नई दिल्ली (एजेंसी)। Thanela disease: चिकित्सा विशेषज्ञों ने दुधारू पशुओं में होने वाले घातक रोग ‘थनैला’ के उपचार के लिए आयुर्वेदिक पद्धति के विकसित कर लिया है जिससे किसानों को इसके इलाज पर अब भारी-भरकम रकम भी खर्च नहीं करनी होगी और उन्हें दूध का नुकसान भी नहीं होगा। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के अध्यक्ष मीनेश शाह ने बताया कि भारतीय चिकित्सा विशेषज्ञों ने मामूली खर्च में थनैला रोग के उपचार का आयुर्वेदिक तरीका ढूंढ लिया है।
इस रोग से पीड़ित दुधारू जानवरों पर अब एंटीबायोटिक का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसके इस्तेमाल से इसका एक हिस्सा जानवरों के दूध में चला जाता है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए लाभकारी नहीं है।
अंग्रेजी दवाओं की तुलना में उपचार होता है जल्द
डॉ शाह ने बताया कि एलोवेरा, हल्दी और चूने के मिश्रण से थनैला रोग का उपचार अंग्रेजी दवाओं की तुलना में काफी कम समय में पूरा कर लिया जाता है। एलोेवेरा, हल्दी और चूने के एक हिस्से को मिलाकर इसे मलहम की तरह बनाया जाता है और पीड़ित जानवर के रोगग्रस्त हिस्से पर दिन में आठ बार इसका लेपन किया जाता है। इस दवा का लेपन तीन दिनों तक लगातार किया जाता है जिसके बाद जानवर पूरी तरह से स्वस्थ हो जाता है। यह प्रयोग 89 प्रतिशत सफल रहा है।
देश में इस समय 303.76 मिलियन मवेशी
20वीं पशुधन गणना के अनुसार देश में लगभग 303.76 मिलियन मवेशी हैं। इसके अलावा 74.26 मिलियन भेड़ , 148.88 मिलियन बकरियां और 9.06 मिलियन सुअर हैं। डेयरी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में पांच प्रतिशत का योगदान देती है और आठ करोड़ से अधिक किसानों को सीधे रोजगार देती है। भारत दूध उत्पादन में पहले स्थान पर है जो वैश्विक दूध उत्पादन में 23 प्रतिशत का योगदान देता है। पिछले आठ वर्षों के दौरान दूध उत्पादन में 51.05 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और अब यह वर्ष 2021-22 के दौरान 221.06 मिलियन टन पहुंच गई है।
आर्थिक नुकसान भी होगा कम
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार इससे पहले थनैला रोग से पीड़ित दुधारू पशुओं को अंग्रेजी दवा के माध्यम से उपचार किया जाता था, जिसमें लंबा समय लगता था और किसानों को 20-25 हजार रुपये खर्च करने पड़ते थे। इस दौरान जानवरों का दूध बहुत कम हो जाता था और कई बार देर से रोग का पता चलने पर उसकी मौत भी हो जाती थी। इसके कारण किसानों को भारी आर्थिक नुकसान भ होता था।
इस कारण होता है थनैला रोग
डॉ शाह और चिकित्सा विशेषज्ञों ने बताया कि दुधारू जानवरों में बैक्टीरिया और फंगस संक्रमण के कारण जानवर थनैला रोग की चपेट में आ जाते हैं। ऐसा साफ-सफाई में कमी और नमी के कारण भी होता है। कई बार तो पोषण में कमी के कारण भी जानवर इस बीमारी के शिकार हो जाते हैं।
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