MSG Incarnation Day: एक इलाही आवाज ने रूहों को अपनी तरफ ऐसा खींचा कि जो भी सुनता गया, बस सतगुरु का मुरीद होता चला गया। भाषा समझ आई या नहीं आई लेकिन उनके दर्शन दिलो-दिमाग में मस्ती घोलते चले गए। पढ़ा-लिखा, अनपढ़ जो भी एक झलक देख लेता बस निहारता ही रह जाता। रूहानियत का यह नजारा बहुत ही अनोखा होता है। रूहानियत आलमों-फाजिलों की नहीं होती, अगर ऐसा होता तो अनपढ़ रब्बी-रहमतों से तो कोरे ही रह जाते। रूहानी रहबर की आवाज में ही ऐसी मस्ती होती है कि लोग खींचे चले आते हैं। उनके शब्द कानों में मिश्री की तरह घुलते चले जाते हैं। उनके दर्शन रूह को आनंद देते हैं कि जीव को महसूस होता है कि सदियों से बिछुड़ा प्यारा मिल गया। रूहानी रहमतों के भंडार पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने अपनी इलाही बोली, आंखों से बरसते नूर, प्यार के समुद्र व रूहानियत की ऐसी वर्षा की कि पिछड़े बागड़ इलाके में भक्ति व इन्सानियत के झरने फूट पड़े।
नूरानी झलक से लोग सार्इं जी के प्यार में रंगे गए | MSG Incarnation Day
बलोचिस्तान सरसा से हजारों किलोमीटर दूर, कोई जान-पहचान नहीं, बोली की सांझ नहीं लेकिन पहली ही नूरानी झलक से लोग सार्इं के प्यार में रंग गए। यह रिश्ता आत्मा व परमात्मा का है जो अंदर महसूस किया जाता है। गांव-गांव चर्चा चल पड़ी रूहानियत के शहनशाह की। आप जी ने 29 अप्रैल 1948 को सरसा के उजाड़-बियाबान में डेरा सच्चा सौदा रूपी चानण मुनारा स्थापित किया तो सत्संग सुनने के लिए लोग पहुंचने लगे। सभी को भाने लगा डेरा सच्चा सौदा न कोई पाखंड, न कोई पैसा-चढ़ावा, न मत्था टिकाई। हर किसी को आसान व सस्ता रास्ता बताया। हिन्दू, मुस्लमान, सिख, ईसाई सब पहुंचने लगे, सभी को परमात्मा के नाम से जोड़ा। आप जी ने सर्वधर्म संगम का ऐसा पौधा लगाया कि भाईचारक सांझ मजबूत हो गई।
भगवान से मिलने का असली रास्ता | MSG Incarnation Day
लोगों को भक्ति का आसान व मुफ्त रास्ता मिल गया, जहां पाखंड, चढ़ावा, पैसा पाई की कोई जरूरत नहीं क्योंकि उसके लिए तो श्रद्धा ही मूलमंत्र है, यह श्रद्धा निर्मल हृदय से पैदा होती है। बपरवाह सार्इं जी ने यही पढ़ाया कि सच्चा प्यार व श्रद्धा ही प्रभू को मिलने का सही रास्ता है। इसी शिक्षा ने भटकी मानवता को रब्ब के नाम से होती लूट से बचाकर सही रास्ते पर चलाया।
‘धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ का नारा किया मंजूर | MSG Incarnation Day
आप जी का अपने पूर्ण मुर्शिद पर अटूट विश्वास बन गया। आप जी अपने मुर्शिद खुद-खुदा सतगुरु के नूरी जलाल को कण-कण में प्रत्यक्ष देखते। अपने प्यारे प्रीतम मुर्शिद के नूरी जलाल में मिलकर आप जी खुद भी नूरे-जलाल बन गए। आप जी हर वक्त अपने सतगुरु जी को धन्य-धन्य कहते रहते और मस्ती में घुंघरू बांधकर नाचते रहते। पूजनीय सावण शाह जी महाराज ने आप जी का नाम खेमामल से बदलकर शाह मस्ताना रख दिया, पूजनीय सावण शाह जी महाराज आप जी को देखकर मुस्कराते रहते। आप जी हर वक्त सतगुरु का शुक्राना करते। ‘हे! मेरे सोहणे मक्खण मलाई पीर दाता सावण शाह, तूं ही मेरा पीर, तूं ही मेरा बाप, तूं ही मां, तूं ही मेरा यार, तूं ही मेरा खुदा, तूं ही मेरी दौलत, तूं ही मेरा निरंकार, तूं ही मेरा सब कुछ। धन-धन सावण शाह सार्इं तेरा ही आसरा’ इसलिए वहां प्रचलित नारा कुछ और था। उस वक्त प्रबंधकों ने आप जी की शिकायत पूजनीय सावण शाह जी महाराज के पास की कि मस्ताना शाह तो रिवायती नारा नहीं बोलते। अपने बनाए ही नारे बोलते हैं।
जब पूजनीय मस्ताना जी महाराज से पूजनीय सावण शाह जी महाराज ने इस बारे में पूछा कि आप इस तरह हमारी महिमा क्यों करते हो तो आप जी ने फरमाया, ‘हे मेरे सार्इं हमने तो सिर्फ आप जी को देखा है और किसी के बारे में जानते ही नहीं, जो देखा है वहीं बोलते हैं। अगर कोई आदमी किसी का दबा खजाना निकाल दे तो वह किसका धन्य-धन्य करेगा, खजाना निकालने वाले का या किसी और का। फिर पूजनीय बाबा जी की हजूरी में धन-धन दाता सावण शाह निरंकार तेरा ही आसरा का नारा लगाया। इस पर हजूर सच्चे पातशाह बाबा सावण शाह जी ने वचन फरमाया कि इससे तो काल और चिढ़ेगा, परंतु हैं आप सच्चे, आज के बाद आपने सांझा शब्द सतगुरु बोलना है, भाव ‘धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा’। आप जी ने अपने सतगुरु का कोटि-कोटि धन्यवाद किया। पूजनीय बाबा सावण शाह जी ने आप जी पर नूरानी दृष्टि डालकर वचन फरमाया, मस्ताना शाह, बहुत ऊंचा कलाम है तेरा। कोई नाम पीछे, कोई भजन पीछे, कोई रोशनी पीछे पड़ गया परंतु हमें किसी ने नहीं पकड़ा, कोई नसीबों वाला हो, तो पड़े, मस्ताना शाह आप नसीबों वाले हो, जिसने सतगुरु की महिमा जानी है।