लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष सरकार से अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका में होता है। सरकार सही ट्रैक पर चले, और जनोपयोगी कार्यों में लिप्त रहे, इसकी चौकस निगरानी विपक्ष ही करता है। लेकिन ऐसा देखने में आ रहा है कि विपक्ष केवल सरकार की आलोचना करने को ही अपना धर्म मान बैठा है। आलोचना और समालोचना का मिश्रण लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष को मजबूती प्रदान करता है। लेकिन हमारे यहां विपक्ष सत्ता प्राप्ति की चाह में देश के आंतरिक, बाहरी और सुरक्षा से जुड़े कई मामलों में नकारात्मक रवैया अपनाये हुये है। ये बड़ी चिंता की स्थिति है। राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल पर विपक्ष खासकर कांग्रेस का व्यवहार आपत्तिजनक है। चीन से हमारे रिश्ते किसी से छिपे हुए नहीं है। ऐसे में चीन से जुड़े मामलों में कांग्रेस की बयानबाजी चीन का हौंसला बढ़ाने का ही काम करती है। लोकतांत्रिक व्यवस्था और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमें हमारे संविधान ने प्रदान की है, लेकिन सरकार की आलोचना के मायने ये नहीं होते कि ऊल-जलूल कुतर्क किए जाएं।
पिछले दिनों रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में सुरक्षा से जुड़े मसलों पर चीन के बारे में अपनी स्थिति साफ की। विपक्ष ने रक्षा मंत्री के बयान पर विश्वास करने की बजाय उस पर सवाल उठाने शुरू कर दिये। देखा जाए तो लंबे गतिरोध के बाद कम से कम एक क्षेत्र से चीनी सैनिकों की वापसी शुरू हुई है। निस्संदेह इस कदम से दोनों देशों के संबंधों में जमी अविश्वास की बर्फ पिघलेगी। भारत-चीन के बीच जारी नौ महीने के गतिरोध के बाद लद्दाख स्थित पैंगोंग झील के उत्तरी-दक्षिणी तट पर दोनों देशों के सैनिकों को हटाने पर बनी सहमति स्वागतयोग्य कदम ही माना जाएगा। राजनयिक और सैन्य स्तर पर कई दौर की बातचीत के बाद एलएसी पर तनाव का कम होना दोनों देशों के हित में ही है क्योंकि दोनों बड़े मुल्कों में टकराव विश्वव्यापी संकट को जन्म दे सकता था। युद्ध विनाश ही लाता है।
एक ओर जहां सरकार बड़ी सूझ-बूझ से सीमा विवाद जैसे अति संवेदनशील मुद्दों को डील कर रही है वहीं दूसरी ओर विपक्ष इस मामले में भी राजनीति करने से बाज नहीं आ रहा है। राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील मामलों पर अनाप-शनाप बयानबाजी की जा रही है। सर्वोच्च न्यायालय कई बार व्याख्या कर चुका है। बीती 14 फरवरी को पुलवामा का ‘शहादत दिवस’ भी राजनीति के साथ ही बीता। 2019 में उस मनहूस दिन सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकी हमला किया गया था, जिसमें कुल 44 जांबाज जवान ‘शहीद’ हुए थे। हमारी वायुसेना के रणबांकुरों ने 26 फरवरी को ही बदला ले लिया और पाकिस्तान की सीमा के भीतर घुसकर मिराज-2000 के 12 लड़ाकू विमानों ने बालाकोट पर हवाई मौत बरसाई। उस आॅपरेशन में करीब 300 आतंकी ढेर कर दिए गए।
चीन का हमारे देश के प्रति रवैया और नीति जगजाहिर है। 1962 में चीन की हरकतें आज भी भारतवासियों के मनोमस्तिष्क पर तरोताजा हैं। विस्तारवादी सोच का चीन पड़ोसी देशों की जमीन हड़पने से लेकर अपने वर्चस्व को बढ़ाने की हर चाल चलता है। ऐसे में चीन पैगोंग झील से वापस आने के लिए सहमत हो गया है, को भारत की विदेश और कूटनीति की बड़ी सफलता मानना चाहिए। चीन के सैनिक पैगोंग में दस महीने से अधिक समय तक रहे। उन्होंने सोचा था कि भारतीय सेना माइनस डिग्री तापमान में नहीं रह पाएगी। भारत ने वहां 50000 सैनिकों को तैनात किया है और उन्हें उच्च गुणवत्ता के बहुत अच्छे उपकरण प्रदान किए हैं तथा निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया। चीन ने हमारे निहत्थे 20 बहादुर सैनिकों को लोहे की सलाखों और अन्य अनधिकृत चीजों से मार डाला। जवाबी कार्रवाई में हमारे सैनिकों ने बिना हथियार के चीन के 45 सैनिकों को मार दिया। चीन यह देखकर दंग रह गया। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि भारत इतने बड़े साहस का काम कर सकता है। यह चीन के ऊपर हमारी बहुत बड़ी विजय थी।
चीन भी हमारे बफीर्ले और पहाड़ी इलाके में युद्ध नहीं चाहता, अब यह भी स्पष्ट हो रहा है। इस बात पर सहमति बनी है कि तनाव के दौरान इस क्षेत्र में हुए निर्माण भी हटाये जायेंगे। इस समझौते के आलोक में इस बात की उम्मीद जगी है कि देप्सांग व गलवान घाटी में बाकी विवादास्पद मुद्दों को सुलझाने की शीघ्र पहल होगी। भारत और चीन के बीच हाल के कुछ वर्षों में सीमा-विवाद की 22 आधिकारिक वातार्एं हो चुकी हैं। सन 2014 से अब तक प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच तकरीबन 18 मुलाकातें हो चुकी हैं! इनमें कुछ वन-टू-वन रहीं तो कई बहुस्तरीय सम्मेलनों के दौरान हुईं। मसला यह है कि सरकार बातचीत और शांतिपूर्ण तरीके से संवेदनशील मसलों को हल करने में विश्वास करती है।
पुलवामा की दूसरी वर्षगांठ पर ही आतंकी अपने नापाक इरादों में सफल नहीं हो पाये। आतंकी संगठन अल बद्र ने करीब 6.5 किलोग्राम विस्फोटक जम्मू बस अड्डे तक पहुंचा दिया था। बेशक बड़ी अनहोनी हो सकती थी। चार आतंकी गिरफ्तार किए गए हैं। बीते वर्ष 2020 में करीब 250 आतंकी हमले भारत ने झेले हैं। उनमें 62 जवान ‘शहीद’ हुए और 37 नागरिक भी मारे गए। इन आंकड़ों की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। विपक्ष की नकारात्मक राजनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दे पर उसके व्यवहार को देश की जनता बखूबी देख रही है। केवल विरोध करना ही विपक्ष का धर्म है तो फिर क्या कहा जाए। देश की सुरक्षा संयुक्त और साझा विषय होना चाहिए, कम से कम यहां सियासत करने से जरूर परहेज करना चाहिए।
–राजेश माहेश्वरी
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।