बरनावा(सच कहूँ न्यूज)। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने यूट्यूब चैनल पर आॅनलाइन रूहानी मजलिस में राम-नाम का महत्व समझाते हुए ईर्ष्या, नफरत, अहंकार, अश्लीलता सहित बुराइयों से दूर रहने का आह्वान किया। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि मालिक की साजी नवाजी प्यारी साध-संगत जीओ। बहुत-बहुत आशीर्वाद, जी आया नूँ, सबको मालिक खुशियां बख्शे। परम पिता परमात्मा कण-कण, जर्रे-जर्रे में वास करने वाला, हर समय, हर पल, हर जगह, हर किसी को देखता रहता है। हर कोई, हर पल, हर समय उसे भी देख सकता है, पर जो बीच में खुदी की दीवार है, अहंकार की दीवार है, उसको गिराना लाजमी है।
जब तक इन्सान के अंदर अहंकार है, तब तक ओउम, हरि, ईश्वर, राम, अल्लाह, वाहेगुरू, गॉड, खुदा, रब्ब कण-कण में होता हुआ भी नजर नहीं आता। खुदी को मिटाना पड़ता है तो ख़ुदा नजर आता है। जब आप अपने अंदर से अहंकार को खत्म कर लोगे तो ही प्रभु परमात्मा मिल सकता है। ‘चाखा चाहे प्रेम रस, राखा चाहे मान, एक म्यान में दो खड्ग देखा सुना ना कान’ कबीर साहब जी के ये वचन है कि जिस तरह एक ही म्यान में दो तलवार नहीं आती, उसी तरह एक ही शरीर में अहंकार और प्रभु का प्यार इकट्ठे नहीं रह सकते। जब आदमी अपनी इगो, अपने अहंकार को बहुत ऊँचा कर लेता है, बहुत बढ़ा लेता है तो फिर प्रभु तक जाने के रास्ते में बहुत रूकावटें पैदा हो जाती हैं। क्योंकि इन्सान की सोच नीचे आती ही नहीं, दीनता-नम्रता भाती ही नहीं और जब तक दीनता-नम्रता नहीं आएगी, परमपिता परमात्मा के दर्शन हो नहीं सकते।
आॅर्गेनिक खाते थे तो बीमारियां नहीं थी
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि पहले होते थे ऑर्गेनिक, अभी कुछ डॉक्टर साहिबानों से बातें चल रही थीं कि पहले हम बात अपनी करेंगे, किसी और की क्यों? 1972-73 से 1978 की बात होंगी तो गाँवों में कोई डॉक्टर ही नहीं होता था। कोई जानता ही नहीं था कि बीमारी क्या है? फिर धीरे-धीरे झोले वाले डॉक्टर आरएमपी या जो भी हैं, वो क्या हैं, उनकी डिग्रियां तो पता नहीं, राम ही जाने, पर एक थैला सा जरूर होता है, इसलिए झोले वाला डॉक्टर बोला जाता है। तो कभी-कभार आने लगे किसी-किसी गाँव में। अदरवाइज ये था ही नहीं।
खान-पान इतना बढ़िया कि कोई बीमार होता ही नहीं था। हो लिया तो देसी नुस्खे होते थे, घर में ही ठीक। ज्यादा थकावट हो गई काम-धंधा करते गुड़ खाकर दूध पी लेते थे। फिर से लग जाता काम पर, पता ही नहीं चलता था। आज वाले गुड़ में भी नहीं पता कि क्या-क्या अड़ंगा पड़ा हुआ है? तब तो प्योर होता था, गुड़ को साफ किया जाता था भिंडी के पानी से, लॉकी के पानी से, हमारे भी वहां गन्ना वगैरहा होता था, गुड़ बनता था, तो ये चीजें हमने देखी कि ये है सही। आजकल मसाले बन गए हैं। कच्चे केले को पल में पक्का बना दिया जाता है, वो अभी पक्का नहीं हुआ होता, पहले ही पीला हो जाता है। अंदर से और ही गांठें सी निकलना शुरू हो जाती हैं। आप खाते हो बड़ा स्वाद लेकर और अंदर से गांठ सी बनी पड़ी होती है। तो कहने का मतलब खान-पान में जहर हो गया है, देखने में जहर हो रहा है, सुनने में जहर हो रहा है।
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