आओ मिलकर मौत के मुंह में जाते माताओं के बेटों को बचाएं
- जीवन जीने का सही सलीका जरूर सीखें
बरनावा। (सच कहूँ न्यूज) सच्चे दाता रहबर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने मंगलवार को शाह सतनाम जी आश्रम, बरनावा से आॅनलाइन गुरुकुल के माध्यम से अपने अमृत वचनों के माध्यम से प्रभु के सच्चे नाम की शक्ति से रूबरू करवाया। इसके साथ ही आपजी ने युवाओं से आह्वान किया कि वे नशे के दैत्य को समाज से जड़ से उखाड़ने के लिए आगे आएं और जीवन में कभी भी नशा ना करें।
रूहानी मजलिस
बरनावा। सच्चे दाता रहबर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने मंगलवार को शाह सतनाम जी आश्रम, बरनावा से आॅनलाइन गुरुकुल के माध्यम से अपने अमृत वचनों के माध्यम से प्रभु के सच्चे नाम की शक्ति से रूबरू करवाया। इसके साथ ही आपजी ने युवाओं से आह्वान किया कि वे नशे के दैत्य को समाज से जड़ से उखाड़ने के लिए आगे आएं और जीवन में कभी भी नशा ना करें।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि मालिक की साजी-नवाजी प्यारी साध-संगत जीओ सच्चे मुर्शिद-ए-कामिल शाह सतनाम, शाह मस्तान दाता का एमएसजी जन्म महीना, अवतार महीना चल रहा है। साध-संगत जो अंदर से ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम, गॉड, खुदा, रब्ब को प्यार करती है, उनके लिए सिर्फ ये महीना नहीं, सारी उम्र ही खुशियां, बहारें चलती रहती हैं। कुछ दिन ऐसे होते हैं, कुछ महीने ऐसे होते हैं, जो जिंदगी में बदलाव और ऊँचाइयों को लेकर आते हैं। वो महीने, वो दिन कभी भुलाए नहीं भूलते। और जब हम उन दिनों को मनाते हैं, अपने परमपिता परमात्मा को याद करते हैं तो अंत:करण, दिलोदिमाग में खुशी की नई तरंगें जाग उठती हैं।
खुशी का नया समुन्द्र लहराने लगता है। तो इसलिए हमेशा अपने पीर-फकीर को याद रखो, उसकी भक्ति-इबादत करते रहो, क्योंकि उसी ने मालिक से हमें मिलाया है। संत, पीर-पैगम्बरों की पाक-पवित्र बाणी में वचन भी गुरु की महिमा करते हैं कि सारी धरती को कागज बना लूं, वनस्पति को कलमें बना लूं, समुन्द्र को स्याही बना लूं, हवा की गति से लिखूं तो लिख ना पाऊं। हे मुर्शिद-ए-कामिल! हे मेरे सतगुरु! हे मेरे राम! इतने तेरे गुण, इतने तेरे परोपकार हैं मुझ पर।
नशे और बुराइयों के मक्कड़जाल से यूं निकलें
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि दुनिया की छोड़ो, अपने-अपने स्टेट और समाज को देख लो,दिन-ब-दिन बर्बादी की ओर अग्रसर हैं। नशे और बुराइयों का मक्कड़जाल चहुंओर नज़र आता है। पर उसे खत्म करने वाला ओउम्, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु का नाम लोगों को लेने में भार लगता है। आज के दौर में एकमात्र प्रभु, सतगुरु, मौला का नाम एक ऐसा है जो आपकी तमाम परेशानियों का हल ही नहीं, बल्कि पूरी उम्र आपका साथ देने वाला है। क्या चाहते हैं आप? जिंदगी में इन्जॉयमेंट हो, क्या चाहते हैं आप? जिंदगी में खुशियां हों, क्या चाहते हैं आप? दिमाग में शांति हो।
