देश को जनसंख्या विस्फोट से बचाने के लिए पूज्य गुरु जी ने चलाई ऐतिहासिक मुहिम

शादी के दिन वर-वधु लेंगे छोटा परिवार रखने का संकल्प

तीन नवविवाहित जोड़ों ने भरा ‘एक सही, दो के बाद नहीं’ का संकल्प पत्र आॅनलाइन गुरुकुल के दौरान करोड़ों साध-संगत ने दोनों हाथ उठाकर मुहिम में बढ़ चढ़कर सहयोग का किया वादा

बरनावा (सच कहूँ न्यूज)। देश-दुनिया में बढ़ती जनसंख्या के कारण भुखमरी, बेरोजगारी, गरीबी, प्रदूषण का विकराल संकट उपजा हुआ है। इससे निपटना समय की जरूरत है, वरना आबादी का यह स्वरूप प्राकृतिक संसाधनों को निगल जाएगा। महान समाज सुधारक व सच्चे रूहानी रहबर पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए ऐतिहासिक पहल की है। आप जी लोगों को परिवार छोटा रखने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इसी कड़ी में शनिवार को उत्तर प्रदेश के शाह सतनाम जी आश्रम बरनावा में आॅनलाइन गुरुकुल के दौरान भी पूज्य गुरु जी ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए ‘एक ही सही, दो के बाद नहीं’ का नारा दिया। इसके साथ ही शुरू हो गई शादी की रस्मों के साथ ही छोटा परिवार रखने की शपथ लेने की मुहिम।

वहीं इस दौरान पूज्य गुरु जी से प्रेरणा पाकर तीन नवविवाहित युगलों ने अपनी शादी के दौरान लिखित में शपथ पत्र भरकर ‘एक ही सही दो के बाद नहीं’ का संकल्प लिया। इसके अलावा आॅनलाइन जुड़ी हुई करोड़ों साध-संगत ने भी अपने दोनों हाथ उठाकर इस मुहिम में बढ़-चढ़कर सहयोग करने का प्रण लिया। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि परम पिता परमात्मा ने इन्सान को खुदमुखत्यार बनाया है, मर्जी का मालिक बनाया है। चौरासी लाख शरीर, जोनियां हमारे धर्मों में बताई गई हैं, जिसमें वनस्पति है, कीड़े-मकौड़े हैं, पक्षी हैं, जानवर हैं और इन्सान। गंधर्व, देवता अलग से उनकी चर्चा भी होती है। सर्वश्रेष्ठ मनुष्य को कहा गया, सर्वोत्तम, खुदमुखत्यार और मुखिया या सरदार जून, कि सबसे जबरदस्त शरीर प्रभु-परमात्मा ने इन्सान को बनाया।

