यह साल निश्चित रुप से दुनिया के साहित्य प्रेमियों के लिए घोर निराशाजनक है। इस साल के नोबल पुरस्कारों की घोषणाएं हो गई हैं वहीं अब साफ हो गया है कि इस साल साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार नहीं दिया जाएगा। दरअसल इस साल का साहित्य का नोबल पुरस्कार यौन स्केण्डल की भेंट चढ़ गया है। 236 साल के स्वीडिश एकेडमी के गौरवमय इतिहास में यह सबसे बड़ा काला अध्याय माना जाएगा हांलाकि स्वीडिश एकेडमी छुटपुट विवादों में गाहे-बेगाहे रही है। साहित्य का नोबल पुरस्कार 1901 से दिया जाना शुरू हुआ और 117 साल के इतिहास में इससे पहले सात बार ऐसा हो चुका है जब साहित्य का नोबल पुरस्कार किसी ना किसी कारण से नहीं दिया जा सका है।
खास यह कि अबकी बार 75 सालों के अंतराल के बाद यह दु:खद अवसर आया है। इससे पहले 1914, 1918 और 1940 से 1943 के चार सालों सहित कुल छह सालों को छोड़ दिया जाए तो केवल 1935 का साल ऐसा है जब किसी को भी इस पुरस्कार के योग्य नहीं माना गया। यानी छह बार दोनों विश्व युद्धों के कारण नोबल पुरस्कार की घोषणा नहीं हो पाई। दो बार ऐसा भी हुआ जब नोबल पुरस्कार विजेताओं ने पुरस्कार लेने से मना कर दिया। इनमें से फ्रांसिसी लेखक ज्यां पाल सात्र एक है। हांलाकि 2016 के पुरस्कारों की सूची में रॉक स्टॉर बॉब डिलन को शामिल करने से अकादमी को गंभीर आलोचनाओं से गुजरना पड़ा। पर 2017 में गैर विवादास्पद लेखक काजुओ इशिगुरो का चयन कर विवाद पर रोक लगाने का सार्थक प्रयास किया गया।
नोबल पुरस्कार की गरिमा को बनाए रखने के प्रयास जारी है और इसी को देखते हुए नोबल फाउण्डेशन ने स्वीडिश अकादमी को साहित्य के नोबल पुरस्कार चयन के अधिकार को छीनने जैसे कठोर कदम उठाने की चेतावनी देते हुए समय रहते ठोस कदम उठाने को कह दिया है। हांलाकि स्वीडिश अकादमी ने भी सुधार की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। दरअसल इस साल के साहित्य का नोबल पुरस्कार महिला उत्पीड़न के खिलाफ चल रहे मीटू अभियान की भेंट चढ़ा है। हांलाकि इस बात की तारीफ की जानी चाहिए कि महिला अस्मिता को लेकर चलाए जा रहे मीटू अभियान ने समाज के खोखलापने को उघाड़ कर रख दिया है। मजे की बात यह है कि इस अभियान की बदौलत राजनीतिज्ञ, हॉलीबुड ही नहीं समाज के सभी वर्गों में जड़ जमाए महिला उत्पीड़क सार्वजनिक रुप से नंगे होने लगे हैं।
दरअसल स्वीडिश अकादमी की चयन समिति के एक सदस्य के पति के खिलाफ मीटू अभियान के चलते स्वीडिश राजकुमारी विक्टोरिया समेत 18 महिलाओें द्वारा गत वर्ष नवंबर में यौन उत्पीड़न के आरोप लगाकर सनसनी फैला दी थी। हांलाकि चयन समिति की सदस्या कटरिना फ्रोसटेंशन के पति फ्रांसिसी फोटोग्राफर ज्यां क्लाउड अर्नाल्ट ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है पर अर्नाल्ट पर यौन उत्पीड़न ही नहीं बल्कि 1996 से अब तक सात बार नोबेल विजेताआें के नाम उजागर कर गोपनियता भंग करने का आरोप भी है।
इसके साथ ही वित्तीय घालमेल का भी आरोप सामने आया है। मी टू अभियान के दौरान नवंबर, 17 में अर्नाल्ट पर लगे आरोपों के बाद अकादमी की प्रमुख सारा डेनियन व कटरिना सहित 6 सदस्य इस्तीफा दे चुके हैं। इस समय 18 सदस्यों वाली अकादमी में केवल 11 सदस्य ही है। सदस्यों को हटाने और नए सदस्य शामिल करने की प्रक्रिया जारी है। अकादमी ने अपने नियमों में बदलाव, नए सदस्यों को शामिल करने, दागी सदस्यों को हटाना शुरू किया है पर नोबल फाउंडेशन के प्रमुख लार्स हिकिंस्टन से इसे अपर्याप्त ठहराते हुए अभी और सुधार और लोगों का भरोसा जीतने की आवश्यकता प्रतिपादित की है।
विश्व का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार माना जाता हैं नोबल पुरस्कार।
साहित्य के नोबल पुरस्कार के लिए जहां स्वीडिश अकादमी चुनाव करती हैं वहीं चिकित्सा क्षेत्र के नोबल विजेता का चयन द नोबल एसेंबली द्वारा किया जाता है। बाकि तीन पुरस्कारों का चयन द रोयल स्वीडिश एकेडमी आॅफ साइसेंज द्वारा किया जाता है। जहां तक भारतीयों के नोबल पुरस्कार का प्रश्न है 1913 में रवीन्द्र नाथ टैगोर से लेकर 2014 तक 9 भारतीय इस पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं। नोबल पुरस्कारों की अपनी प्रतिष्ठा है। ऐसे में इस तरह के सेक्स स्केण्डल और वित्तीय अनियमितता के आरोपों का उजागर होना अपने आप में गंभीर है। नोबल काम ही यदि नोबल नहीं रहता तो फिर इससे अधिक निराशाजनक क्या होगा? भले ही इस साल के साहित्य के नोबल पुरस्कार की घोषणा नहीं होती है पर इससे ज्यूरी के सदस्यों पर निश्चित रुप से अंकुश बढ़ेगा और आशा की जानी चाहिए कि नोबल कॉज के लिए दिए जाने वाला नोबल पुरस्कार अपनी गरिमा को बनाए रखने में सफल हो सकेंगे।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
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