मताधिकार का प्रयोग कर हर नागरिक गर्व महसूस करता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपनी सक्रिय भागीदारी दर्ज कराने का सर्वोत्तम तरीका है-मतदान करना। यह हमारा न सिर्फ प्रमुख राजनैतिक अधिकार है, अपितु एक नैतिक कर्तव्य भी है। इस अधिकार का जितना अधिक और वाजिब प्रयोग होगा, लोकतंत्र उतना ही प्रस्फुटित और परिपक्व होगा। दरअसल एक लोकतांत्रिक गणराज्य की असली ताकत उसके मतदाताओं में ही निहित होती है। मतदाता ही यह चयन करते हैं कि वह अपने ऊपर किसका शासन चाहते हैं। वहीं जो जनप्रतिनिधि उनकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरते, उन्हें सही समय आने पर सबक भी सीखा देती है। चुनाव में भाग लेकर मतदाता अपना और देश का भविष्य तय करते हैं। मतदाताओं का एक-एक वोट कीमती होता है।
सुधीर कुमार
भारत, विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक गणराज्य है। लिहाजा, अनायास ही कभी-कभी यह प्रश्न जेहन में आता है कि क्या हमारा देश उन देशों के समूह में शामिल हो सकता है, जहां नागरिकों के लिए मतदान करना अनिवार्य कर दिया गया है?दरअसल, लोकतांत्रिक व्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से विश्व के तीस से अधिक देश अपने यहां चुनावों में मतदान को अनिवार्य बनाने संबंधी कानूनों को लागू किये हुए हैं। बेल्जियम ने सर्वप्रथम 1842 में मतदान को अनिवार्य कर विश्व को एक दृष्टि प्रदान करने की कोशिश की थी। इसके बाद, विश्व के अनेक देशों ने अपने यहां इस कानून को लागू करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, ब्राजील, सिंगापुर, तुर्की, बेल्जियम जैसे देश इसी फेहरिस्त का हिस्सा हैं, जहां मतदान तो अनिवार्य है ही, साथ ही मतदान न करने के एवज में सजा का प्रावधान भी है।
भारत में भी एक वर्ग ऐसी मांग को दशकों से उठाता आया है, जबकि दूसरे वर्ग में ऐसे लोग शामिल हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत वर्णित ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ की दुहाई देकर मतदान की अनिवार्यता को आमजन की स्वतंत्रता के खिलाफ बताते रहे हैं। हालांकि, वर्ष 2005 में भाजपा के एक सांसद ने अनिवार्य मतदान संबंधी एक प्रस्ताव संसद में रखने का प्रयास जरूर किया था, लेकिन तब विपक्षी दलों ने यह कहते हुए उसे नकार दिया था कि मतदान किसी को दबाव डालकर नहीं कराया जा सकता और यह लोकतंत्र एवं उनकी स्वतंत्रता का हनन होगा! उसके बाद भी अनिवार्य मतदान के पक्ष में ढेर सारी चचार्एं व बहसें होती रहीं। 2009 में गुजरात सरकार ने इस दिशा में पहली बड़ी पहल करती दिखी। दरअसल गुजरात सरकार ने स्थानीय प्रशासन (संशोधन) कानून 2009 पारित कर स्थानीय निकायों में सभी नागरिकों के लिए मतदान को अनिवार्य बनाने की दिशा में पहल की थी। लेकिन, सरकार के इस प्रयास पर तब गहरा धक्का लगा, जब एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए गुजरात उच्च न्यायालय ने वर्ष 2015 में कहा कि मतदान का अधिकार अपने आप में मतदान से अलग रहने का अधिकार भी देता है अर इसे मतदान के कर्तव्य में नहीं बदला जा सकता। और इस तरह, राज्य सरकार का संबंधित कानून अव्यवहारिक करार दे दिया गया।
भारत में राष्ट्रीय मतदाता दिवस हर साल 25 जनवरी को मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि जिस भारत निर्वाचन आयोग के ऊपर नियमित, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का जिम्मा है, उसका गठन इसी तिथि को 1950 में किया गया था। मतदाताओं को जागरूक करने और उनकी भागीदारी को बढ़ाने के उद्देश्य से 2011 से इस तिथि को मतदाता दिवस के रूप में मनाने की शुरूआत हुई थी। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक गणराज्य है और अपना 71वां गणतंत्रोत्सव मनाने की दहलीज पर खड़ा है। भले ही वैश्विक लोकतंत्र की स्थिति के ताजे सूचकांक में भारत 10 पायदान फिसल कर 51वें स्थान पर पहुंच गया है, लेकिन आज भी भारतीय लोकतंत्र की जड़ें काफी मजबूत हैं।
