Jaggery: कभी म्हारे हरियाणा की पहचान था ‘गुड़’, अब नजर आते हैं इक्का-दुक्का कोल्हू

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Kurukshetra News: कभी म्हारे हरियाणा की पहचान था ‘गुड़’, अब नजर आते हैं इक्का-दुक्का कोल्हू

कुरुक्षेत्र (सच कहूँ/देवीलाल बारना)। Ikka Dukka Kolhu: एक समय था जब हर गांव में किसानों के खेत में कोल्हू चलता था और लगभग हर किसान गुड़ का उत्पादन करता था। चीनी का रसोई में नाममात्र ही स्थान था लेकिन एक समय अब है जब गुड़ का पूरा-पूरा स्थान चीनी ने ले लिया है और खेतों में जगह-जगह दिखाई देने वाले कोल्हू लगभग खत्म हो चुके हैं। ऐसे में हरियाणा जैसे प्रदेश में गुड़ का कोल्हू कुछ स्थानों पर ही मिल पाता है। जबकि गन्ने का उत्पादन बड़े स्तर पर हरियाणा में होता है लेकिन किसान गन्ने को शुगर मिल में ही पहुंचाते हैं। हालांकि हरियाणा के साथ लगते उत्तर प्रदेश में सड़कों पर अनेक कोल्हू दिखाई दे जाते हैं। Kurukshetra News

समय के साथ भी नहीं बदली तकनीक

यूं तो जैसे-जैसे समय बीतता है तकनीक भी बदलती रहती है लेकिन गुड़ बनाने के लिए पुरानी तकनीक का ही इस्तेमाल हो रहा है। पहले जहां कोल्हू को बैलों के माध्यम से चलाया जाता था और गन्ने से रस निकाला जाता था। जबकि आधुनिक समय में गन्ने से रस निकालने के लिए बैलों की बजाय इंजन का प्रयोग किया जाता है। इसके बाद जो गुड़ बनाने की तकनीक है सारी ज्यों की त्यों है।

ईंधन के रूप में प्रयोग होती है खोई

गन्ने के रस को पकाने के लिए ईंधन के रूप में गन्ने की खोई का प्रयोग ही किया जाता है। गन्ने से रस अलग हो जाता है और सुखी खोई अलग हो जाती है जिससे रस को पकाने के लिए ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। खोई की आंच तेज होती है जिसे आसानी से रस से राब बनाई जाती है। ऐसे में ईंधन के लिए गुड़ उत्पादक को ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती। Kurukshetra News

इस प्रकार निकाला जाता है गुड़ | Kurukshetra News

कोल्हू चलाने वाले मोहम्मद शादाब का कहना है कि सबसे पहले गन्ने से रस निकालने का काम किया जाता है जोकि दबाव डालकर निकाला जाता है और रस के बाद बचे हुए मलबे को खोई कहा जाता है। यह रस एक बड़े बर्तन में इकट्ठा होता है। जिसमें सुगलाई डालकर रस की मैली बाहर निकाली जाती है। इसके बाद रस को पकाने की प्रक्रिया शुरू होती है और बड़े लोहे की कड़ाही के माध्यम से रस को पकाया जाता है। रस पककर गाढ़ा हो जाता है जिसे राब कहा जाता है। इसके बाद राब से गुड़ की रेपडी बनाई जाती हैं।

जब कोई रिश्तेदार आता था तो बनती थी चीनी की चाय

ग्रामीण जयपाल सिंहमार ने पुराने समय को याद करते हुए कहा कि ग्रामीण एरिया में गुड़ की खपत इतनी ज्यादा थी कि चाय मीठी करने के लिए गुड़ का इस्तेमाल किया जाता था, दूध को मीठा करने के लिए गुड़ का इस्तेमाल किया जाता था, या फिर अन्य पकवान जो मीठे होते थे उन्हें मीठा करने के लिए गुड़ का ही इस्तेमाल किया जाता था। उन्होंने कहा की एक समय वह भी था कि चीनी डिपो के माध्यम से मिलती थी। और घर में चीनी का इस्तेमाल उस वक्त ही किया जाता था जब कोई रिश्तेदार आता था तो उनके लिए चाय मीठी करने के लिए चीनी या फिर दूध को मीठा करने के लिए चीनी का इस्तेमाल किया जाता था। Kurukshetra News

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