दुनिया में इन्सान का अलग-अलग टेस्ट होता है, कई कड़वे पे मरे पड़े हैं
बरनावा (सच कहूँ न्यूज)। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने बरनावा आश्रम से आॅनलाइन साध-संगत से रूबरू हुए। पूज्य गुरु जी ने अपने पावन वचनों के साथ नूरी स्वरूप के दर्श देकर साध-संगत को निहाल किया इस दौरान यूटयूब व जूम एप के माध्यम से देश-विदेश की करोड़ों साध-संगत ने अनमोल वचनों को श्रद्धाभाव से श्रवण किया। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि मनुष्य बनके तो आ गया, कर्म, समय कलियुग का चल रहा है, उसके अकोरडिंग करता जा रहा है, भूल गया अपने उद्देश्यों को, भूल गया अपने मकसद को, भूल गया इस शरीर में बेइंतहा खुशियां हासिल कर सकता है। भूल गया चंद खुशियों के लालच में, भूल गया जीभा के स्वाद में, भूल गया इन्द्रियों के भोग विलास में, ये क्षण का आनंद, ये पल का आनंद पाके मस्त हुआ बैठा है, उस परमानंद से बहुत दुर हुआ बैठा है। पूज्य गुरु जी ने फरमाया, परमानंद उस ओइम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब की भक्ति इबादत से मिलता है।
ऐसा क्या है उसमें, जिसके लिए कह रहे हैं हम, आप भूल गए हैं, क्षण के आनंद में, पल के भाग विलास में, जीभा के स्वाद में खो गए हैं, तो उसमें ऐसा क्या है, आम तौर पे, दुनिया में इन्सान का अलग-अलग टेस्ट होता है, स्वाद होता है, किसी को नमकीन बढ़िया लगता है, किसी को मीठा बढ़िया लगता है, कर्इं कड़वे पे मरे पड़े हैं, अलग-अलग स्वाद, किसी को इन्द्रियों का भोग विलास, उनके लिए कोई रिश्ते ही नहीं रहते। उनकी निगाहें बुराई ताकती रहती है, अलग-अलग स्वादों में दुनिया पड़ी हुई है। ऐसा नहीं है, कि सबको एक जैसी ही चीज भांति हो, कर्इं सगे भाई भी होते हैं, उनको भी अलग-अलग चीजें पसंद होती है। लेकिन हम आपको गारंटी देते हैं, जो ओम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब की धुर की वाणी अनहद नाथ, मांगे इलाही, मैथड आॅफ मेडिटेशन से प्राप्त हुई गॉडस वाइस आॅफ लाइट, वो जो आवाज है, वो जो रोशनी है, वो जो परमानंद जिसे हम कह रहे हैं, दुनिया में किसी को चाहे कोई भी स्वाद पसंद हो, अगर आप उससे जुड़ते हैं, जो आपको स्वाद पसंद है, उस परमानंद में इससे अरबोंं खरबों गुणा ज्यादा आपको स्वाद आएगा, और हर किसी को आएगा।
पूज्य गुरु जी ने आगे फरमाया कि वो स्वाद परमानेंटली आएगा। ये आप वाला टेमपरेरी है। रसगुल्ला स्वाद है, मुंह में डाला, खाया जब तक चीनी है स्वाद आता रहता है, थोड़ी देर बाद मुंह बकबका हो जाता है। ऐसे ही हर स्वाद का हाल है। क्षण कुछ पलों के लिए, कुछ मिनटों के लिए, उसके बाद वो ही आदमी मतलब स्वादहीन हो जाता है, जीभा स्वादहीन हो जाती है, लेकिन जिस परमानंद की हम बात कर रहे हैं, अगर उसे चख लिया जाए, उसे पा लिया जाए, महसूस कर लिया जाए, एक बार वो राम-नाम का स्वाद जीभा पर आ गया, ता उम्र रहेगा, और ऐसी खुशी देता रहेगा, जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। वो टेमपरेरी नहीं है।
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