कृषि कानूनों का विरोध : ट्रैक्टर-ट्रालियों में 4 महीने का राशन लेकर 26 को दिल्ली कूच करेंगे किसान

Opposition to agricultural laws Farmers will travel to Delhi on 26th of 4 months ration in tractor-trolleys

रामलीला मैदान में दिया जाएगा अनिश्चितकालीन धरना ( Agricultural Laws)

सच कहूँ/नवीन मलिक रोहतक। केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नए ( Agricultural Laws) कृषि कानूनों का लगातार विरोध कर रहे किसानों ने अब आर-पार की लड़ाई लड़ने का मूड बना लिया हैं। भारतीय किसान यूनियन अंबावता के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष अनिल नांदल ने सरकार को चेतावनी देते हुए बताया कि तीन कृषि बिलों के विरोध में 26 नवंबर को दिल्ली मार्च के तहत रामलीला मैदान में अनिश्चितकालीन धरना-प्रदर्शन किया जाएगा, जिसमें देशभर के किसान भारी संख्या में शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि अब किसान, मजदूर, कर्मचारी व व्यापारी सरकार को सबक सिखाने के लिए तैयार है।

उन्होंने बताया कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ आगे की रणनीति तय करने के लिए गत दिनों किसान भवन में हुई बैठक में किसान संगठनों ने हर हाल में दिल्ली कूच करने का फैसला लिया है। साथ ही किसानों से अपील भी की गई है कि ट्रैक्टर-ट्रालियों में चार माह का राशन साथ लेकर निकलें। वहीं देश की राजधानी से जुड़ने वाले प्रमुख मार्गों कुंडली बार्डर, जयपुर-दिल्ली हाईवे, आगरा-दिल्ली हाईवे, रोहतक-हिसार-दिल्ली हाईवे तथा बरेली-दिल्ली हाईवे के जरिये दिल्ली पहुंचा जाएगा। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यदि उन्हें राजधानी में नहीं घुसने दिया जाता है तो दिल्ली जाने वाली सड़कों को जाम कर दिया जाएगा।

अनिल नांदल का केंद्र सरकार पर तीखा हमला

अनिल नांदल ने कहा कि केंद्र सरकार कह रही है कि हम मंडियों में सुधार के लिए यह कानून लेकर आए हैं, लेकिन सच तो यह है कि कानून में कहीं भी मंडियों की समस्याओं के सुधार का जिक्र तक नहीं है। नांदल ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि हर बदलाव को सुधार नहीं कहा जा सकता है, यह विनाश का कारण भी बन सकते है। देश ने ऐतिहासिक सुधार के नाम पर नोटबंदी को झेला और भयावह परिणाम देखने को मिले। इस एक कदम से लाखों नौकरियां और सैकड़ों जिंदगियां खत्म हो गई । जीएसटी को भारत की आर्थिक आजादी के रूप में दिखाया गया। दो फीसदी जीडीपी बढ़ाने का दावा किया गया।

जीएसटी आधी रात में आ तो गया, लेकिन कभी जीडीपी को ऊपर नहीं बढ़ा पाया, इसके विपरीत यह अर्थव्यवस्था को और नीचे लेकर चला गया। साथ ही कोविड-19 से लड़ने के नाम पर पूरे देश में महज 4 घंटे के नोटिस पर लॉकडाउन किया गया और 21 दिन की अभूतपूर्व लड़ाई बताई गई। कोरोना तो खत्म नहीं हुआ, लेकिन हजारों प्रवासी मजदूरों की जिंदगियां देश की सड़कों पर खत्म हो गई । अब इतिहास बनाने के नाम पर किसानों को चुना गया है। कृषि सुधार के नाम पर किसानों को निजी बाजार के हवाले कर रही है, जिसे किसी कीमत पर बर्दाशत नहीं किया जाएगा।

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