आप यही चाहते हैं कि घर-परिवार में शांति हो। पर सबसे पहले जो चाह होती है, तंदुरूस्त शरीर, जब तक शरीर तंदुरूस्त नहीं, बाकी चीजों के मायने गलत हो जाते हैं। सब उल्टा हो जाता है। तो जरूरी है सबसे पहले कंचन काया, मतलब बिल्कुल स्वस्थ शरीर। पर उसके लिए आप करते क्या हैं? कोई एक्सरसाइज करते हो, पर क्या आपको पता है कि एक्सरसाइज करते-करते कौन सी घड़ी, कौन सा पल आ जाए जिसमें आपको कर्म भोगने का हुक्म हो जाए तो सारी एक्सरसाइजन धरी धराई रह जाती है। और आदमी के साथ एक्सीडेंट हो गया या बीमारी आ गई, कुछ ना कुछ ऐसा आ जाता है, जिससे उसकी वो कंचन काया बर्बादी की ओर बढ़ जाती है।
कोई है ऐसी बिना पैसे की पॉलिसी
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आजकल बीमे की बड़ी पॉलिसी चली हुई हैं। जीवन बीमा है, बीमारियों का बीमा है, गाड़ियों का बीमा है और गलत भी नहीं है, अच्छा है कई मायनों में। क्या कंचन काया, हमेशा कंचन काया रहे इसका भी कोई बीमा है। वहां से तब मिलेगा ना जब बीमार होंगे। तो पॉलिसी आपका इंतजार कर रही है कि आप बीमार हो और ले लो। क्या ऐसी भी कोई पॉलिसी है, जो बीमार होने ही ना दे। ये तो गजब की है, हर कोई खरीदना चाहेगा। जी हाँ, ऐसी पॉलिसी है, लेकिन एक नया पैसा उस पर नहीं लगाना, जीेरो लॉस, देना कुछ नहीं, लेना ही लेना है और वो पॉलिसी है ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु का नाम।
चलते, बैठके, लेटके, काम-धंधा करते, गाड़ी चलाते, जीभा से, ख्यालों से, कैसे भी लेते रहो, अगर जाप करते रहोगे, यकीन मानो पहाड़ जैसी बीमारी भी कंकर में बदल जाएगी और कंकर राख बनकर उड़ जाएगा। पर आपको तो शॉर्टकट चाहिए। बताइये इससे शॉर्टकट क्या है और। पैदल चलते, लेटके, बैठके, काम-धंधा करते, कहीं रुकावट नहीं है, ड्राइविंग करते, इससे अच्छा और आसान मार्ग और क्या हो सकता है? जो शाह सतनाम, शाह मस्तान दाता रहबर ने हमें उस मालिक का नाम बताया, बाइनेम उस ओउम् को, गॉड को, एकोंकार को, वाहेगुरु को याद करना। पर आप नहीं करना चाहते इसका क्या इलाज है भाई। पॉलिसी में पैसे लगाते हो तो जाकर वो आपको मिलती है। लेकिन यहां तो कुछ लगाना है तो बस दो-चार चीजें हैं, आपके पाप कर्म, आपकी बुरी आदतें और आपके संचित कर्म तक छोड़ जाओ और बदले में राम का नाम ले जाओ, जो अंदर बाहर से महकाए रखेगा, कोई सैंट या डीओ लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
ये सलीके बनाएंगे जीवन को उत्तम
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि अब बच्चों में होता है, कई शौकीन होते हैं, हम किसी को टोकते नहीं, लेकिन इतना ज्यादा स्ट्रॉन्ग सैंट या डीओ लगा लेते हैं। तो पहले कई जगहों पर बड़ी बदबूदार जगहें होती थीं, उनका नाम लिया जाता था। अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग स्टेटों में। राजस्थान में भी एक ऐसी जगह थी, जहां से ट्रेन आती थी तो वहां जब पहुंचती थी तो सारे डिब्बे बदबू से भर जाते थे। अब नाम हम नहीं बताना चाहेंगे, क्योंकि कोई ऐतराज भी कर सकता है।
