तेल की बढ़ रही कीमतों को देखकर ऐसा लगता है जैसे यह समस्या बेलगाम है और इसका कोई समाधान नहीं। प्राकृतिक आपदाएं, बीमारियां तो अचानक किसी के बस में नहीं होती लेकिन महंगाई जैसी समस्या जो व्यवस्था के निर्णयों से दुरुस्त हो सकती है उसकी तरफ तो गौर किया जाना चाहिए। आज तेल की धार ने मध्यम और गरीबों के जीवन में बेचैनी भर दी है। उनका पूरा बजट बिगाड़ दिया है। एक अध्ययन में आम आदमी की कमाई का साठ फीसदी हिस्सा केवल घरेलू र्इंधन यानी पेट्रोल, गैस और बिजली पर ही खर्च हो जाता है। तेल की धार ने सामान्य आदमी के आवागमन पर भी असर डाला है। कई बार ऐसा लगता है जैसे तेल कीमतें और महँगाई केवल रेट तय करने की कार्यप्रणाली तक सीमित हैं और इसके प्रति सरकारों की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती। अब केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धमेन्द्र प्रधान ने तेल कीमतों की वृद्धि के मुद्दे पर राज्य सरकारों को टैक्स कम करने की नसीहत दे रहे हैं दूसरी तरफ राज्य सरकारें विशेष तौर पर विरोधी पार्टियों की राज्य सरकारें यह जिम्मेदारी केंद्र पर डाल रही हैं।
तेल कीमतों पर करीब 65 प्रतिशत में से ज्यादा टैक्स लग रहा है। केंद्र भी टैक्स वसूल रहा है और राज्य सरकारें वैट लगा रही हैं। जब से बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी के चुनावों की घोषणा हुई है तब से पेट्रोल डीजल की कीमतें स्थिर हैं जो हर दिन बढ़ती चली आ रही थी। इससे भी यह संदेश स्पष्ट हो रहा है कि पेट्रोल डीजल की कीमत पर सरकारी नियंत्रण ना होने का जो भ्रम फैलाया गया है वह मिथ्या है। सरकार जब चाहती है कीमतों पर अंकुश लगा देती है और जब चाहती है तब मुनाफा बढ़ाने लगती है। भारत सरकार ने स्वयं स्वीकार किया है कि पेट्रोल डीजल के टैक्स संग्रह में 459 प्रतिशत का उछाल आया है। अकेले वर्ष 20-21 में सरकार ने इस पर 2.94 लाख करोड़ का टैक्स वसूला है। यह इस बात का संकेत है कि पेट्रोल और डीजल मुनाफाखोरी के बड़े हथियार बन गए हैं। चूंकि सार्वजनिक परिवहन आज की आवश्यक प्राथमिकता है इसलिए जनता इस मुनाफाखोरी को बर्दाश्त कर रही है।
लोकतंत्रीय राज्य व्यवस्था में पेट्रोल की कीमतों में विस्तार तो समझ आ सकता है लेकिन डीजल की कीमत भी 100 रुपए लीटर को पहुंचना हैरानीजनक है, जो सरकारों की नीतियों पर विचार करने की गुंजाईश पैदा करती है। राशन, सब्जियों और अन्य आवश्यक वस्तुओं की ढुलाई के लिए डीजल की सबसे अधिक खपत होती है इसी तरह कृषि सैक्टर के लिए डीजल का प्रयोग होता है, बिजाई से लेकर सिंचाई तक डीजल की आवश्यकता पड़ती है। डीजल की बढ़ रही कीमतों के कारण इंजन के साथ ट्यूबवैल चलाने वाले किसानों के लिए धान की बिजाई अब बस से बाहर हो गई है। कृषि सैक्टर को बचाने के लिए डीजल की कीमतों पर विचार करना आवश्यक बन गया है। फिलहाल तेल की धार पैनी होती जा रही है और आम आदमी कटने पर मजबूर है। भले ही तेल कीमतें तय करने के लिए डी-कंट्रोलिंग प्रणाली लागू है लेकिन कोई भी प्रणाली सरकार के नीतिगत फैसले से ऊपर नहीं हो सकती इसीलिए आवश्यक कि तेल कीमतों को केवल तेल कंपनियों पर छोड़ने की बजाय सरकार लोकहितैषी नीतियों का निर्माण कर महंगाई को नियंत्रित करे।
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