देश में चुनाव एक महापर्व की तरह आयोजित होते हैं, लिहाजा हम सभी को उसमें भाग लेना चाहिए। मतदान कम होने का ही नतीजा है कि बड़ी संख्या में बाहुबली, कम पढ़े-लिखे व आपराधिक छवि वाले नेताओं की फौज संसद व विधानमंडल में खड़ी हो गई है। हमारी राजनीतिक निष्क्रियता के कारण अच्छे लोग सदन की दहलीज पार नहीं कर पाते हैं। गौरतलब है कि लोकतंत्र की सफलता नागरिकों की सक्रियता पर ही निर्भर करती है। लोग जितने जागरूक होंगे व लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में जनभागीदारी जितनी अधिक होगी, लोकतंत्र उतना ही परिपक्व होगा। लोकतंत्र की एक बड़ी विशेषता नियमित व निष्पक्ष चुनाव का होना है। दरअसल, चुनाव लोकतंत्र की आत्मा होती है। लोकतंत्र और चुनाव का संबंध ठीक उसी प्रकार है, जिस प्रकार शरीर और उसमें निहित खून का है। चुनावों के माध्यम से नागरिक एक निश्चित समय (प्राय: पांच वर्ष) के लिए अपने जनप्रतिनिधियों का चुनाव किया करते हैं। यही जनप्रतिनिधि लोकतंत्र की रीढ़ होते हैं। लोकतंत्र की विश्वसनीयता कायम रखने के लिए जरूरी है कि अच्छे नेता को प्रतिनिधित्व का अधिकार दिया जाए और यह तभी संभव है, जब देश का हर व्यक्ति चुनाव में मतदान करें।
नागरिक के तौर पर हमें सबसे बड़ा अधिकार मताधिकार के रुप में मिला है, लिहाजा विवेक से उसका प्रयोग किया जाना चाहिए। मतदान के दिन निर्धारित केंद्र न जाकर हम बुद्धिमानी तो कतई नहीं कर रहे होते हैं। आज भी चुनाव के दिन लोग गपों में व्यस्त रहते हैं, तो कुछ लोग जान-बूझकर ढिलाई बरतते हैं। आज भी किसी चुनाव में औसत मतदान 50-60 फीसदी से अधिक नहीं हो पाता है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में यह आंकड़ा करीबन बीस से तीस फीसदी के दरम्यान रहता है। जबकि, चुनाव आयोग और प्रशासन बूथ को लोगों के निवास व कार्यस्थल से कम से कम दूरी में रखने पर जोर देती है। दूसरी तरफ, प्रत्येक विधानसभा व लोकसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग व अन्य संस्थाएं जनता को जागरूक करने के लिए विज्ञापन जारी करती रहती हैं, नुक्कड़-नाटक भी आयोजित करवाती हैं। वर्ष 2011 से प्रतिवर्ष 25 जनवरी को ‘राष्ट्रीय मतदाता दिवस’ का आयोजन करके आमजन को मतदान के महत्व को बताने तथा उसके इस्तेमाल करने के प्रति जागरूक करने का काम किया जा रहा है। आज इस तरह का नवां आयोजन होने वाला है। संयोग है कि ठीक एक दिन बाद हम गणतंत्र दिवस का राष्ट्रीय उत्सव मनाने वाले हैं। दोनों दिवसों के इस संयोग से स्पष्ट है कि गणतंत्र की सार्थकता तभी है, जब वहां के नागरिक मतदान के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें। मतदाताओं में आवश्यक शिक्षा, समझ और जागरूकता के अभाव में हर बार कुछ आपराधिक, अनुभवहीन और कम पढ़े-लिखे लोग देश का प्रतिनिधित्व करते नजर आते हैं। ऐसे में, अयोग्य जनप्रतिनिधियों द्वारा मतदाताओं को उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है, जबकि लोकतंत्र की असली ताकत तो नागरिकों में निहित है। लोकतंत्र में मतदाता प्रथम होता है। जरूरत है कि अब देश के मतदाता जागरुक हों। मतदाता अपने अधिकारों का सही उपयोग करें। अगर हर मतदाता अपने वोट की कीमत समझने लगे एवं बिना किसी बाह्य कारकों से प्रभावित हुए अंतरात्मा की आवाज पर अपने मत का प्रयोग करे, तो मौजूदा स्थिति बदलते देर ना लगेगी। चुनावों में भाग लेकर मतदाता अपना भविष्य चुनते हैं। अपने भविष्य से खिलवाड़ न हों, इसलिए जागिए और जब जरुरत पड़े मतदान के अपने विशिष्ट राजनैतिक अधिकार का निडरता से प्रयोग करें। अंत में, देश में अनिवार्य मतदान संबंधी कानूनी प्रावधान हो या नहीं हो, किंतु एक नैतिक कर्तव्य जरुर है , यह बात ध्यान में रहनी चाहिए।
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