बेतुकी बयानबाजी करने वालों को नहीं याद अहम मुद्दे

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हमारा देश मुद्दों से अधिक राजनीति का देश है जहां हर पार्टी अपने आप को एक दूसरे से अधिक बेहतर दर्शाने की कोशिश करती है, जिस बात से वोट मिलती हो उस बात का मुद्दा बनाने पर कुछ भी समय नहीं लगाते। वोट बैंक के लिए छोटी सी बात को भी तूल देकर टकराव के हालात बनाए जाते हैं। लेकिन जो वस्तु आमजन के लिए अहम होती है उस को कोई मुद्दा नहीं बनाया जाता।

मु्द्दा तो छोड़ो, उस पर चर्चा तक नहीं की जाती। न सत्ताधारी व न ही विरोधी पार्टियां अहम मुद्दों पर बात करती हैं। धार्मिक स्थानों, एतिहासिक व्यक्तियों, एतिहासिक ईमारतों के नाम पर बेवजह विवाद खड़े करने के लिए तेज तरार बयानबाजी सामने आती है लेकिन मनुष्यता की बेहतरी के लिए कोई बात नहीं करता।

किसी न किसी वर्ग के हितों की बात कर दो वर्गों को भड़काया जाता है ताकि एक वर्ग वोट देने के लिए तैयार हो जाए। कुछ दिन पहले ताज महल के मुद्दे पर नेताओं ने मशहूर होने की कोशिश की। एतिहासिक स्थान पर धर्म की मोहर लगाने की कोशिश की गई। अब टीपू सुल्तान की नीतियों व नीयत पर संदेह जताया जा रहा है। दरअसल यह वस्तुएं कोई मुद्दा ही नहीं है।

इसके अलावा जनता के बडेÞ मुद्दों संबंधी कोई समाचार आए तो राजनीति नेता कहते हैं कि उन्हें इस संबंधी कोई समाचार देखा नहीं है। लांसेट जनरल के एक र्स्वे रिर्पोट में बड़ा भयानक खुलासा हुआ है कि प्रदूषण से सबसे अधिक मौतें भारत में हुई हैं। वर्ष 2015 में भारत में 25 लाख लोगों की मौत हुई है।

दिन-रात बयानबाजी करने वाले गड़े मुर्दाें को उखाड़ने वाले किसी भी नेता ने इस रिपोर्ट पर चिंता तो क्या जाहिर करनी थी इस संबंधी जिक्र तक नहीं किया गया। यह रिपोर्ट हमारी सरकारों विशेष तौर पर वातावरण से जुडेÞ विभागों पर प्रश्न चिन्ह लगाती है।

क्या हमारे प्रदूषण कन्ट्रोल बोर्ड फेल नहीं हुए। किसानों द्वारा पराली जलाने का मुद्दा तो राष्टÑीय मु्द्दा बन गया लेकिन लाखों उद्योग, जो नियमों की धज्जियां उड़ाकर सरेआम प्रदूषण फैला रहे हैं उन पर अब चुप हैं। प्रदूषण नियंत्रण के लिए सरकारों की नीतियां केवल कागजों तक ही सीमित हैं। कोई भी पार्टी अब इस मुद्दे कोे लेकर सामने नहीं आ रही। वह अपनी जिम्मेवारियों को भूल चुकी है।

भयानक बीमारियां दिन ब दिन बढ़ रही हैं लेकिन सरकार के पास जरूरत अनुसार अस्पताल खोलने के लिए पैसा नहीं है। प्रदूषण का मुद्दा अब राजनैतिक मुद्दा नहीं रह गया। इन मुद्दों पर केवल न्यायालय ही गंभीर है। पूरा विश्व प्रदूषण की इस रिर्पोट को पढ़कर कांप चुका है लेकिन भारत के नेताओं को पता नहीं कि कोई रिर्पोट भी आई है।

 

 

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