परमाणु युद्ध के खतरे और परमाणु निशस्त्रीकरण

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महाशक्तियों के अंतर्द्वन्द्व, विरोधाभासों एवं शक्ति प्रदर्शन के कारण दुनिया परमाणु युद्ध के मुहाने पर खड़ी है। 1945 में जापान पर परमाणु बम गिराने के 72 वर्ष बाद दुनिया पुन:परमाणु बम के संकट से बुरी तरह घिरी हुई है। ऐसे में दुनिया को परमाणु हथियारों से मुक्त करने की पहल को नोबेल शांति पुरस्कार दिया जाना एक प्रशंसनीय कदम है। दुनिया से परमाणु हथियार खत्म करने के प्रयास में जुटे संगठन “इंटरनेशनल कैंपेन टू एबोलिश न्यूक्लियर वेपन्स (आईसीएएन)” को वर्ष 2017 का शांति का नोबेल पुरस्कार दिया जा रहा है। नार्वे स्थित नोबेल समिति ने वैश्विक संधि के जरिए परमाणु हथियारों को कानूनी तौर पर प्रतिबंधित कराने के प्रयास के लिए आईसीएएन की सराहना की है। इस पुरस्कार के तहत संगठन को 1.1 करोड़ डॉलर (करीब 7.15 करोड़) की नगद राशि और प्रतीक चिह्न प्रदान किया जाएगा।

इस संस्था को यह पुरस्कार तब दिया जा रहा है, जब संपूर्ण विश्व परमाणु युद्ध के आशंका से डरी सहमी हुई है। कोरियाई प्रायद्वीप में परमाणु युद्ध की आशंकाएँ आज सबसे तीव्र महसूस की जा रही है। पिछले 3 सितंबर को दुनिया के तमाम विरोधों तथा दबावों को दरकिनार करते हुए उत्तर कोरिया ने अपना 6 ठा परमाणु परीक्षण किया, जो मूलत: हाइड्रोजन बम का परीक्षण था। इस हाइड्रोजन बम की ताकत नागासाकी पर गिराये परमाणु बम से 6 गुना ज्यादा थी। यही कारण है कि इस परमाणु परीक्षण के बाद पूरी दुनिया में परमाणु युद्ध के खतरों को लेकर खलबली मची हुई है।

जापान, दक्षिण कोरिया तथा अमेरिकी द्वीप गुआम में तो लोगों को परमाणु युद्ध से बचाव के लिए लगातार प्रशिक्षण भी दिए जा रहे हैं। कभी अमेरिका संपूर्ण उत्तर कोरिया को परमाणु बम से भस्म करने की धमकी दे रहा है, तो कभी उत्तर कोरिया के सनकी तानाशाह किम जोंग उन जापान एवं अमेरिका को परमाणु बमों से तबाह करने की धमकी दे रहे हैं। कोरियाई प्रायद्वीप के अतिरिक्त भारतीय उपमहाद्वीप में भी पाकिस्तान हमेशा भारत को परमाणु बमों की धमकी देता रहता है। पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की सुरक्षा को लेकर भी प्रश्न उठते रहते हैं। पाकिस्तानी हथियार कभी भी आतंकवादियों के हाथ लग सकते हैं। ऐसे में भारतीय महाद्वीप में तो स्थिति की गंभीरता को स्पष्टत: समझा जा सकता है।

दक्षिण चीन सागर में चीनी वर्चस्व को तोड़ने के लिए बार-बार अमेरिकी एवं चीनी परमाणु युद्धपोत आमने-सामने हो जाते हैं। ज्ञात हो कि चीन ने पिछले तीन वर्षों में दक्षिण चीन सागर के कृत्रिम द्वीपों का निर्माण कर लगभग दो तिहाई दक्षिण चीन सागर पर कब्जा कर लिया है। ऐसे में चीन के इस वर्चस्व को अब जब अमेरिका चुनौती दे रहा है, तब परमाणु युद्ध की संभावनाएँ दक्षिण चीन सागर में भी खुल जाती हैं। सीरिया संकट में अमेरिकी एवं रूसी परमाणु शक्तियाँ अभी आमने – सामने खड़ी है। आतंकवाद के खात्मे के नाम पर अमेरिका एवं रूस दोनों जिस प्रकार स्वार्थलोलुप दृष्टि से सीरिया में आमने-सामने हो रहे हैं, उससे सीरिया में भी भविष्य में परमाणु युद्ध की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है।

मध्यपूर्व के अरब-इजराइल विवाद में भी सदैव अत्यधिक तनाव मौजूद रहता है। इजराइल को सदैव हिजबुल्ला छापामारों एवं हमास जैसे संगठनों से निपटना होता है। इस क्षेत्र में भी फिलस्तीन मामले को लेकर लंबी अवधि से अभूतपूर्व तनाव की स्थिति बनी हुई है। यहाँ पर इजराइल भी परमाणु शक्ति संपन्न देश है । अगर भविष्य में कभी भी इजराइल ने धैर्य खोया तो इस क्षेत्र में भी परमाणु युद्ध की आशंकाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि इस समय संपूर्ण विश्व पर परमाणु युद्ध की प्रबल संभावनाएँ हैं। इसलिए नोबेल पुरस्कार समिति ने “इंटरनेशनल कैंपेन टू एबोलिश न्यूक्लियर वेपन्स (आईसीएएन)” को ऐसे समय शांति का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की है, जब उत्तर कोरिया न केवल परमाणु परीक्षण कर रहा है, बल्कि हमले की भी धमकी भी दे रहा है।