इसका दिमाग बाकी सब जीवों से बहुत ही ज्यादा है। और आज आदमी 10 से 15 पर्सेंट हिस्सा ही काम में लेते हैं और उससे ही सुपर कंप्यूटर बन गए, बड़ा कुछ बना है, पर सिर्फ 10-15 पर्सेंट इस्तेमाल करने से। पर जब हम हर चीज के लिए दिमाग का इस्तेमाल करते हैं तो फिर जनसंख्या जो बढ़ रही है, पानी की कमी आ रही है, इसके लिए इन्सान क्यों नहीं सोचता? कई कह देते हैं कि जी भगवान देता है, ये तो भगवान का लिखा हुआ है, ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम का, इसलिए बच्चे आते जाते हैं। भगवान ने आपको खुदमुखत्यार बनाया है, उस परमपिता परमात्मा ने आपको मर्जी का मालिक बनाया है, कुछ हद तक आप नए कर्म कर सकते हैं,वो आपके हाथ में है अच्छे करो या बुरे। बुरे कर्म करके आप राक्षस, शैतान को भी शरमा सकते हैं और अच्छे कर्म करके आप परमपिता-परमात्मा को भी पा सकते हैं। तो उस खुदमुखत्यारी का फायदा उठाते हुए आप उसकी दी हुई कुदरत की चीजों का विनाश ना करें।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि अब जनसंख्या कंट्रोल की बात है, तो ये किया जा सकता है, अगर आप चाहें तो। ना चाहें तो बात अलग है। और हमने सारे धर्मों के पाक पवित्र ग्रन्थ पढ़े, पवित्र गुरबाणी पढ़ी, पवित्र कुरान शरीफ पढ़ी, पवित्र हमारे वेदों की चर्चा तो हम शुरूआत से ही करते हैं। तो सारे पवित्र ग्रन्थों में, धर्मों में कहीं भी ये जिक्र नहीं है कि बच्चे 5,10,15, 20 पैदा करो। संयम का जिक्र मिलता है, संतोष धन होना चाहिए। संतुष्टि होनी चाहिए इसका जिक्र मिलता है। तो आप चाहें तो कंट्रोल कर सकते हैं। कितना अच्छा हो कि आपके या तो एक ही हो या फिर दो, इससे ज्यादा ना हों। अच्छा पालन-पोषण भी कर पाएंगे, अच्छा पढ़ा-लिखाकर उसको देश के लिए, समाज के लिए बहुमूल्य बना देंगे। और जितने ज्यादा होंगे, एक तरह से आप समाज के लिए, देश के लिए और संसार के लिए घातक काम कर रहे हैं। अनजाने में ही सही, लेकिन जो जनसंख्या विस्फोट, आपको कुछ दिन पहले भी चर्चा की थी, कि वो होने वाला है। क्योंकि एक सैकिंड में पता नहीं कितने बच्चे पैदा हो जाते हैं। तो आप देखेंगे कि जनसंख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। साधन कम होते जा रहे हैं तो ये दो-तीन बातें हमेशा आप दिलोदिमाग में रखें, कि प्रकृति हमें देती बहुत कुछ है, पर हम अगर उसका नाश करते हैं तो फिर वो भी कहीं न कहीं उग्र हो जाती है।

पेड़ कट रहे हैं, पहाड़, नदियां खत्म होती जा रही हैं, खत्म होती जा रही हैं या फिर कहीं बाढ़ ही आ रही है और मौसम, बेमौसम हुआ पड़ा है। जब सर्दी चाहिए गर्मी है और गर्मी चाहिए तो सर्दी है। ये सारे बदलाव संकेत देते हैं कि खासकर आदमी कहीं न कहीं इसका जिम्मेवार है। चाहे तो वो पोल्यूशन कर रहा है, प्रदूषण फैला रहा है, चाहे वो पेड़-पौधे काट रहा है, चाहे वो पहाड़ों की कटाई कर रहा है, खात्मा कर रहा है। तो ये खुदमुखत्यार इन्सान आज, जिम्मेदार इन्सान इस जिम्मेदारी से हटकर प्रकृति का नाश करने में लगा है और बड़ा डर लगता है कि कहीं प्रकृति उग्र रूप धारण करके प्रलय-महाप्रलय ना ले आए। क्योंकि राम जी, ओउम्, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब ने, उस ओउम परमपिता परमात्मा ने सृष्टि का बैलेंस बना रहे, तालमेल बना रहे इसके लिए हर चीज बनाई है। एक भी ऐसी चीज नहीं जिसे आप ये कहें कि ये फालतू की चीज है। ये आपका भ्रम हो सकता है। अज्ञान हो सकता है, लेकिन परमपिता परमात्मा ने जो कुछ भी बनाया है, जो वो बना रहा है, जो कुछ किया, कर रहा है वो सब सोच समझकर करता है ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम।

समाज को जागना होगा

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पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि अंधांधुध पेड़ काटे जा रहे हैं। अंधाधुंध पहाड़ों का खात्मा किया जा रहा है, अंधाधुंध घर बनते जा रहे हैं। संयुक्त परिवार होते थे तो नैच्युरली एक घर में चार भाई तो चारों भाइयों का परिवार रह लेता था, दो-चार कमरे और डाल लिए ऊपर नीचे तो बात खत्म।