पर राजस्थान वालों को पता है, कहावत है कि तेरे च तां ऐंवे बदबू आंदी है जिवें…। सो बड़ी हैरानीजनक चीजें हैं, बुरा ना मनाना, आपको अच्छा लगता है सैंट लगाना, हमें कोई लेना-देना नहीं, लेकिन इतना स्ट्रॉन्ग लगा लेते हो कि पास बैठने वाले का जीना दुभर हो जाता है, उसकी नाक तक जलने लग जाती है, बेचारा उठकर साइड में जाता है। सफाई रखो, रोजाना नहाओ। कई कहते हैं कि जी, नहाना नहीं चाहिए, इससे स्किन खराब होती है, कई नई-नई चीजें बताते रहते हैं। एक आदमी बताने लगा, मजाक सुना रहा था वो, कहता गुरु जी पता नहीं लोग एक-एक महीना कैसे नहीं नहाते। मुझे बड़ी हैरानी होती है। हमने कहा फिर, तो वो कहता जी, मेरे 29वें दिन खाज होने लग जाती है।
तो कहने का मतलब, जो नहीं नहाते उनके लिए ये बढ़िया चीज है कि भई स्किन बढ़िया रहती है, बार-बार धोओ तो खराब हो जाती है। ये कोई कपड़ा है जो फट जाएगा। मत रगड़ो ज्यादा, पानी तो डाल लो थोड़ा। साथ वाले को चैन से बैठने दो। जुराब धोई हुई पहन लिया करो। कई बार, बुरा ना मानना, लोगों को होता है, सारा-सारा दिन जुराब पहने रखते हैं और फिर जब जाकर बूट उतारते हैं तो फिर बस, चाहे कमरे में धूपबत्ती कितनी ही लगा लो आप, उनकी ही धूप चलती है। तो जीवन में एटिकेट्स आने चाहिए। जीवन जीने का ढंग आना चाहिए। कई छींक मारेंगे, देखते-देखते मार दी, सामने वाले के मुंह पर सारे छींटे, उसको मुंह धोने की जरूरत नहीं पड़ती। वैसे तो भागकर धोना पड़ता है, पर वो इतने फेंक देते हैं कि पूछो मत, कम से कम हाथ तो मुंह के आगे कर लो। खांसते हैं तो, चलो छींटे आ रहे हैं तो अपने हाथ से रुक जाएंगे। धर्मों में इस बारे में लिखा हुआ है।
शरीर को जैसा बना लो वैसा ही रहेगा
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि एक पुरानी बात ख्याल में आ गई। कई सज्जन थे हमारे साथ खेलते थे। हम 32 नेशनल गेम स्टेट लेवल तक खेले। हर जगह टूर्नामेंटों में खेलने के लिए जाया करते थे। और प्लेयर आलस बहुत कर जाते हैं। तो वो नहाते नहीं थे। हमने कहा, यार आप नहाते नहीं हो। नहा लिया करो ना यार। कहते, यार शेरां दा किने मुंह धोत्ता है कि शेरों का मुंह कौन धोता है। हमने कहा सुबह फ्रैश होने जाता है, कहता हाँ। तो हमने कहा कि शेर तो वो भी नहीं धोते। हाँ, अगर मुंह नहीं धोते थे तो फिर हाथ भी क्यों धोते हो। ये बड़ी अजीब सी चीजें हैं। फिर वो कहते कि हाँ, अब तो नहाया करेंगे। वे कहते कि पहले तो हमें लगता था कि बड़ी बात है।
हमने कहा कि बड़ी बात नहीं है, या तो दोनों चीजें करो शेर वाली या फिर आदमियों वाला काम कर लो और शेर वाला, पशु वाला काम छोड़ दो। सो हम ये नहीं कहते रोज नहाओ, कहीं ठंड लगवा बैठो। पर एक बार दिन में नहा कर देखो कितनी स्फूर्ति आती है, सर्दी नहीं लगती नहाने के बाद, हकीकत है ये। और कई रजाई से निकलेंगे और फिर ठुर-ठुर करते फिरेंगे, नहाना नहीं। कहते नहाने से सर्दी लग जाएगी। अरे नहाने से तो सर्दी उड़ती है, कभी नहा कर देखो आप रेगुलर। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि हम अपनी एज (आयु) में, शायद ही कभी 55 साल के बीच में 2-3 दिन नहीं कह सकते, वरना डेली, चाहे कुछ भी हो, पारा माइनस डिग्री भी रहा राजस्थान में और 50+ भी हो जाता था, हमेशा ठंडे पानी से ही नहाते थे। आदत ही नहीं थी। अब की बात नहीं कर रहे।
