है जहाँ से निकलना आपके लिए काफी दुष्कर होता है। आज स्थिति यह है कि सरकारी तंत्र की लापरवाही और मिलीभगत , संसाधनों का अभाव, केन्द्र-राज्य मे परस्पर सहयोग का अभाव, लचर दंड व्यवस्था का खामियाजा उपभोक्ता को चुकाना पड रहा है। मिलावटी चीजों के खाने से अगर कोई बीमार पड़ जाए तो बाजार में दवाइयां भी नकली बिक रही हैं। यानी आपके बचने के सभी रास्ते बंद। आज मिलावट का कहर सबसे ज्यादा हमारी रोजमर्रा की जरूरत की चीजों पर ही पड़ रहा है । संपूर्ण देश में मिलावटी खाद्य-पदार्थों की भरमार हो गई है । आजकल नकली दूध, नकली घी, नकली तेल, नकली चायपत्ती आदि सब कुछ धड़ल्ले से बिक रहा है। सच तो यह है अधिक मुनाफा कमाने के लालच में नामी कंपनियों से लेकर खोमचेवालों तक ने उपभोक्ताओं के हितों को ताख पर रख दिया है। अगर कोई इन्हें खाकर बीमार पड़ जाता है तो हालत और भी खराब है, क्योंकि जीवनरक्षक दवाइयाँ भी नकली ही बिक रही हैं । खाने के सामान में मिलावट एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। हमारे दैनिक प्रयोग में आने वाली वस्तुओं का आजकल शुद्ध और मिलावट रहित मिलना मुश्किल हो गया है। मिलावट का कहर सबसे ज्यादा हमारी रोजमर्रा की जरूरत की चीजों पर ही पड़ रहा है।
आज समाज में हर तरफ मिलावट ही मिलावट देखने को मिल रही है। पानी से सोने तक मिलावट के बाजार ने हमारी बुनियाद को हिला कर रख दिया है। पहले दूध में पानी और शुद्ध देशी घी में वनस्पति घी की मिलावट की बात सुनी जाती थी, मगर आज घर-घर में प्रत्येक वस्तु में मिलावट देखने और सुनने को मिल रही है। मिलावट का अर्थ प्राकृतिक तत्त्वों और पदार्थों में बाहरी, बनावटी या दूसरे प्रकार के मिश्रण से है। जनसामान्य की यह चिंता निराधार नहीं है। एक सर्वे के अनुसार भारत में खुले में जितनी चीजें बिकती हैं, उनमें करीब 64 प्रतिशत खाने-पीने की चीजों में मिलावट होती है। कई चीजों में तो हानिकारक केमिकल तक मिलाया जाता है। इनमें दूध, खाद्य तेल, दाल और सब्जियां शामिल हैं। इस सर्वे ने एक बार फिर ये साबित कर दिया है कि भारत में मिल रहे खाद्ध पदार्थों में मिलावट बहुत ही साधारण सी बात हो गई है। मार्केट सर्वे एजेंसी विनायक रिसर्च और उद्योग मंडल एसोचैम के अलग-अलग सर्वे में यह बात सामने आई है। विनायक रिसर्च की रिपोर्ट में कहा गया है कि खाद्य वस्तुओं की जांच में पाया गया कि 60 से 65 फीसदी खुले खाने-पीने के तेल में बड़े पैमाने पर मिलावट होती है। एसोचैम का कहना है कि भारत में मिलावट और जमाखोरी रोकने के लिए कानून तो है, मगर वे इतने प्रभावशाली नहीं हैं, जो ऐसे लोगों में खौफ पैदा करें। सामान्य तौर पर एक परिवार अपनी आमदनी का लगभग 60 फीसदी भाग खाद्य पदार्थों पर खर्च करता है। खाद्य अपमिश्रण से अंधापन, लकवा तथा टयूमर जैसी खतरनाक बीमारियाँ हो सकती हैं। सामान्यत रोजमर्रा जिन्दगी में उपभोग करने वाले खाद्य पदार्थों जैसे दूध, छाछ , शहद, हल्दी, मिर्च, पाउडर, धनिया, घीं, खाद्य तेल, चाय-कॉफी, मसाले, मावा , आटा आदि में मिलावट की सम्भावना अधिक है।
मिलावट एक संगीन अपराध है। सरकार ने खाद्य पदार्थो तथा अन्य सभी चीजों में मिलावट करना सरकार द्वारा कानूनी अपराध घोषित कर रखा है। इस पर नियन्त्रण स्थापित करने के लिए प्रभावी व्यवस्था भी बनाई गई है। खाद्य पदार्थों में मिलावट को रोकने के लिए खाद्य निरिक्षण, स्वास्थ्य निरिक्षण तथा अन्य बड़े प्रशासनिक अधिकारियो को सभी अधिकार दे रखे है। ये सभी अधिकारी कभी कभी तीज त्योहारों पर जांच पड़ताल करते है, छापे मारते है तथा अशुद्ध पदार्थों के नमूने लेकर प्रयोगशाला में भेजते है। अथवा न्यायालय में मुकदमा या चालान कर देते है। इसके लिए कोई कठोर कानून नहीं है, आजीवन कारावास जैसा कठोर दंड विधान नहीं है। सामान्यतया जुर्माना लिया जाता है या कुछ ले देकर मामला शांत हो जाता है। फलस्वरूप इस मिलावट कारोबार पर कठोरता से और पूरी तरह से नियन्त्रण नहीं हो रहा है। इसमे आम जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। मिलावट पर काबू नहीं पाया गया तो यह ऐसा रोग बनता जा रहा कि समाज को ही निगल जाएगा। मिलावट के आतंक को रोकने के लिए सरकार को जन भागीदारी से सख्त कदम उठाने होंगे।
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