देशभर में स्वच्छ और सुलभ जल की स्थिति सोचनीय है। अनियमित और असमान वर्षा भी देश के कई हिस्सों में जलसंकट बढ़ाने का कारण बन रही है। वैसे भी जिस तरह से हमारे देश में खेती-बागवानी अधिकांश रूप से या कहें कि पूर्ण रूप से मानसून पर ही निर्भर है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। पीने के पानी के साथ ही औद्योगिक, कृषि क्षेत्र और दैनिक उपयोग में आने वाला जल वर्षा के पानी पर ही निर्भर है। अच्छी वर्षा न होने की स्थिति में भूजल स्तर गिरता ही जा रहा है। मानसून की अनिश्चितता के पीछे एक नहीं कई कारण है। मनुष्य द्वारा प्रकृति के साथ की गई छेड़खानी इसके लिए जिम्मेदार है। हम अभी तो अधिकांशत: अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए वर्षा के जल पर ही निर्भर हैं। अभी हम समुद्र के खारे पानी के उपयोग की दिशा में आगे नहीं बढ़ पाये हैं और न ही रेगिस्तानी इलाके होने के बावजूद इजरायल द्वारा इस क्षेत्र में हांसिल उपलब्धि जैसी बेहतर जल प्रबन्धन की तकनीक विकसित ही कर पाये हैं। देशभर में वषार्काल के दौरान होने वाली अनियमित और असमान वर्षा के पानी को सहेजने की दिशा में हम विशेष प्रगति नहीं कर पाये हैं।
इस वर्ष भी वषार्काल प्रारम्भ होने के पूर्व तक जहाँ मराठवाड़ा को भीषण सूखे का सामना करना पड़ रहा था,तमिलनाडु में चेन्नई में पीने के पानी का गहरा संकट व्याप्त था, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र को विगत वर्षों में सूखे की स्थिति से निपटने और विकास कार्यक्रम के तहत विशेष केन्द्रीय सहायता बुन्देलखण्ड पैकेज के बावजूद जल संकट का सामना करना पड़ा। देश के कुछ क्षेत्र ऐसे भी रहे हैं जहाँ पीने का पानी तक नसीब नहीं हो रहा था,तब ट्रेन द्वारा इन क्षेत्रों में पानी पहुँचाया गया। शायद इसीलिए जल की महत्ता समझी जाकर पानी की एक-एक बून्द सहेजने का आह्वान किया गया। जल बचाओ का नारा दिया गया लेकिन प्रश्न यही है कि जल कैसे बचाया जाए!जिससे कहीं भी बारहों महीने जल संकट की स्थिति निर्मित न हो। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा भी था कि देश के 256 जिले पानी की भारी कमी से जूझ रहे हैं। ऐसे में जल संरक्षण की दिशा में गहराई से विचार किये जाने की जरूरत है।
हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में जल संरक्षण को जन आंदोलन बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया है। यहाँ तक कि नीति आयोग की बैठक में भी इस विषय पर गहन विचार-विमर्श और चर्चा की जा चुकी है।
बीते दिनोंं केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने जल शक्ति अभियान की शुरूआत की। इस अभियान के द्वारा मानसून की अवधि में वर्षा के जल का संरक्षण कर जल सुरक्षा का एक निश्चित कार्यक्रम चलाए जाने की योजना रखु गई है। इसके द्वारा खास तौर पर उन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जाना है जहाँ गंभीर जल संकट की स्थिति बनी हुई है। इस अनुक्रम में देखा जाए तो देश में जल संकट की स्थिति से निपटने के प्रयास में सरकार की सक्रियता सराहनीय है लेकिन अन्य कार्यक्रमों की तरह यह भी सरकारी कार्यक्रम बन कर ही न रह जाए, इस ओर ध्यान रखने की भी जरूरत है। जिस तरह से मोदी सरकार ने अपने पहले पाँच साल के कार्यकाल में स्वच्छता अभियान को मिशन मोड में चलाकर जन-जन की सहभागिता से इस कार्य को अंजाम दिया था और स्वच्छता आम जन की आदत में शुमार होती जा रही है,ठीक उसी तरह जल संरक्षण अभियान को भी कार्य रूप देने की आवश्यकता है जिसमें प्रशासन तंत्र के साथ जनप्रतिनिधियों की सक्रियता के साथ जनभागीदारी भी जरूरी है। जनजागरूकता इसकी सफलता हेतु पहली शर्त है।
यहाँ सबसे जरुरी बात तो यही है कि वर्षा के जल को संचित और संरक्षित करने के हर स्तर पर ईमानदार प्रयास हों। जलभराव के साथ भूमिगत जल हेतु भूजल स्तर में वृद्धि वर्षा के जल को संरक्षित करने से ही संभव है। इसके अलावा नदी-तालाबों के गहरीकरण और प्रत्येक घरों में वाटर रिचार्जिंग की अनिवार्यता भी जरूरी है। नदियों के किनारों पर भूक्षरण रोकने हेतु पौधरोपण और वृक्षों के संरक्षण की भी आवश्यकता है। इससे जलबहाव के कारण होने वाला मिट्टी क्षरण भी रूक सकेगा। साथ ही जल की अनावश्यक बबार्दी या नुकसान में भी कमी आएगी। वर्तमान में नदियों में आई विनाशकारी बाढ़ और जल प्लावन की स्थिति से देश के विभिन्न क्षेत्र जूझ ही रहे हैं। बिहार, असम और देश के अन्य भागों में बाढ़ भयानक रूप ले चुकी है। और इस जल को हम संरक्षित भी नहीं कर पा रहे हैं।
अत: आवश्यक है कि जल संरक्षण की एक स्पष्ट नीति निर्धारित करते हुए योजनाबद्ध तरीके से जलसंरक्षण कार्यक्रम को सही तरीके से क्रियान्वित करते हुए जल दक्षता के उपायों को लागू किया जाए। साथ ही जलप्रयोग में मितव्ययता के सुस्पष्ट उपाय भी अपनाए जाएं। इसके लिए जलप्रबन्धन की विकसित पद्धतियों को अपनाये जाने की जरूरत है और यह सब बिना जनसहभागिता के संभव भी नहीं है। जिस तरह से स्वच्छता अभियान को हमने एक आदत के रूप में अपना लिया है, ठीक उसी तरह से पानी की लड़ाई एक आदत बनाकर ही जीती जा सकती है।
डॉ. प्रदीप उपाध्याय