महानगरों में आलीशान ईमारतों में विकास नजर आता है लेकिन जब इन्हीं इमारतों में मासूम बच्चे बेबसी से आग की भेंट चढ़ जाएं तब विकास पर सवाल उठना स्वाभाविक है। गत दिनों गुजरात के सूरत शहर में एक ईमारत को आग लगने से वहां एक कोचिंग सेंटर पर कोचिंग ले रहे बच्चों सहित 23 की मौत हो गई। कागजी कार्रवाई में सुरक्षा के नियमों व उन्हें लागू करने के लंबे चौड़े कसीदे कसे जाते हैं लेकिन इन्हीं नियमों को लागू करने वाले अधिकारियों के सामने सबकुछ गैर-कानूनी तरीके से चलता रहता है। सूरत में जिस इमारत को आग लगी है, उसकी एक मंजिल गैर-कानूनी है, जिसकी प्रशासन से अनुमति नहीं ली गई।
शहरों में इमारतों की गिनती बढ़ने के साथ-साथ उनकी ऊंचाई भी बढ़ रही है लेकिन सुरक्षा के लिहाज से देखें तब कोई घटना घटित होने पर दमकल विभाग में एक भी कर्मचारी फोन उठाने वाला नहीं होता या फिर लैंडलाइन फोन खराब मिलता है। देश में जनसंख्या के बढ़ने के साथ-साथ दमकल विभाग में फायर ब्रिगेड गाड़ियों की संख्या भी नहीं बढ़ाई गई। सूरत की घटना में फायर ब्रिगेड गाड़ियों में पानी खत्म होने पर दोबारा पानी भरने के लिए गॉड़ी को 20 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ी। यदि यही गाड़ी 2 या 3 किलोमीटर से पानी भरने के लिए जाती तो इतने बड़े स्तर पर नुकसान को रोका जा सकता था।
सेंटर में आग लगने के बाद न केवल गुजरात बल्कि देश में बहुमंजिला इमारतों की सुरक्षा की समीक्षा की जांच शुरू होगी लेकिन यह कार्रवाई तब हो रही है जब 23 अनमोल जिंदगियां आग की भेंट चढ़ गई। देश में यह कोई पहला हादसा नहीं, इससे पहले भी इस प्रकार की कई घटनाएं घट चुकी हैं लेकिन कानून व नियमों की बात केवल तीन-चार दिन तक ही होेती है। फिर वही अधिकारी कानून व नियमों को भूल जाते हैं। लुधियाना में एक भयानक अग्नि कांड को डेढ़ वर्ष ही हुआ है, जहां फायर कर्मचारियों सहित 12 लोगों की मौत हो गई थी।
कर्मचारियों के पास आग बुझाने के लिए प्रयोग करने वाला फायर कोट व अन्य सामान उपलब्ध नहीं था। इस घटना के बाद विभागीय मंत्री ने सामान व फायर कोट उपलब्ध करवाने के ब्यान दिए लेकिन एक साल के बाद भी कर्मचारियों को सामान उपलब्ध नहीं हो सका। पंजाब सरकार ने नया फायर सेफ्टी एक्ट बनाने की भी घोषणा की लेकिन बाद में यही बात आई-गई हो गई। बिल्डरों व उनके किरायेदारों की गलतियों का खमियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है। इस मामले में जल्द जांच होगी, मुआवजा मिलेगा जैसे नेताओं के बयान तक सीमित रहने की बजाए यह यकीनी बनाया जाए कि इस प्रकार की घटनाएं भविष्य में न घटित हों।
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