लेकिन आज दो भाई हैं वो भी अलग। एक का घर अलग, दूसरे का अलग। तो यूं जैसे आपको परसों गाड़ियों के बारे में बता रहे थे, उसी तरह ये घरों का सिलसिला चला हुआ है। जंगल कट रहे हैं, खनन हो रही है। हम रोक देंगे, हम ये कर देंगे, हम वो कर देंगे, जब आप समाज वाले समझेंगे तभी ये रुकेगा, वरना नहीं रुकता। चाहे राजा-महाराजा कितना भी जोर लगा लें, अगर आप नहीं हटते तो बात नहीं बनेगी। अब आप देखो कई जगहों पर शराबबंदी की गई, अब वो घर के चूल्हे पर भी बना रहे हैं देसी। अब बाहर वाली तो बंद हो गई, लेकिन ये चूल्हे वाला गुड़ तो देना पड़ता है, चाय के लिए मिल जाता है और ये इन चीजों से मिलाकर शराब बना लेते हैं। महुए के पेड़ के फूलों से शराब बन जाती है, नारियल से शराब बना लेते हैं, काजू से शराब बना लेते हैं। तो सारा समाज जागेगा तभी कोई राजा-महाराजा अगर कुछ कहेगा तो उसका असर होगा। अगर समाज नहीं जागेगा तो कोई आपको गलत कार्य से नहीं रोक सकता।

बेतहाशा जनसंख्या बढ़ा रही कई परेशानियां

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि हमने पहले भी कहा था और आज भी कह रहे हैं कि भई एक ही सही और दो के बाद नहीं, ये आप धारण करके रखें। हमने ये मानवता भलाई का कार्य आॅलरेडी चला रखा है। पहले भी आपको एक नारा दिया और आज भी ख्याल में आ गया तो आपको बता दिया। तो आपने इसको माना है और साध-संगत ने आॅलरेडी इसको मान रखा है तो मालिक सबके घरों में खुशियां दे। आप अमल कीजिये, देश की तरक्की होगी। आने वाले जनसंख्या के विस्फोट से हो सकता है भगवान जी बचा लें, वरना आप पहले के मुकाबले देख लीजिये कितना रेश्यो बढ़ गए बेरोजगारी के, कितना रेश्यो बढ़ गए क्राइम के, कितना रेश्यो बढ़ गए आवारागर्दी के, तो ये चीजें बढ़ती जाएंगी, क्योंकि इतना कोई भी आपको काम नहीं दे सकता। कहां से देंगे जब पैदा ही एक के पाँच-पाँच, सात-सात हैं। कईयों को तो गिनती नहीं पता होती कि मेरे कितने घर में घूम रहे हैं और कितने बाहर घूम रहे हैं, कच्छे में ही होते हैं।

अजीब सा लगता है। हम कई बार सत्संग करने जाते थे ऐसे इलाकों में, जिनके 10-10, 12-12 बच्चे होते थे। वहां पहले ही कह देते थे कि गाड़ी आराम से चलाना भाई या ख़ुद चलाते थे तो आराम से कर लेते थे। क्यों? वो हॉर्न बजा नहीं, गाड़ियां आर्इं नहीं, और घर से यूं निकलते थे जैसे पूछो मत। और वो भी कच्छे-कच्छे, कइयों के तो वो भी नहीं होता था। अब 12 हैं, छोटे-छोटे, फर्क थोड़ा-थोड़ा है, साल-साल का फर्क होगा। तो अब आपने इतने बच्चे पैदा कर रखे हैं, जब परेशानी आती है, मुश्किल आती है, फिर भगवान को दोष देते हैं कि भगवान, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, ख़ुदा, रब्ब हमारी सुनता क्यों नहीं। तूने सुनी क्या? और अखबार में एक दिन किसी ने दिखाया हमें, वो किसी बाहर के देश का था, उसके शायद पोते मिलाकर, बच्चे मिलाकर 112 या 120 बच्चे थे। और उसके बाद वो प्रचार कर रहा था कि बच्चे ज्यादा पैदा ना करो। हमने कहा, यार तूं तो शर्म कर ले। तू तो ऐसा प्रचार मत कर।

