उज्जायी प्राणायाम बना सहायक (Asthma)
तीस वर्षीय अभिषेक कुछ समय पहले तक अपनी उम्र के दूसरे लोगों से बिल्कुल अलग तरह की जिन्दगी जीता था, क्योंकि उसे दमा है। बार-बार किसी भी जगह पर पड़ने वाले दौरों के कारण उसे बहुत ही संभल कर चलना पड़ता था। बाद में उसने उज्जायी प्राणायाम का सहारा लिया। हालांकि शुरू में उसे काफी दिक्कतें आईं, परन्तु अब वह काफी हद तक ठीक है। उज्जायी शब्द उत उपसर्ग तथा जय शब्द के संयोग से बना है। उत उपसर्ग का अर्थ है ऊपर की ओर उठना या फैलाना तथा जय का अर्थ विजय या सफलता होता है। यह प्राणायाम प्राणिक चेतना को ऊपर की ओर जाने की दिशा देकर जीवन को सफलता की ओर बढ़ाता है। इस प्राणायाम को अतीन्द्रिय श्वसन के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह साधक को इंद्रियों से दूर सूक्ष्म मानसिक अवस्थाओं में ले जाता है।
ऐसे करें ये प्राणायाम
केवल यही एक ऐसा प्राणायाम है, जिसका अभ्यास किसी भी प्रकार जैसे बैठकर, खड़े होकर अथवा चित्त लेटकर तथा किसी भी समय किया जा सकता है। इस प्राणायाम की दो अवस्थाएं हैं। पहली अवस्था में साधक किसी आसन या कम्बल पर पद्मासन में बैठ जाएं और हथेलियों को घुटनों पर रखकर तर्जनी के अग्रभाग को अंगूठे से मिलाएं। यह ज्ञान मुद्रा है, इस दौरान दूसरी अंगुलियों को ढीला छोड़ दीजिए।
चेहरे पर से तनाव की रेखाएं हटाकर, उसे ढीला छोड़कर आंखों को बिल्कुल ढीला बंद करें। इसी दौरान दो मिनट के लिए मौन होकर मन को अंतमुर्खी कर लें। खेचरी मुद्रा लगाने के लिए जीभ के अग्रभाग को मुंह में पीछे की ओर इस तरह मोड़ें कि जीभ की निचली सतह ऊपरी तालू को स्पर्श करे। अब तक गहरी श्वास बाहर निकाल कर पूरक करें। पूरक करने के लिए नासाद्वार से सावधानी पूर्वक इतनी हवा भरें कि दोनों फेफड़े पूरी तरह भर जाएं। भरने के बाद रेचक करें।
रेचक करने में ये बरतें सावधानी
रेचक करने के लिए सावधानी पूर्वक धीरे-धीरे अंदर भरी हवा को बाहर निकालें। इस प्रकार से हवा को तब तक बाहर निकालें, जब तक कि फेफड़े पूरी तरह खाली न हो जाएं। पूरक और रेचक करते समय लय का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। श्वास-प्रश्वास की क्रिया सहज तथा बिना किसी रुकावट के होनी चाहिए।
दो सप्ताह बाद करें द्वितीय अवस्था का अभ्यास
लगभग दो सप्ताह तक उपरोक्त अवस्था का नियमित अभ्यास करने के बाद द्वितीय अवस्था का अभ्यास शुरू करना चाहिए। इसके लिए अवस्था एक की तरह ज्ञान मुद्रा में बैठकर गहरी श्वास लेकर पूरक करें और अर्न्तकुम्भक करें अर्थात् श्वास को अंदर ही रोक लें। इस स्थिति में तब तक रहें, जब तक आप आराम से इस स्थित में रह सकें। बाद में अवस्था एक की तरह रेचक करें।
अर्न्तकुम्भक में दक्षता के बाद करें जालन्धर बंध का अभ्यास
