लंदन। Senescent Cells: आजकल ज्यादातर लोगों को भरी जवानी में ही यह चिंता सताने लगती है कि पता नहीं बुढ़ापे में हमारा क्या हाल होगा? वो सोचते हैं कि कितना अच्छा होता, अगर हम बूढ़े (old age) ही न हों। ऐसे लोगों की चिंताओं को खत्म करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) (Artificial Intelligence) ने एक ऐसे कण की खोज की है जो इंसान को हमेशा जवान बनाए रखेगा। अगर एआई का यह प्रयोग सफल सिद्ध होता है तो इंसान कभी बूढ़ा नहीं होगा।
हालांकि, किसी भी चीज का आविष्कार करने में बहुत समय लगता है और बहुत कठिन भी होता है लेकिन एआई ने लर्निंग मशीन के जरिए यह काम आसान करने की सोची है। यूनिवर्सिटी ऑफ़ एडिनबर्ग के इंस्टीट्यूट ऑफ़ जेनेटिक्स एंड मॉलीक्यूलर मेडिसिन की शोधकर्ता वेनेसा मेर-बारेटो के अनुसार ‘‘हमने एआई का इस्तेमाल करके तीन ऐसे ताकतवर मॉलीक्यूल खोजे हैं, जो सेनोलाइटिक ड्रग्स (Senolytic Drugs ) बनाने में मदद करेंगे, ये वो दवाएं होती हैं, जो बुढ़ापे को कम करती हैं। बुजुर्गियत में होने वाली बीमारियों से बचाती हैं।’’ वेनेसा ने बताया कि सेनोलाइटिक दवाएं सेनेसेंट कोशिकाओं को मारती हैं। ये कोशिकाएं जिंदा होती हैं, लेकिन ये रेप्लिकेट नहीं करती। इसलिए इनका नाम जॉम्बी कोशिका पड़ा है। Artificial Intelligence
हालांकि रेप्लिकेट नहीं करना कोई बुराई नहीं है, क्योंकि इन कोशिकाओं के डीएनए क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। शोधकर्ता के अनुसार त्वचा की कोशिकाएं सूरज की किरणों से खराब होती हैं। वो खुद से अन्य और कोशिकाएं पैदा करने की प्रक्रिया को रोक देती है, जिसका असर आसपास की कोशिकाओं पर पड़ना लाजिमी है। यही कारण है कि त्वचा की कोशिकाएं पैदा करने की प्रक्रिया रुक जाती है जिससे इंसान जल्दी बूढ़ा दिखने लगता है अर्थात उसके चेहरे की त्वचा पर झुर्रिया पड़ने लगती हैं, त्चचा ढीली-ढाली होकर लटकने लगती है। Artificial Intelligence
उन्होंने बताया कि सेनेसेंट कोशिकाएं हमेशा ही अच्छी नहीं होती। ये ऐसे प्रोटीन बनाती हैं जो आसपास की कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं। यह सिलसिला काफी समय तक चलते रहने से पूरे शरीर में ये प्रोटीन फैल जाता है और कोशिकाओं की प्रक्रिया पर प्रभाव डालता है। यही कारण होता है कि आप सूरज की किरणों को सहन नहीं कर पाते और त्वचा प्रभावित होने लगती है। ज्यादातर नुकसान सेनेसेंट कोशिकाओं से बढ़ता है। अधिक मात्रा में इनकी उपस्थिति कई तरह की बीमारियों उत्पन्न करती हैं। जैसे टाइप-2 डायबिटीज, कोविड, पल्मोनरी फाइब्रोसिस, आॅस्टियोआर्थराइटिस और कैंसर आदि। लैब में शोध के दौरान यह बात साबित हो चुकी है कि चूहों से सेनेसेंट कोशिकाओं को सेनोलाइटिक्स का उपयोग करने से चूहें बीमारियों से बच गए।
शोधकर्ता के अनुसार सेनोलाइटिक दवाएं इन जॉम्बी कोशिकाओं को मारकर स्वस्थ और नई कोशिकाएं बनाने वाले सेल्स को सही सलामत रखते हैं। उन्होंने बताया कि अब तक दुनिया में 80 से अधिक सेनोलाइटिक दवाओं की खोज की जा चुकी है लेकिन इंसानों पर सिर्फ दो दवाओं का ही परीक्षण किया गया है। उनमें से मुख्य दवाएं थी डासाटिनिब और क्वरसेटिन का मिश्रण। उनके अनुसार अगर और सेनोलाइटिक मिलें तो अगले 20 वर्षों तक इंसान के बुढ़ापे पर रोक लगाई जा सकेगी। इतना ही नहीं बुढ़ापे में पनपने वाली बीमारियों को भी ठीक किया जा सकेगा। मेर-बारेटो ने कहा कि उन्होंने अपने साथियों के साथ स्पेन के नेशनल रिसर्च काउंसिल के वैज्ञानिकों सहित नए सेनोलाइटिक केमिकल की खोज करने की सोची थी। Artificial Intelligence
बारेटो के अनुसार हम सबने मिलकर एक मशीन लर्निंग मॉडल बनाया ताकि नए सेनोलाइटिक ड्रग्स की खोज की जा सके। हमने मॉडल्स को सेनोलाइटिक एवं नॉन सेनोलाइटिक पदार्थ के बारे में जानकारी दी है। हमारे बताए अनुसार मॉडल ने 4340 मॉलीक्यूल्स में 21 बेस्ट मॉलीक्यूल निकाल कर हमे दिए। इस काम में उसे सिर्फ 5 मिनट ही लगे। ये 21 मॉलीक्यूल्स ही भविष्य में बुढ़ापा रोकने के लिए सबसे बेहतरीन दवाएं सिद्ध होंगी। अगर इन मॉलीक्यूल्स की जांच लैब में होती तो कई हफ्ते लग सकते थे। 52 लाख से अधिक तो कंपाउंड खरीदने में लग सकते थे।
इसमें अभी मशीनरी और लैब सेटअप की कीमत तो जोड़ी भी नहीं है। जांच के बाद 21 कंपाउंड्स को स्वस्थ और सेनेसेंट कोशिकाओं पर टेस्ट किया गया। तब हमें तीन बेस्ट कंपाउंड मिले। ये थे पेरिप्लोसिन, ओलियनड्रिन और जिंगेटिन। इन तीनों कंपाउंड इतने सक्षम हैं जो बुढ़ापा लाने वाली सेनेसेंट कोशिकाओं को पूरी तरह से खत्म कर सकते हैं और स्वस्थ काशिकाओं को ज्यादातर सुरक्षित रखते हैं। तत्पश्चात शोध किया गया कि तीनों कंपाउंड इंसानों के शरीर पर कैसे काम करेंगी, अच्छी कौन सी है। यह सब जांच में पता चला कि ओलियनड्रिन बुढ़ापा रोकने के लिए सबसे बेस्ट कंपाउंड है।