अब नई जीवनशैली के साथ आगे बढ़ना होगा

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कोरोना वायरस दुनिया के लिए खतरनाक है। यह 180 से अधिक देशों में अपने पांव पसार चुका है। लाखों जिंदगियां ये वायरस अब तक लील चुका है। और लाखों लोग संक्रमित हो गए हैं। हमारे देश में संक्रमितों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। अच्छी खबर यह है कि हमारे यहां ठीक होेने वाले मरीजों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। इन सबके बीच लॉकडाउन की अवधि को एक महीने तक के लिए बढ़ाया गया है।
इस लॉकडाउन में काफी रियायतें दी गई हैं। इसलिए इसे लॉकडाउन की बजाय अनलॉक कहना ज्यादा मुनासिब होगा। मीडिया खबरों के मुताबिक ये अनलॉक कई चरणों में लागू होगा और धीरे-धीरे सारी व्यवस्थाएं पूर्व की भांति गतिमान होंगी। अनलॉक के इस चरण में छूट का दायरा विस्तृत हुआ है लेकिन इस छूट ने आम व्यक्ति की जिम्मेदारी को भी बढ़ा दिया है। क्योंकि कोरोना वायरस अभी देश में जिंदा है। लोग लगातार संक्रमण का शिकार हो रहे हैं। ऐसे में छूट को पूर्ण आजादी मानने से नुकसान होना लाजिमी है।
केन्द्र सरकार की नयी गाइडलाइन के मुताबिक कुछ राज्यों को छोड़कर लॉक डाउन काफी हद तक वापिस ले लिया गया। हालांकि बाजार वगैरह शाम जल्दी बंद हो जायेंगे और रात 9 बजे से सुबह पांच तक कर्फ्यू रहेगा किन्तु शॉपिंग माल, सिनेमा, पार्लर जैसे व्यवसाय बंद रहेंगे। होटल, रेस्टारेंट आदि 8 जून से खुल जायेंगे जबकि स्थानीय सार्वजनिक परिवहन भी कुछ बंदिशों के साथ शुरू करने की छूट दी जायेगी। रेल गाड़ियों का संचालन भी बढ़ा दिया गया है। प्रदेशों के अंदर और बाहर आवागमन पर भी रोक काफी हद तक हटा ली गई है। सीमित क्षेत्रों में हवाई सेवाएं भी शुरू हो ही चुकी है। शिक्षा संस्थानों को खोलने का फैसला जुलाई में किया जाएगा। लॉक डाउन की अवधि में देशवासियों ने जो देखा और भोगा उसके बाद अनलॉक-1 में मिली छूट ताजी हवा के झोंके के समान है। जिसने घरों में बन्द देशवासियों के जीवन में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार किया है। लेकिन इन राहतों और रियायतों के बीच अनलॉक-1 को लेकर सवाल भी उठाए जा रहे हैं कि जब देश में प्रतिदिन 5 से 6 हजार नये संक्रमित मामले आ रहे हों तब लॉक डाउन में बड़ी छूट देने का क्या औचित्य है?
वास्तव में लॉकडाउन के चलते पूरा देश ठप हो गया था। करोड़ों देशवासियों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया था। आर्थिक मोर्च पर आम आदमी से लेकर उधोगपति तक संकट का सामना करने लगा था। ऐसे में राज्यों से सलाह लेकर केंद्र ने ये कदम उठाया जिसके पीछे मुख्य उद्देश्य आर्थिक गतिविधियों को गति प्रदान करना है। सरकारी और प्राइवेट दफ्तर भी सौ प्रतिशत हाजिरी के साथ काम करने लगे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कारखानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठान खुलने से क्रमश: उत्पादन और बिक्री दोनों को सहारा मिलेगा। सबसे बड़ी बात ये होगी कि रोजनदारी वाले श्रमिकों के अलावा निजी क्षेत्र के छोटे कर्मचारियों की बेरोजगारी दूर हो सकेगी। रबी फसल के बाद इन दिनों अनाज मंडियों में जबरदस्त कारोबार रहता है जिसको काफी नुकसान हुआ। मानसून देश में प्रवेश कर चुका है। ऐसें में जून माह अनाज व्यापार के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहेगा।
