नई दिल्ली (एजेंसी)। ऑपरेशन ब्लू स्टार की 34वीं बरसी 6 जून को है। इसके मद्देनजर स्वर्ण मंदिर के आसपास सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। ऑपरेशन ब्लू स्टार अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से अलगाववादियों को खाली कराने का अभियान था, जो बीते 3 वर्षों से वहां डेरा जमाए बैठै थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर सेना का यह ऑपरेशन मुख्य तौर पर 3 से 8 जून 1984 तक चला. हालांकि, इस अभियान की रणनीति पर काफी पहले से काम शुरू हो चुका था।
तारीख-दर-तारीख जानिए ऑपरेशन ब्लू स्टार
1981: अमृतसर में सिखों के सबसे पवित्र गुरुद्वारे स्वर्ण मंदिर के पास अपने हथियारबंद साथियों के घेरे में भिंडरावाले छिपा बैठा था।
1981: पंजाब और असम में आतंकवादियों का मुकाबला करने की गुप्त गतिविधियों के लिए स्पेशल ग्रुप या एसजी नाम से एक और यूनिट तैयार की गई।
1982: डायरेक्टरेट जनरल सिक्योरिटी ने प्रोजेक्ट सनरे शुरू किया। उसने सेना की 10वीं पैरा/स्पेशल फोर्सेज के एक कर्नल को 50 अधिकारियों और सैनिकों की एक टुकड़ी गठित करने का काम सौंपा, जिसमें सभी भारतीय थे. इस तरह कमांडो कंपनी 55, 56 और 57 तैयार हुई। इस यूनिट को स्पेशल ग्रुप नाम दिया गया और यह रॉ के प्रमुख के मातहत काम करने लगी। स्पेशल ग्रुप को ऑपरेशन सनडाउन के लिए तैयार किया गया।
1983: भिंडरावाले ने हरमंदिर साहब को पूरी तरह अपना अड्डा बना लिया। इस साल के शुरू के दिनों में स्पेशल ग्रुप यानी एसजी नाम की एक गुप्त यूनिट से सेना के छह अधिकारियों को इजरायली कमांडो फोर्स सायरत मतकल के गुप्त अड्डे पर पहुंचाया गया। तेलअवीव के पास स्थित इस अड्डे पर इन सैनिक अधिकारियों को सड़कों, इमारतों और गाडिय़ों के बड़ी सावधानी से बनाए गए मॉडलों के बीच आतंक से लड़ने की 22 दिन तक ट्रेनिंग दी गई।
अप्रैल 1984: डायरेक्टर जनरल सिक्योरिटी ने पीएम इंदिरा गांधी को स्वर्ण मंदिर को दबोचने के लिए एक गुप्त मिशन के बारे में बताया, जो सैनिक हमले से कुछ ही कम था। उनका कहना था कि ऑपरेशन सनडाउन असल में झपट्टा मारकर दबोचने की कार्रवाई है. हेलिकॉप्टर में सवार कमांडो स्वर्ण मंदिर के पास गुरु नानक निवास गेस्ट हाउस में उतरेंगे और भिंडरावाले को उठा लेंगे।
ऑपरेशन को यह नाम इसलिए दिया गया कि सारी कार्रवाई आधी रात के बाद होनी थी, जब भिंडरावाले और उसके साथियों को इसकी उम्मीद सबसे कम होगी। लेकिन आम लोगों की मौत की आशंका से इंदिरा गांधी ने इस अभियान को हरी झंडी नहीं दी। ऑपरेशन सनडाउन के रद्द होने के बाद ब्लूस्टार की तैयारी हुई।
2 जून 1984: भारतीय सेना ने अंतरराष्ट्रीय सीमा सील कर दी. पंजाब के गांवों में आर्मी की 7 डिविजन तैनात कर दी गई. रात होते होते मीडिया और प्रेस को कवरेज करने से रोक दिया गया. पंजाब में रेल, रोड और हवाई सेवाएं सस्पेंड कर दी गईं। पानी और बिजली की सप्लाई रोक दी गई। विदेशियों और एनआरआई की एंट्री पर भी पाबंदी लगा दी गई।
5 जून, 1984: सुबह होते ही हरमंदिर साहिब परिसर के भीतर गोलीबारी शुरू हुई। सेना की 9वीं डिविजन ने अकाल तख्त पर सामने से हमला किया. रात में साढ़े दस बजे के बाद काली कमांडो पोशाक में 20 कमांडो चुपचाप स्वर्ण मंदिर में घुसे। उन्होंने नाइट विजन चश्मे, एम-1 स्टील हेल्मेट और बुलेटप्रूफ जैकेट पहन रखी थीं. उनके पास कुछ एमपी-5 सबमशीनगन और एके-47 राइफल थीं। उस समय एसजी की 56वीं कमांडो कंपनी भारत में अकेला ऐसा दस्ता था, जिसे तंग जगह में लड़ने का अभ्यास कराया गया था। हर कमांडो शार्पशूटर, गोताखोर और पैराशूट के जरिए विमान से छलांग लगाने में माहिर था और 40 किलोमीटर की रफ्तार से मार्च कर सकता था. उनमें से कुछ ने गैस मास्क पहन रखे थे और ज्यादा असरदार आंसू गैस, सीएक्स गैस के गोले छोड़ने के लिए गैस गन ले रखी थीं।
6 जून, 1984: सुबह चार बजे के आसपास तीन विकर-विजयंत टैंक लगाए गए। उन्होंने 105 मिलिमीटर के गोले दागकर अकाल तख्त की दीवारें उड़ा दीं। उसके बाद कमांडो और पैदल सैनिकों ने उग्रवादियों की धरपकड़ शुरू की. सुबह छह बजे रक्षा राज्यमंत्री के.पी. सिंहदेव ने आर.के. धवन के निवास पर फोन किया. उन्होंने इंदिरा गांधी तक यह संदेश पहुंचाने को कहा कि ऑपरेशन कामयाब रहा, लेकिन बड़ी संख्या में सैनिक और असैनिक मारे गए हैं।
7 जून, 1984: सेना ने हरमंदिर साहिब परिसर पर प्रभावी कब्जा जमा लिया।
8 जून, 1984: तत्कालीन राष्ट्रपति जैल सिंह ने स्वर्ण मंदिर का दौरा किया. हालांकि, उनके साथ मंदिर गए एसजी दस्ते के कमांडिंग ऑफिसर, एक लेफ्टिनेंट जनरल किसी उग्रवादी निशानची की गोली से बुरी तरह घायल हो गए.
10 जून, 1984: दोपहर तक पूरा ऑपरेशन खत्म हो गया।
31 अक्टूबर, 1984: इंदिरा गांधी को उनके दो सिख अंगरक्षकों ने गोली मार दी थी।