सी.बी.आई की अब भला आवश्यकता ही क्या?

Now what is the need of the CBI?

आन्ध्र प्रदेश की चन्द्र बाबू नायडू सरकार ने केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) का आन्ध्र प्रदेश में सरकार की बिना अनुमति प्रवेश वर्जित कर दिया है, जिससे संबंधित राज्य सरकार ने एक नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है। इसी आधार पर पश्चिम बंगाल व पंजाब सरकार भी सीबीआई के प्रवेश को वर्जित करने का मन बना चुके हैं। ऐसा हो भी क्यों ना? सीबीआई ने अपनी कार्यप्रणाली से इतनी अधिक फजीहत करवा ली है कि इसे क्रप्शन ब्यूरो आॅफ इंडिया कहा जाने लगा है। सीबीआई की काम करने की प्रवृति आजाद व निष्पक्ष नहीं रही है, जिसके चलते आए दिनों विभिन्न मामलों में उच्च न्यायलयों व उच्चतम न्यायलय द्वारा इसे लताड़ा भी जाता है। सीबीआई की स्थापना इसलिए की गई थी कि यह देश स्तर के एवं राज्य पुलिस के भेदभाव से दूर मामलों की निष्पक्ष जांच करे। खासकर जो अपराध बहुत अधिक प्रभावशाली लोगों द्वारा किए जा रहे हैं, जिनमें कहीं न कहीं स्थानीय पुलिस अपने आपको असहाय पाती है। लेकिन सीबीआई ने केन्द्र सरकार के चलाने वाली पार्टी इशारों पर यहां विपक्षी दलों के नेताओं को निशाना बनाना शुरु कर दिया, वहीं इसने भ्रष्ट कॉर्पोरेट जगत से सांठगांठ कर खुद भी भ्रष्टाचार में पैर रख लिए, जिस सबके लिए राज्य पुलिस प्रशासन बदनाम थे। अब जब राज्य पुलिस प्रशासन की तरह ही अपराधों का अन्वेषण होना है तब सीबीआई नाम के सुरक्षा एवं जांच संगठन की भला आवश्यक्ता ही क्या है? देश ने जांच के लिए सीबीआई व सीबीआई के मामलों में शीघ्र विचारण के लिए सीबीआई की स्पैशल अदालतें भी गठित की हुई हैं। अब यहां एक गंभीर सवाल यह खड़ा हो गया है कि जब सीबीआई की स्वयं की कार्र्यशैली ही सवालों के घेरे में आ गई है, राज्य सरकारें अपने यहां सीबीआई का प्रवेश बंद कर रही है तब सीबीआई अदालतों में भी न्याय हो रहा है। इसकी भला क्या गारंटी है? न्यायलय अपना निर्णय तथ्यों, गवाहों, सबूतों के सन्दर्भ में देते हैं, जब तथ्य गढ़े गए, गवाह रटाए गए, सबूतों में छेÞड़छाड़ की गई या आधे अधूरे केस हो रहे हैं तब न्याय कैसा? भ्रष्टाचार ने देश के सारे तंत्र को उलझा दिया है। इसमें कोई दोराय नहीं है। चाणक्य सही कहते थे कि भ्रष्ट व दुष्ट लोगों को सत्ता तक मत पहुंचने दो अन्यथा वह सदाचारी, त्यागी, ईमानदार, पुरुषार्थी लोगों का जीना दूभर कर देंगे। देश ने अंग्रेजों की सत्ता, उखाड़ी कि स्वराज लाएंगे लेकिन हर चुनाव में भ्रष्टता को सींचा जाने लगा, जिसके परिणाम अब देश देख रहा है। देश की शीर्ष संस्थाएं, इसके महत्वपूर्ण प्रशासनिक अंग आज भ्रष्टाचार के पंजे में बुरी तरह से फंसे हुए कसमसा रहे हैं और एक-एक कर नष्ट होने की ओर बढ़ रहे हैं। अच्छा है यदि इन संस्थाओं का अंत कर नए सिरे से नयी व साफ सुथरी व्यवस्था को बना लिया जाए। इससे भारत की आने वाली पीढ़ियां तो कम से कम एक ईमानदार व सुशासित व्यवस्था में जी सकेंगी।

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