अर्थव्यस्था के मोर्चे पर देखे तो शादी-ब्याह का पूरा सीजन में लॉकडाउन की वजह से प्रभावित हुआ। शादी के सीजन का सीधा असर टेंट, सुनार, मैरिज हॉल, कैटरर्स, कपड़ा, फूल, सब्जी, फल आदि व्यवसायों पर सीधे तौर पर पड़ा। उसी तरह, कूलर, एयर कंडीशनर आदि का व्यवसाय भी मार खा गया। लबोलुबाब यह है कि एक भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जो लॉकडाउन की वजह से प्रभावित न हुआ हो। लेकिन लॉक डाउन जरूरी से ज्यादा मजबूरी बन गया था। भले ही कोई कुछ भी कहे किन्तु उसका विकल्प नहीं था और लोगों की जान बचाने से बड़ी प्राथमिकता दूसरी नहीं हो सकती थी। अर्थव्यवस्था को जो नुकसान हुआ वह तो अपनी जगह है परन्तु अल्प आय वर्ग के सामने जो मुसीबतें आ गईं उनके मद्देनजर ये जरूरी हो चला था कि धीरे-धीरे ही सही लेकिन जनजीवन को सामान्य किया जाए। लेकिन इसके साथ ही देशवासियों की जिम्मेदारी और बढ़ गयी है। क्योंकि कोरोना से बचाव करने के लिए छोटी-छोटी बातों को नजरंदाज करना बड़े नुकसान का कारण बन सकता है।
भले ही राज्य के भीतर और बाहर आवाजाही पर रोक हटा ली गई है परन्तु ये छूट संक्रमण फैलाने का कारण न बने ये चिंता सरकार से ज्यादा लोगों को खुद करना होगी। ये जान लीजिए कि सरकारी प्रबंध एक सीमा तक जाने के बाद खत्म होते जाएंगे। कोई ये सोचे कि वह लापरवाह बना रहे और सरकार सजग रहे तो ये गलत होगा। अपने और अपनों के स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहना हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है और यही सोचकर लॉक डाउन में काफी हद तक रियायतें दी गईं हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि हम सबके सामने कई चुनौतियों हैं, जिनसे पार पाना अभी बाकी है। लॉकडाउन के विभिन्न चरणों में भारी संख्या में प्रवासी श्रमिकों का पलायन हुआ है। शहरों में बसर करने वाली श्रम शक्ति का बडा हिस्सा अपने घर और गांव की ओर लौटा है। जिससे संक्रमण के गांवों में पांव पसारने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का जो हाल है, उसे देखते हुए संक्रमण को थामना एक बड़ी चुनौती बन सकती है। बहरहाल, पहले चार लॉकडाउन के दौरान सरकार को इतना मौका तो मिला कि उसने कोरोना वायरस से लड़ने के लिए एक तंत्र विकसित कर लिया है। यदि आपदा अपना आकार बढ़ाती है तो हम उसका मुकाबला करने की स्थिति में आ गये हैं।
लॉकडाउन के समय को देश के नागरिकों ने पूर्ण धैर्य व हिम्मत से साथ मिलकर पार किया है। लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। अब बाजारों में भीड़ उमड़ने लगी है। सड़कों पर ट्रैफिक बढ़ने लगा है। ऐसा लगता है जैसे लोगों के मन से कोरोना का भय निकल गया है। वैसे यह एक अच्छा संकेत भी है, जो हमारी दृढ़ मानसिकता व सकारात्मक विचारों को दशार्ता है। लेकिन कहीं लापरवाही सभी के लिए खतरा न बन जाये। आम लोगों को मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना चाहिए। क्योंकि अनलॉक के अगले चरणों में स्कूल, कॉलेज, प्रशिक्षण संस्थान तथा सिनेमाहाल, जिम व स्वीमिंग पूल आदि खुलेंगे तो चुनौतियां भी बड़ी जो जाएंगी। धार्मिक स्थलों की भीड़भाड़ को नियंत्रित करना संस्थाओं के प्रबंधकों की जिम्मेदारी होगी।
ये तय मान लीजिए कि कोरोना काल के बाद का जीवन पहले से काफी हद तक अलग होगा। हमें एक नई जीवनशैली के साथ आगे बढ़ना होगा। ऐसे में जब इस साल तक कोरोना वैक्सीन बाजार में आनी मुश्किल दिखाई दे रही है तो हमारी सतर्कता-समझदारी में ही हमारा बचाव संभव है। यदि सब ठीक-ठाक रहा तभी सामान्य स्थिति की उम्मीद की जा सकेगी। हमें अनलॉक वन में जो छूट या स्वतंत्रता मिली है, उसे बरकरार रखने और पूर्णता प्रदान के लिए हमारी सजगता, सतर्कता व संयम ही काम आएंगे, जिसके लिए हमें मनोवैज्ञानिक तरीके से तैयार रहना चाहिए। हमारे सामाजिक व्यवहार में बदलते वक्त के साथ बदलाव अपेक्षित है क्योंिक इस आपदा ने समाज के बड़े तबके को पूरी तरह झकझोरा है। इसलिए जो छूट मिली है उसका सम्मान करना सीखे। क्योंकि अगर इस छूट का बेजा इस्तेमाल किया गया तो फिर लॉक डाउन रूपी ताला दोबारा लटकने की सम्भवाना से इंकार नहीं किया जा सकता। आगामी एक महीना इस लिहाज से इम्तिहान का होगा। अगर छूट के इम्तिहान में हम पास हुए तो छूट का दायरा और बढ़ेगा।

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