विनाश को संकेत देते महासागर

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प्रकृति के साथ खिलवाड़ के चलते वह दिन दूर नहीं जब महासागर विनाश का कारण बनने लगेंगे। ऐसे में महासागरों को बचाने के लिए दुनिया के 193 देशों द्वारा एक साथ आने का संकल्प निश्चित रुप से सुखद समाचार है।

महासागर जिसकी पहचान ही धीर-गंभीर मानी जाती रही है, भविष्य में विनाश का संकेत देने लगे हैं। एक ओर तापमान में लगातार बढ़ोतरी से ग्लेसियर पिघलते जा रहे हैं, जिसका सीधा असर महासागरों के जल स्तर में बढ़ोतरी के रुप में सामने आने लगा है, वहीं समुद्र में अंदरुनी हलचल भी तेज होने लगी है। समुद्री जीव जंतु और पौध-पादप का अस्तित्व प्रभावित होने लगा हैं।

एक मोटे अनुमान के अनुसार महासागरों में 15 करोड़ टन प्लास्टिक फैल चुका है। सवा पांच लाख करोड़ टुकड़े महासागरों में तैर रहे हैं। प्रदूषण के चलते महासागरों का सांस लेना भी दूभर होने लगा है।

समुद्र में आॅक्सिजन का स्तर कम होने लगा है। एक और महासागरों में प्रदूषण फैल रहा है दूसरी ओर समुद्री जीवों का अत्यधिक दोहन खासतौर से मछलियों के अधिक शिकार, ग्लेसियरों के पिघलने से बढ़ता जल स्तर इस कदर चिंतनीय होता जा रहा है कि वैज्ञानियों द्वारा यहां तक कयास लगाया जाने लगा है कि समुद्र के किनारे बसे शहरों के अस्तित्व पर संकट आ रहा है।

समुद्री गतिविधियों में बदलाव का स्पष्ट संकेत आए दिन सुनामी और समुद्री तूफानों के माध्यम से देखा जा सकता है। समुद्र में प्रदूषण के चलते यह तो विनाश की शुरुआत के रुप में देखा जा सकता है।

देखा जाये तो प्रकृति ने संतुलन बनाए रखने के लिए ही धरातल और महासागरों का अनुपात तय किया है। महासागरों को भी संतुलित तरीके से व्यवस्थित किया है। प्रकृति से खिलवाड़ के चलते जल, थल और वायु प्रदूषण का असर सीधे-सीधे दिखाई देने लगा है।

अतिवृष्टि और अनावृष्टि आम होती जा रही है। एक साथ अधिक बरसात के चलते औसत बरसात तो दिख जाती है पर मौसम के अनुसार बरसात से जल संचय अधिक सुचारु नहीं हो पाता है। दुनिया में जल संकट बढ़ता जा रहा है। समुद्री पानी में अम्लता बढ़ती जा रही है।

आबादी के दबाव, अत्यधिक शहरीकरण, भूगर्भ का अत्यधिक दोहन, रसोई गैस, पेट्रोल आदि र्इंधन और बड़े-बड़े संयत्रों में थर्मल और कोयला, गैस आधारित ऊर्जा स्रोत, कल कारखानों की धुआं उगलती चिमनियां प्रदूषण को बढ़ाती जा रही हैं।

इसके अलावा इलेक्ट्रोनिक कबाड़ और समुद्र में फैंका जा रहा कचना विनाश का कारण बनता जा रहा है। हमारे जीवन में प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग ने प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने में सबसे अधिक भूमिका निभाई। जीवन में प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग से वातावरण पूरी तरह से असंतुलित होता जा रहा है।

प्लास्टिक का कचरा धरती, धरती के जीवों, जंगलों, नदी-नालों ही नहीं अब तो समुद्र तक को प्रभावित करने लगा है। प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग और इसके निस्तारण के ठोस प्रयास नहीं होने से पूरा वातावरण प्रभावित हो रहा है। जानवर प्लास्टिक खाने से असमय मृत्यु का कारण बन रहे हैं। जल स्रोतों मेंं प्लास्टिक बाधक व प्रदूषण का कारण बन रही है।

पिछले दिनों जून माह की 5 से 9 जून तक संयुक्त राष्टÑ के नेतृत्व में दुनिया के देशों ने महासागरों को बचाने के लिए किए जाने वाले उपायों पर गंभीर चिंतन मनन किया है। समुद्री कचरे को हटाने में सहयोग के लिए दुनिया भर के गैर सरकारी संगठनों ने भी आगे आने की पहल की है।

दुनिया के 193 देशों ने एक साथ आकर महासागरों को बचाने के लिए सामूहिक प्रयास करने का संकल्प लिया है। संयुक्त राष्टÑ महासभा के अध्यक्ष पीटर थामसन ने बताया कि इन पांच दिनों में समुद्री जीवन को बर्बादी से बचाने रोकने के उपायों पर विचार किया गया है। महासागरों के सामने उभरते खतरों से निपटना और महासागरों का संरक्षण बड़ी चुनौती है।

जिस तरह से आज चीन की राजधानी सहित दुनिया के कई देशों मेंं धुंध के प्रभाव से जीवन प्रभावित हो रहा है उसी तरह की चुनौती आने वाले समय में सागरों में भी बढ़ने वाली है। समुद्र का जल स्तर बढ़ने लगा है।

ग्लेसियर पिघलने से टापुओं के अस्तित्व खतरे में पड़ने के साथ ही समुद्री यातायात प्रभावित होने और ग्लेशियरों के पानी से महासागरों के जल स्तर में अधिक बढ़ोतरी होने से स्थितियां गंभीर होने लगी है।

पिछले सालों में सुनामी और समुद्री तूफानों की मात्रा अधिक बढ़ी है। समुद्री किनारे वाले शहरों में आए दिन तूफानों से जीवन दूभर होने लगा है। जनहानि के साथ ही बेतहाशा धन हानि होने लगी है। प्लास्टिक के दुष्प्रभाव के कारण इसके उपयोग पर अब कई देशों द्वारा प्रतिबंध लगाया जाने लगा है। इलेक्ट्रोनिक कचरा भी महासागरों को प्रभावित कर रहा है। इसके चलते महासागरों की दुर्लभ प्रजातियों पर संकट आने लगा है।

दुनिया में अब अधिक गरमी पड़ने लगी है। तापमान में बढ़ोतरी इसका साफ संकेत है। समुद्री हलचल प्रभावित होने लगी है। ऐसे में महासागरों के अस्तिÞत्व को बचाने के लिए दुनिया के देशों द्वारा साझा और ठोस प्रयास करने का निर्णय शुभ संकेत माना जा सकता है।

आशा की जानी चाहिए कि आने वाले समय में महासागरों को भी प्रदूषण रहित करने के ठोस प्रयास करने होंगे और सम्मेलन केवल चिंता तक सीमित ना रहकर कारगर बनाने होंगे। लोगों को भी अपनी आदतों में बदलाव लाना होगा। कचरा प्रबंधन समझना होगा तभी जाकर इस तरह के प्रदूषण को रोका जा सकेगा।

-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

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