लोकसभा चुनाव। पाव-भाजी विक्रेता ‘कुशेश्वर भगत सैनी’ का भी सांसद बनने का सपना

Nomination made in Gurujram

 भ्रष्टाचार खत्म करने की जिद को लेकर हर बार उतरते हैं चुनाव मैदान में

-हर विधानसभा व लोकसभा का चुनाव लड़ते हैं कुशेश्वर भगत

-पहली बार 2009 में मिले थे 100 वोट, 2014 में मिले 7884 वोट

गुरुग्राम सच कहूँ/संजय मेहरा। एक चाय बेचने वाला प्रधानमंत्री बन सकता है तो फिर पाव-भाजी बेचने वाला क्यों नहीं बन सकता। किस्मत कब किसकी पलट जाये यह कहा नहीं जा सकता। इसलिए इंसान को हमेशा संघर्ष करते रहना चाहिए। इसी सोच के साथ गुरुग्राम लोकसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में एक ऐसा व्यक्ति किस्मत आजमा रहा है, जिसकी न तो कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि है। न ही कोई बड़ा वोट बैंक और न ही वह यहां का स्थायी निवासी है। कुशेश्वर भगत सैनी नाम का यह शख्स भ्रष्टाचार का शिकार हुआ तो उसने राजनीति में आना तय किया। हम बात कर रहे हैं उस कुशेश्वर भगत सैनी की, जो मूलरूप से तो बिहार के रहने वाला है, लेकिन कई वर्षों से परिवार के साथ गुरुग्राम में रहकर अपनी जीवन यापन कर रहा है।

-गुरुग्राम में कर दिया नामांकन, अब दिल्ली में 22 को करेंगे नामांकन

वह वर्ष 1997 से गुरुग्राम में रह रहे हैं। मात्र नौवीं पास 48 वर्षीय कुशेश्वर का मूल काम पाव-भाजी बनाने का है। इसमें उनके साथ उनके दोनों जुड़वां बेटे भी हाथ बंटाते हंै। दिल्ली के आया नगर में उनका निवास है और यहां सेक्टर-15 पार्ट-वन के पास कीर्ति नगर में वर्षों से वह पाव-भाजी की रेहड़ी लगाते हंै। लोग उसकी पाव-भाजी के दीवाने हैं। भ्रष्टाचार खत्म करने की जिद में वह हर विधानसभा, लोकसभा चुनाव में गुरुग्राम से नामांकन करता है और चुनाव लड़ता है। इस बार भी उन्होंने गुरुग्राम लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन दर्ज करके चुनावी अभियान की शुरूआत कर दी है।

इस बार गुरुग्राम के साथ दक्षिणी दिल्ली से भी चुनाव लड़ रहे हैं कुशेश्वर

इस बार के चुनाव में वे गुरुग्राम के साथ दिल्ली से भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। यानी दो सीटों से वह अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। उनका कहना है कि जब पीएम नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दो सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं तो वे क्यों नहीं। इसलिए उन्होंने दो सीटों से चुनाव लड़ना तय किया। उन्होंने यह भी कहा कि वे लोगों से सिर्फ वोट मांगते हैं, किसी से नोटों की सहायता नहीं लेते। न ही वे कभी पैसे लेकर अपना नामांकन वापस करेंगे। क्योंकि इससे उनकी छवि खराब होगी। जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ वे लड़ रहे हैं, वह खुद नहीं करेंगे।

कुशेश्वर इसलिए आना चाहते हैं राजनीति में

एक तरह से मजदूरी करके परिवार का पेट पालने वाले कुशेश्वर भगत पर राजनीति का शौक कैसे चढ़ा, इसके जवाब में वह कहते हैं कि वर्ष 2009 में अपने बेटे के स्कूल में दाखिले के लिए उसे बहुत परेशानी आयी। बाहरी प्रदेश का होने के कारण यहां उसे वोट, राशन कार्ड बनवाने में खूब दिक्कतें आयी और भ्रष्टाचारियों का भी सामना करना पड़ा। सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार ने उन्हें प्रेरित किया कि राजनीति में आकर इसे समाप्त करना है। उसी के बाद से कुशेश्वर ने चुनावों में आना शुरू कर दिया।

2009 में लड़ा विधानसभा चुनाव

वर्ष 2009 में हुये विधानसभा चुनाव से कुशेश्वर भगत ने अपनी राजनीति शुरू की। बेशक उसके पीछे कार्यकतार्ओं की भारी-भरकम फौज नहीं थी। बेशक उसकी आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी, लेकिन उसके हौंसले और इरादे चट्टान की तरह मजबूत थे। इसलिए उसने राजनीति में आने का निर्णय कर ही लिया। विधानसभा चुनाव में उसे मात्र 100 वोट मिले। इतने कम वोटों से कुशेश्वर की हिम्मत नहीं टूटी, बल्कि उसे खुशी हुयी कि उसे 100 लोगों का समर्थन मिला है। इसके बाद 2009 में ही हुए लोकसभा चुनाव में भी नामांकन दाखिल किया।

इस चुनाव में उन्हें 1044 वोट हासिल हुए। यह छोटी बात नहीं थी। वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में तो कुशेश्वर की खुशी कई गुणा बढ़ गयी जब मतगणना में उसे 7884 वोट मिले। इस आंकड़े से दूसरे नेता भी आश्चर्यचकित हो गये कि आखिर इतने सारे वोट कुशेश्वर को किन वोटर्स ने दिये हैं। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में उन्हें कम वोट मिले। बेशक वे इन चुनावों में अपनी जमानत राशि नहीं बचा पाये, लेकिन इसका उन्हें कोई मलाल नहीं है, बल्कि वे हिम्मत के साथ आगे ही बढ़ रहे हैं।

राष्ट्रपति पद के लिए भी किया था नामांकन

कुशेश्वर भगत सिर्फ विधायक और सांसद बनने का सपना ही नहीं देख रहे, बल्कि इस बार तो उन्होंने राष्ट्रपति बनने तक का सपना देखा और कर दिया नामांकन। उन्होंने दिल्ली पहुंचकर राष्ट्रपति के लिए अपना नामांकन दाखिल किया था, लेकिन किसी कारणवश उनका नामांकन रद्द हो गया। इसका कारण उन्होंने बताया कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उनके नामांकन फार्म पर संस्तुति नहीं दी। अगर वे दे देते तो उनके बाकी के सभी विधायकों के हस्ताक्षर हो जाते।

 

 

 

 

 

 

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