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112 या 120 पैदा करके कहता कि ज्यादा बच्चे नहीं होने चाहिए। कहीं विदेश का था, अखबार के एक टुकड़े में उसका नाम भी था और उसकी पता नहीं कितनी तो पत्नियां ही थीं। जिसके एक है, दो हैं या तीन हैं वो तो चलो जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रचार करे, फिर भी ठीक लगता है। पर चलो उसको सोझी आ गई। तो ऐसे आदमी समाज के लिए, हम उनको बुरा नहीं कह रहे, लेकिन जरा सोचिये तो सही। कई कहते हैं कि नहीं, ये तो मालिक की देन हैं, हम कौन होते हैं रोकने वाले। तो फिर नाखून क्यों काटते हो भाई? ये भी तो मालिक की देन है बढ़ने दो। बाल क्यों काटते हो? वो भी बढ़ने दो, वो भी तो आप काटते हो। मालिक की देन तो बहुत कुछ है। पैरों के नाखून इतने बड़े-बड़े हो जाएंगे। हाथों के इतने बड़े-बड़े हो जाएंगे। और फिर नहाते क्यों हो? ये कौन सा मालिक ने कहा कि नहाना है। ये भी मालिक की देन है, शरीर है, चलने दो जैसे चलता है। तब तो आप समझदार हैं। नहाते भी हो, कपड़े भी पहनते हो, नाखून भी काटते हो, खाना भी सही अपने ढंग से खाते हो और बच्चों के टाइम कहते हो कि नहीं-नहीं, ये तो मालिक की देन हैं। आपको दिमाग दिया है, आप कंट्रोल कर सकते हो, अगर ऐसा करना चाहें तो। अभी किसी सज्जन ने लिखकर दिया कि भारत में हर मिनट में 51 बच्चे पैदा हो रहे हैं और हर घंटे में 3074 बच्चे पैदा हो रहे हैं और एक मिनट में 19 की मौत और एक घंटे में 1116 की मौत हो रही है। तो इसका मतलब है कि 1900 या 2000 तो बढ़ ही रहे हैं।

और पूरे विश्व का तो और भी तगड़ा काम है, एक सैकिंड में 4, एक मिनट में 278 और एक घंटे में 16720 बच्चों का जन्म हो रहा है और मृत्यु एक घंटे में 6611 हो रही हैं। तो मतलब 10700 बच्चे तो बढ़ रहे हैं तो ये विस्फोट वाला काम है कि नहीं है। ये तो होता जा रहा है। तो चिंता करनी चाहिए। संसाधन कहां से जुटाएगा कोई? कितना भी जोर लगा ले, कितना भी मशीनरी का प्रयोग कर ले, इतने पैदा करोगे तो हर किसी को रोजगार मिल ही नहीं सकता। रोजगार बनाएंगे कहां से और किस चीज का। क्या रोटी बनाने का, कि इनको खिलाओ भई बना-बनाकर। वो तो घरों में बन जाती हैं। वो भी खिलाई जाती हैं फ्री में अन्न चल रहा है, फ्री में खाना दिया जाता है, लेकिन अब कंट्रोल करना और वश में रखना तो आदमी के हाथ में है। तो आपसे यही गुजारिश है, आज का टॉपिक ही ये है कि जितना हो सके बच्चे पैदा करने पर कंट्रोल करना है और साध-संगत ने प्रण कर लिया है कि ‘एक ही सही, दो के बाद नहीं।’ तो आप ये ध्यान रखें। बाइचांस किसी के जुड़वां हो जाते हैं वो एक अलग चीज है। सो, प्यारी साध-संगत जीओ ये जरूरी चीजें हैं, क्योंकि जनसंख्या जब तक रूकेगी नहीं देश और संसार तरक्की नहीं कर सकता।

सभी जीवों के लिए बना है प्रकृति का सिस्टम

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि कई बार कई सज्जनों को कहा कि बकरे, मुर्गे नहीं खाने चाहिए। कहते ये नहीं खाएंगे तो ये बढ़ जाएंगे। तो आप बढ़ रहे हो, उसका भी कोई तरीका बताओ। बकरे, मुर्गे का तो आपने सर्टिफिकेट ले रखा है कि हम खाते ही इसलिए हैं ताकि जनसंख्या कंट्रोल में रहे, जोकि सौ पर्सेंट झूठ है। क्योंकि बकरे, मुर्गे अगर हैं तो माँसाहारी जीव भी, शेर है, चीता है, बिल्लियां हैं, कुत्ते हैं, पता नहीं कितने जीव-जन्तु ऐसे हैं जो माँसाहारी हैं। तो आपको फिक्र करने की जरूरत नहीं है। उनको कंट्रोल करने के लिए सिस्टम बना हुआ है। समुन्द्र में सिस्टम है छोटी मछली को बड़ी, उससे बड़ी को उससे बड़ी, फिर उससे बड़ी, वो उससे बड़ी। तो कंट्रोल में रहता है सारा साजोसामान।