अब तो चलो थोड़ा बहुत ट्यूबवेल का पानी ताजा आता है तो उससे नहाया जा सकता है, अच्छा पानी होता है। लेकिन उन टाइमों में माइनस डिग्री में भी और 50 में भी। शरीर को जैसा बना लो वैसा ही रहेगा। अब हमें लगता है कि यहां कोई बच्चे ऐसे भी बैठे होंगे, जो सारा दिन कंप्यूटर पर, फोन पर लगे रहते हैं। किलोमीटर भागना पड़ जाए सांस, ऊपर वाला एक किलोमीटर ऊपर होता है और नीचे वाला एक किलोमीटर पीछे होता है। पाँच-चार मिनट तो बात नहीं आती, उनसे पूछो आ, पा, है, यूं ही करते रहते हैं।
बात जुड़ती ही नहीं। और कितने किलोमीटर, एक किलो…मीटर…। भई उनके लिए बड़ी चीज है ना बेटा। खाना बनाया, रसोई के साथ टॉयलेट है, बनाते-बनाते आई फड़ाक। सुबह दूर जाने की जरूरत नहीं और तड़ाक। मतलब कब घूमे वो। उठे, बैग सा उठाया, गाड़ी में बैठे, साइकिल पर बैठे, स्कूटर पर बैठे, दफ्तर में गए फिर बैठे। टाइम मिल सकता है थोड़ी सी नींद त्याग दो, घूम सकते हो आप अगर चाहो तो। पर चाहो तो ना। रास्ते निकल आते हैं लेकिन निकालना चाहो तो। तो जिंदगी में अगर कंचन काया चाहते हो, तो एक्सरसाइज भी करो और राम का नाम भी जपो ताकि इस शरीर पर आने वाले पहाड़ जैसे कर्मों को मालिक राई में बदल दे और आपको पता ही ना चले। बच्चो ! बड़ा बैनेफिट का काम है, प्रोफिट का काम है।
नशे की आदत बर्बादी का संदेश
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आम लोग नशा करके समाज को बहुत बड़ा नुक्सान पहुंचा रहे हैं। आप हमें ये बताएंगे कि क्या ओलंपिक में नशा ज्यादा करने का कांपीटिशन करने जाओगे कि ज्यादा नशा कौन करता है। आप बताओगे कि क्या आपने इसलिए जन्म लिया है। क्या आप बताओगे कि आप गुलाम हो या आजाद हो। देश आजाद हो गया, लेकिन आपकी गुलामी तब टूटेगी, जब नशे की गुलामी से आजाद हो जाओगे। आपजी ने फरमाया कि नशा कई चीजों का होता है। शरीर थोड़ा अच्छा है, उसका नशा। उसको लगता है कि मेरे जैसा शरीर नहीं, उसी नशे में घूमता रहता है। सुंदरता का नशा, जमीन-जायदाद का नशा, राज-पहुंच का नशा, अच्छी पहुंच का नशा, सोच का सूक्ष्म नशा, उसको लगता है कि मैं ही दिमाग वाला हूँ, बाकी सब पैदल हैं, तो इस तरह नशे बहुत तरह के हैं।
बाकी पोस्त, भांग, अफीम, मद्य, शराब, हेरोइन, स्मैक, चिट्टा, पीला, लाल, नीला, पता नहीं कितने हैं। बहुत सारे नशे हैं। बच्चो आप क्यों गुलाम बने हो नशे के। कहते हैं छूटता नहीं जी। कैसे नहीं छूटता, क्या माँ के पेट से जब जन्म लिया था, साथ लेकर (नशा) आए थे। अरे माँ का साथ छोड़ देते हो, तो क्या नशा माँ से बड़ा हो गया, जो नहीं छोड़ना चाहिए वो छोड़ रहे हो और छोड़ना चाहिए उससे जुड़े पड़े हो। माँ का साथ, बाप का साथ, परिवार का साथ, जहां तक संभव हो रखो। नहीं रख पा रहे माँ-बाप में कमियां आ गर्इं हैं कोई बात नहीं, राड़ से बाड़ अच्छी, लेकिन उनका सत्कार करना ना भूलो। उनके लिए अपशब्द मुंह पर नहीं आने चाहिए।
ये घोर कलियुग है, यहां पूत कपूत भी होते हैं और माता भी कुमाता हो जाती है। क्योंकि हमने देखा, आपने भी सुना होगा कि कई बेटियों ने अपने स्वाद के लिए, लोलुपता के लिए, बुराई के लिए अपने पूरे के पूरे परिवारों का खात्मा कर दिया जिसमें उनके अपने बच्चे भी थे, बहन-भाई थे, माँ-बाप भी थे। बड़ा दर्द होता है। कई उदाहरण हो गए हैं ऐसे। तो किस तरफ जा रहा है आज का नौजवान? जी हमें तो गम है, आपके गम का नहीं पता चलता। अब यारी लगी किसी से, दो दोस्त आपस में बन गए तो नशा। टूट गई, जिसे आजकल के लोग ब्रेकअप कहते हैं, उसमें भी नशा। गम आ गया तो नशा, खुशी आ गई तो नशा, ठंडी हवा चली तो नशा, सूरज निकला तो नशा, सूरज बादलों में तो नशा, बरसात आ गई तो नशा, आप तो बहाना ढूंढते रहते हो। चाय पी ली, उसके बाद फिर नशा। कहते चाय के बाद तो पीनी पड़ती है।