जब आप अर्न्तकुम्भक में प्रवीणता प्राप्त कर लें, तब जालन्धर बन्ध लगाने का अभ्यास करें। इसके लिए पूरक करने के बाद अर्न्तकुम्भक (श्वास को अंदर रोककर) करें। हाथ की कुहनियों को सीधा रखें और फिर घुटनों पर दबाव डालते हुए हाथ को सीधा रखें और फिर घुटनों पर दबाव डालते हुए हाथ को सीधा तान दें। इसके बाद सिर को सामने इतना झुकाएं कि ठुड्डी कंठ कूप से लग जाए। आरामदायक स्थिति तक इस अवस्था में रुकने के बाद सिर तथा हाथों को सामान्य कर पहली अवस्था की तरह रेचक करें। जालन्धर बंध के अभ्यास के साथ-साथ हम मूलबंध का अभ्यास भी कर सकते हैं।
ऐसे करें मूलबंध
मूलबंध में मूलाधार क्षेत्र को कसकर संकुचित किया जाता है। मूलाधार क्षेत्र पुरुषों में मलद्वार और जननेन्द्रीयों के बीच होता है। महिलाओं में यह क्षेत्र वहां होता है जहां योनि और गर्भाशय मिलते हैं। अर्न्तकुम्भक करते समय मूलबंध तथा जालन्धर बंध का अभ्यास एक साथ भी किया जा सकता है और अलग-अलग भी। जब अर्न्तकुम्भक करने में पर्याप्त दक्षता प्राप्त हो जाए तो रेचक और पूरक के बीच श्वास रोकने की कोशिश करनी चाहिए इसे बर्हिकुम्भक कहते हैं।
उड्डियान बंध में अपनाएं ये नियम
उज्जायी श्वसन के बाद उड्डियान बंध लगाना चाहिए। इसके लिए पूरी तरह रेचक करने के बाद कुहनियों को सीधा कर लें। फिर घुटनों पर दबाव डालते हुए हाथ को सीधा तान दें। साथ ही पेट की मांसपेशियों को सीने की ओर ऊपर तथा रीढ़ की ओर भीतर की ओर अधिक से अधिक संकुचित करें। आरामदायक स्थिति तक इस अवस्था में रहने के बाद पेट को सामान्य अवस्था में ले आएं और पूरक करें। यह क्रिया लगभग 20 बार की जानी चाहिए, तत्पश्चात 10 मिनट श्वासन करें। प्राणायाम का प्रारंभ रेचक (गहरी श्वास बाहर निकालकर) और अंत पूरक (गहरी श्वास अंदर लेकर) करना चाहिए।
तनाव मुक्त होकर करें अभ्यास
कोई भी प्राणायाम शुरू करने से पहले आसनों में प्रवीणता होना जरूरी है, इसलिए कम से कम एक आसन को तनाव रहित होकर एक लम्बी अवधि तक करने का अभ्यास करें।
सात्विक भोजन ही खाएं
प्राणायाम का अभ्यास करने के दिनों में विशेष रूप से सात्विक भोजन करें और अति भोजन से बचें।
इन बातों का रखें खास ख्याल
लेटकर उज्जायी श्वसन करते समय कभी खेचरी मुद्रा न लगाएं। हालांकि सभी लोग इस प्राणायाम का अभ्यास कर सकते हैं परन्तु कुछ रोगों में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना जरूरी है जैसे जिन्हें स्लिप डिस्क हो उन्हें मकरासन में उज्जायी श्वसन करना चाहिए। इसी प्रकार हृदय रोगियों तथा उच्च रक्तचाप वाले लोगों के लिए कुम्भक का निषेध है। परन्तु उन्हें रेचक को नियमित करने का अभ्यास करना चाहिए।
विषाद और निम्न रक्तचार पीड़ित दें ध्यान
विषाद तथा निम्न रक्तचाप से पीड़ित लोगों को बर्हिकुम्भक नहीं करना चाहिए। सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस के रोगी जालन्धर बंध तथा पेट के अल्सर वाले व्यक्ति उड्डियान बंध न लगाएं। यों तो सभी लोग इस प्राणायाम कर सकते हैं।
विशेषज्ञ की देखरेख में करें अभ्यास
परन्तु विशेषत: वे लोग जो किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं, किसी योग्य प्रशिक्षक की देखरेख में ही इसका अभ्यास करें।
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