पर इन्सान तो खुदमुखत्यार है और खुद कंट्रोल कर सकता है। अगर आप जागृत हो जाएं, हालांकि काफी जागृति आई है पहले से, लेकिन आज भी गाँव में अगर पहली बेटी हो जाए तो फिर बेटा और दूसरी बेटी हो जाए तो कहता नहीं, जब तक बेटा नहीं तब तक नहीं रूकेंगे। बेटियों के नाम भी बदल देते हैं। पंजाबी में कहते हैं अक्को, पुराने टाइम में भी अक्क गए असी तां बस कर भाई। और इधर हरियाणा और यूपी साइड में भतेरी, मतलब बहुत हो गई, बस। ख़ुद नहीं भतेरी समझ रहा, कि तूं बस कर भाई। खुद कहता है ना…ना…इसका नाम रख देते हैं भतेरी, ताकि लड़की ना आए अगला लड़का आ जाए। तो नाम ही रखना था तो पहली का रख देता, दूसरा लड़का हो जाता। तो नाम में कुछ नहीं पड़ा।

ये सिस्टम है, आप डॉक्टरों की राय लीजिए और हमें लगता है कि बेटियां, बेटों से किसी मामले में कम हैं ही नहीं, बराबर है। बल्कि कहीं ना कहीं बेटियां अपने माँ-बाप के लिए, जो सॉफ्ट कॉर्नर रखती है या ममता का भाव रखती हैं, वो बेटों के अंदर नहीं होता, कुदरती तौर पर। ऐसा नहीं है कि बेटे कोई गलत होते हैं, अच्छे हों, कितने भी अच्छे क्यों ना हों, लेकिन जो ममता की भावना बेटियों के अंदर होती है, वो अपने माँ-बाप के लिए आखिर तक रहती है। ये हमने देखी हुई बातें हैं, आजमाई हुई बातें हैं। और दूसरी बात, जिन घरों में बेटी नहीं होती, वहां रहना-सहना, तमीज नाम की चीजें बहुत कम पाई जाती हैं। और जहां बेटी होती है, वहां रहन-सहन में और तमीज, बोलने में, पहनने में, बहुत सारी तमीज रहती है। तो इसलिए भाई आप ये मत सोचो कि बेटा ही चाहिए, ये मत सोचों की बेटी ही चाहिए। एक बेटा हो गया चाहे बेटी हो गई बस मालिक की देन है, पर ज्यादा ही है तो दो, दो के बाद नहीं। तो हमारी साढ़े छह करोड़ साध-संगत अमल करेगी तो कुछ तो कंट्रोल होगा। इतने बच्चे अगर मिलकर आगे से ख्याल रखेंगे, कि जिनकी नई शादियां हो रही हैं, जिनके एक-एक बच्चा है, कि भई ‘‘एक ही सही, दो के बाद नहीं’’ ये ध्यान रखिये। और जो नई शादियों वाले आते हैं अगर वो शादी के वक्त ये प्रण भी लेंगे तो हमें और भी खुशी होगी।

जनसंख्या नियंत्रण से कई समस्याएं होंगी हल

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि अगर एक-एक बच्चा है। कैसे फर्क पड़ता है जरा सोचकर देखिये, पाँच बीघे, पाँच एकड़ एक के पास जमीन है, दो एकड़ एक के पास है। एक-एक बच्चा है, दोनों की शादी हो गई। पहले तो सात एकड़ हो गई। जमीन घटने की बजाय बढ़ गई। दूसरी बात घरों की जो भरमार है, पेड़ कट रहे हैं। दो की जगह एक घर बन गया। और माँ-बाप की संभाल दोनों की करो। तो इस तरह से आप अगर देखेंगे, आगे से आगे, आगे से आगे जमीनें जैसे आपने घटाई हैं पैदा कर करके और वैसे बच्चे अगर कम रखोगे, फिर से आपके नाम जमीनें बढ़ने लग जाएंगी, फिर से जायदाद आपके नाम ज्यादा होने लग जाएगी और आप सुखमय ज़िंदगी जी पाएंगे। तो हमारा काम तो चौकीदार, सेवादार की तरह बताना है भाई, मानना या न मानना आपकी मर्जी।

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