जानते हो आप। हम देखते होते हैं चाय पी ली अच्छा अब ये खिसकेगा, खिसका, बस सलेंसर शुरू। अंदर से घूम-घूम कर धुंआ बाहर निकलता है। तो बच्चो ये क्या है? कौन सा जश्न मना रहे हो आप? क्या आपने कभी सोचा है, ये जो नशा करके जो जश्न मना रहे हो, ये आपके घर के लिए बर्बादी का संदेश है। समाज के लिए आप जो बहुत बड़ा स्तंभ बनने वाले थे, वो भरभराकर टूटने जा रहा है। दीमक को जानते हो, दीमक जब लग जाती है, गेट लगा हुआ है, दीमक ने अपना काम शुरू कर दिया, बाहर से दरवाजा वैसा ही है, पता नहीं चलता, लेकिन अंदर ही अंदर, अंदर ही अंदर, खाती चली जाती है, खाती चली जाती है और एक टाइम ऐसा आता है कि आपने जोर से दरवाजा बंद किया तो तड़ाक से आधा दरवाजा टूटकर वो गया, क्योंकि अंदर मिट्टी रह जाती है उनकी भरी हुई और सारा सामान खा जाती है।
तो बच्चो ये नशा दीमक आपको खा रहा है और हम आपको गारंटी देते हैं, राम का नाम, ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु का नाम जपो, ये दीमक मर जाएगी और आपका शरीर फिर से कंचन जैसा हो सकता है। क्या नहीं कर सकते आप। क्यों दिल छोटा करते हो। और ऊपर से जो उस्ताद होते हैं, जो नशा बेचने वाले उनकी भ्रांतियां बहुत फैलाई हुई हैं। कहते हैं एकदम नशा छोड़ा तो लकवा हो जाएगा, एकदम नशा छोड़ दिया तो दिमाग हिल जाएगा। एकदम नशा छोड़ दिया चारपाई पर पड़ जाएगा, इत्यादि, इत्यादि।
आओ मिलकर मौत केमुंह में जाते माताओं के बेटों को बचाएं
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि हमने छह करोड़ लोगों का नशा छुड़वाया बच्चो, एक भी ना तो चारपाई पर पड़ा और ना किसी को लकवा हुआ। 10 से 20 बोतल शराब पीने वाले, चरस, हेरोइन, स्मैक, चिट्टा खाने वाले, अफीम के कई-कई तौले खाने वाले, भयानक नशा करने वाले बच्चों को भी देखा कि वो आए, राम के नाम से जुड़े, भक्ति की और आज आॅनलाइन भी बैठे होंगे और यहां भी वो बच्चे सेवा कर रहे हैं। आज नशा छोड़कर अव्वल कोटि के भक्त बने हुए हैं हमारे छह करोड़ बच्चे। इसमें 65 से 70 प्रतिशत यूथ है, जिसने नशा छोड़ दिया।
तो दिन-रात एक करके सेवादार भाई लगे हुए हैं नशा छुड़वाने में और हम बार-बार आह्वान कर रहे हैं, हमारे देश के मौजिज लोगों से, और वो लोग भी कदम उठा रहे हैं। हमें बड़ी खुशी हुई, हम उनको साधुवाद कहते हैं जिन्होंने भी कदम उठाए हैं। सभी धर्मों के मौजिज लोगोें से भी हम हाथ जोड़कर विनती करते हैं और करते रहेंगे जब तक आप लोग लगोगे नहीं, आप भी आओ, ओउम्, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम नाम से लोगों का नशा छुड़वाओ तो सही। अरे एक माँ के बेटे का नशा छुड़वाकर उससे मिलवा दिया तो पता नहीं कितने पुण्य के बराबर, कितने यज्ञ के बराबर वो पुण्य होगा।
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