बरनावा। सच्चे दाता रहबर पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां 18 अक्तूबर दिन मंगलवार सुबह शाह सतनाम जी आश्रम, बरनावा जिला बागपत (उत्तर प्रदेश) से आॅनलाइन रूबरू हुए और देश-विदेश की करोड़ों साध-संगत को अपने पवित्र दर्श-दीदार से सराबोर किया। इस अवसर पर पूज्य गुरू जी ने अपने पवित्र मुखारबिंद से ‘‘आके सत्संग में विचार कर ले, मानस जन्म का उद्धार कर ले, प्रभु है तेरा भला करे, मालिक तेरा भला करे।’’ भजन सुनाया। इस भजन की व्याख्या करते हुए आपजी ने फरमाया कि पतझड़ में बहार लगती है, कब लगती है? जब शरीर तंदुरूस्त हो और दिमाग खुश हो। बहार भी पतझड़ लगती है जब दिमाग में टैंशन भरी पड़ी हो और शरीर बीमारियों से घिरा हो।
कितनी बहार आ जाए, ऐसे लगेगा पतझड़ है। तो जब शरीर में तंदुरूस्ती होगी और दिमाग टैंशन फ्री होगा, जब दिमाग में आत्मबल परिपूर्ण होगा तो आपके शरीर में पतझड़ भी बहार लगेगी। और जब बहार लगेगी, बहार में जो बीज बोया जाता है वो फलता-फूलता है। सूखे में बोई हुई कोई चीज उगती नहीं, ऐसे थोड़ा ही ना बरसात को उड़ीकते (इंतजार) रहते हैं लोग। बस सही समय पर आ जाए। लेकिन आजकल गड़बड़ हो रही है, जब नहीं चाहिए तब आती है और जब चाहिए आती नहीं, ये क्यों होता है? ऐसा क्यों हो रहा है? इस पर भी बात करेंगे।
इसकी वजह है, जो हमने अनुभव किया, आपको बोला था पिछली बार आए थे कि शाह सतनाम, शाह मस्तान जी दाता ने इस बॉडी से पता नहीं क्या काम लेना है, जो इतनी तपस्या करवाई उन्होंने, तो फिलिंग आती है, महसूस होता है, ऐसा तब होता है, मालिक ऐसा करे ना, मालिक से दुआ है, सतगुरु-मौला से, ये परिवर्तन तब आते हैं, जब प्रलय की तरफ दुनिया बढ़ रही होती है।
परहित परमार्थ में आगे हैं सत्संगी
पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि आप दुनिया में कोई भी काम-धंधा करते हैं, बिजनैस-व्यापार करते हैं, किस लिए करते हैं? अपने शरीर के लिए, बाल बच्चों के लिए, और किसी चीज के लिए तो नहीं करते आप। हाँ, सत्संगी जो हैं, वो परहित परमार्थ करते हैं, ये तो बेमिसाल है, ये तो बात ही अलग है। लेकिन इनके अलावा दुनिया में तो ये ही मकसद होता है या तो शरीर के लिए, या फिर औलाद के लिए, माँ-बाप के लिए अब कम होता जा रहा है सौदा। तो ये सारे कर्म आप करते रहते हैं और इन कर्मों से आपको लगता है कि जीवन जीने का उद्देश्य पूरा हो रहा है, मकसद हमारा यही है।
नहीं, आप भूल गए हैं, ये जो आप दुनिया में मस्त हुए बैठे हैं, ये तो धीरे-धीरे छूटता जाएगा, कोई आज साथ छोड़ गया, कोई कल साथ छोड़ गया, जब तक खिलाओ, पिलाओगे अपने हैं, मुट्ठी बंद हुई नहीं, निकल बाहर। आप जानते हैं स्वार्थ, गर्ज हावी हो गया है, तो आपने इसको मकसद बना रखा है, जबकि ये नहीं मनुष्य शरीर का सबसे बड़ा मकसद है उस शक्ति को पाना, उस ताकत को पाना जो सबको बनाने वाली है, सब कुछ देने वाली है। उसकी तरफ तो ध्यान ही नहीं है, आप इसी में खो गए हैं, इसी के हो गए हैं।
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