आईसीएएन की स्थापना 2007 में वियना में की गई थी। फिलहाल 101 देशों के 468 गैरसरकारी संगठन इससे जुड़े हुए हैं। आईसीएएन दुनियाभर की समस्याओं को परमाणु हथियारों से पैदा हुए खतरे को लेकर आगाह कर रहा है। साथ ही इस अभियान के तहत परमाणु संपन्न देशों को नष्ट करने की अपील की जा रही है। इस कैंपेन का असर यह हुआ कि इसी वर्ष 7 जुलाई 2017 को संयुक्त राष्ट्र के 122 सदस्य देशों ने परमाणु हथियारों को प्रतिबंधित करने वाली संधि को स्वीकार किया था। इसमें हालांकि भारत, अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन, ब्रिटेन, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इजराइल शामिल नहीं हैं। आईसीएएन के प्रयास से संयुक्त राष्ट्र में पारित संधि “ट्रीटी आॅन द प्रोहिबिशन आॅफ न्यूक्लियर वेपंस (टीपीएनडब्लू)” परमाणु हथियारों को पूरी तरह से नष्ट करने की पहली अंतर्राष्ट्रीय संधि है।

इस संधि को संयुक्त राष्ट्र के 122 सदस्य देशों ने स्वीकार किया है। लेकिन जब 50 देश इसे हस्ताक्षरित और अनुमोदित करेंगे, तभी संधि प्रभावी होगी। नोबेल समिति द्वारा जारी बयान के मुताबिक 108 देशों ने संधि के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है। इसके प्रभावी होने पर परमाणु हथियार भी बारुदी सुरंग, क्लस्टर आयुध और जैविक व रासायनिक हथियार की तरह कानूनी तौर पर प्रतिबंधित हो जाएंगे। एक आंकड़े के मुताबिक रूस के पास 7000, अमेरिका के पास 6800, फ्रांस के पास 300, चीन के पास130, भारत के पास 120 तथा इजराइल के पास 80 परमाणु हथियार हैं। ऐसे में परमाणु युद्ध के विकरालता को समझा जा सकता है। परमाणु बमों की लगातार धमकियों से स्थिति और बिगड़ रही है।

यही कारण है कि आईसीएएन की कार्यकारी निदेशक बिट्रिस फेन ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरियाई तानाशाह किम जोंग को कड़ा संदेश दिया है। उन्होंने कहा, “परमाणु हथियार अवैध हैं। इनकी धमकी देना भी गैरकानूनी है। परमाणु हथियार रखना और उसका विकास अवैध है। इसे रोकने की जरूरत है।” जहाँ एक ओर मानवता की रक्षा के लिए परमाणु निशस्त्रीकरण की बात हो रही है, वहीं उत्तर कोरिया तथा महाशक्तियों हाइड्रोजन बम की ओर अग्रसर हो रही हैं। ऐसे में हाइड्रोजन बम की विनाशलीला को समझना आवश्यक है।

हाल ही में सियोल के कुकमिन यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने न्यूयार्क जैसे बड़े शहर पर हाइड्रोजन बम से हमले की कल्पना कर संपूर्ण दुनिया को इसकी भयंकर विनाशलीला से परिचय कराया। अगर उत्तर कोरिया अपने हाइड्रोजन बम का प्रयोग न्यूयॉर्क जैसे शहर पर करता है, तो पूरा न्यूयॉर्क शहर तबाह हो जाएगा और एक भी आदमी जिंदा नहीं बचेगा। सियोल की कुकमिन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर एंड्री बताते हैं कि एक हाइड्रोजन बम न्यूयॉर्क शहर को पूरी तरह से तबाह कर सकता है। धमाके के बाद एक भी व्यक्ति जीवित नहीं बचेगा, जबकि एक परमाणु बम से न्यूयार्क शहर का एक हिस्सा मैनहटन ही तबाह हो पाएगा। ज्ञात हो कि न्यूयॉर्क शहर की आबादी 85 लाख है और क्षेत्रफल 789 वर्ग किमी है।

उत्तर कोरिया के सफल हाइड्रोजन बम परीक्षण पर सिओल यूनिवर्सिटी के न्यूक्लियर विभाग के प्रोफेसर सुह कहते हैं कि उत्तर कोरिया का यह परीक्षण गेम चेंजर नहीं बल्कि गेम ओवर है। ऐसे में आईसीएएन के परमाणु मुक्त विश्व के प्रयासों को शांति का नोबेल पुरस्कार दिया जाना, सर्वथा उचित, प्रशंसनीय व प्रासंगिक कदम है। आईसीएएन के इस कैंपेन की बदौलत ही दुनिया को परमाणु हथियारों से मुक्त कराने की दिशा में धीमी गति से ही सही, पर गंभीर प्रयास शुरू हुए हैं।पूर्व में भी अमेरिका एवं रूस ने आपसी समझौतों के द्वारा भारी संख्या में अपने परमाणु जखीरे को घटाया है। सच तो यही है कि परमाणु हथियारों से दुनिया के खत्म होने का खतरा है। जब तक ये हथियार रहेंगे, खतरा बरकरार रहेगा। इसलिए सुरक्षित विश्व तथा मानवता की रक्षा के लिए परमाणु निशस्त्रीकरण अब अपरिहार्य हो चुका है।

-राहुल लाल