स्कूल खोलने का मतलब है कोरोना महामारी को और बढ़ावा देना

Haryana Education Minister

गुरुग्राम के वकीलों ने कई पहलुओं को देखते हुए दी अपनी राय

गुरुग्राम/सच कहूँ ब्यूरो। कोरोना महामारी के बीच सरकार अब जुलाई माह से कुछ नियम कायदों के साथ स्कूलों को खोलने की योजना बना रही है। ये नियम कायदे तब धरे रह जाएंगे जब बच्चे आपस में मिल-जुलकर खेलकूद करेंगे। बच्चों पर कोई जोर जबरदस्ती नहीं की जा सकती। अगर कहीं से भी एक बच्चे में भी कोरोना पॉजिटिव आ गया तो वह पूरे स्कूल को प्रभावित कर सकता है।
स्कूलों को शुरू करने के निर्णय को वापस लेने की बातें अब उठ रही हैं। यहां की जिला अदालत में प्रैक्टिस कर रहे एडवोकेट हेमंत शर्मा का कहना है कि हरियाणा के शिक्षा मंत्री ने जुलाई माह में स्कूल खोलने का ऐलान को कर दिया है, लेकिन बढ़ती जा रही कोरोना माहमारी के बीच वे आखिर किस तरह से स्कूल खुलवा सकते हैं। स्कूलों में छोटे से लेकर बड़े बच्चों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा। ना तो वहां सोशल डिस्टेंस का पालन हो पाएगा और ना ही बच्चों के साथ सख्ती की जा सकती है। उन्होंने कहा कि शिक्षा माफिया के दबाव में आकर इस तरह का कदम नहीं उठाया जाना चाहिए। लॉकडाउन खोलने के बाद स्थिति कितनी बिगड़ी है, इससे सीख ले लेनी चाहिए। अभी तो बच्चे घरों में हैं। जब वे ऑटो, रिक्शा, बसों में बैठकर घर से स्कूल तक का सफर करेंगे तो उनमें कोरोना फैलने का खतरा बना रहेगा। हो सकता किसी टीचर से उन्हें कोरोना हो जाए या फिर बस, कार, ऑटो, रिक्शा चालक से हो जाए।
एडवोकेट परमिंद्र सिंह यादव का स्कूल खोलने के निर्णय पर कहना है कि यह सरकार का निर्णय हमारी अगली पीढ़ी को खतरे में डालने वाला है। एक साल की शिक्षा किसी के जीवन से बढ़कर नहीं हो सकती। यह बात सरकार समझ क्यों नहीं रही। जब पूरी दुनिया इससे प्रभावित है तो फिर क्यों हम मौके की नजाकत को समझ नहीं पा रहे। सरकार को चाहिए कि स्कूल, कॉलेजों को अभी बंद रखे। क्योंकि वहां पर सोशल डिस्टेंसिंग की समस्या भी बनी रहेगी। क्लासरूम में अगर एक बेंच छोड़कर बिठाया जाएगा तो आधी क्लास ही बाहर हो जाएगी। उसके लिए अलग से कुछ प्रबंध होंगे। मतलब शिक्षण संस्थानों के लिए यह काम मुश्किल हो जाएगा। सरकार को चाहिए कि कम्युनिटी में फैल रहे संक्रमण से निपटने के प्रयास करें। स्कूल, कॉलेजों की ओर ध्यान ना दे। जान है तो जहान है।

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