कानून से ऊपर नहीं कोई भी नेता

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आधार कार्ड मोबाइल फोन से लिंक करवाने के मामले में पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी के तेवर उनकी सुर्खियां बटोरने की राजनीति का हिस्सा है। ममता ने आधार कार्ड लिंक न करने की खुलकर चुनौती दी थी जिसका सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नोटिस लिया है। कोर्ट ने ममता सरकार को फटकार लगाई है कि कोई भी राज्य केंद्र सरकार द्वारा बनाए कानूनों को चुनौती नहीं दे सकता। नि:संदेह कोई व्यक्ति किसी भी कानून की खामियों पर सवाल कर सकता है और उसमें सुधार की मांग भी की जा सकती है, परंतु यह सारा कुछ संवैधानिक तरीके से होना चाहिए, न कि अराजक तरीके से झगड़ा शुरू कर देना चाहिए। ममता की राजनीति का तरीका ही ऐसा रहा है कि वह जोशीले व बगावती अंदाज में विरोध करती है। इससे उनका राष्ट्रीय राजनीति व मीडिया में चर्चित हो जाना आम बात है।

ऐसी पैंतरेबाजी सरकारी कानूनों व योजनाओं के साकारतमक परिणामों के रास्ते में रुकावट बनती है। इसमें कोई शक नहीं कि आधार कार्ड ने भ्रष्टाचार पर कुछ हद तक रोक लगाने के साथ-साथ असल लाभपात्रियों को सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाया है। रसोई गैस व पैंशन जैसी योजनाआें में करोड़ों की संख्या में फर्जी लाभपात्री छू मंत्र हो गए। इससे सरकारी खजाने को भी लाभ हुआ। ममता बैनर्जी को अड़ियल रवैया छोड़कर खुले दिमाग से सोचने की जरूरत है। ममता अपने निजी स्वभाव को सरकारी कार्य में हावी न होने देें। विरोध व अराजक रवैया अलग-अलग चीजें है। संवैधानिक पदों पर बिराजमान नेताओं को किसी भी कानून संबंधी कोई भी टिप्पणी सोच समझकर पूरी संयम से करनी चाहिए।

राजनैतिक स्वार्थों के लिए संवैधानिक व्यवस्था पर बयानबाजी चिंताजनक है। व्यवस्था में किसी परिवर्तन का विरोध बगावती तरीके से नहीं होना चाहिए। कानून प्रति सम्मान की भावना की सबसे पहली मिसाल राजनैतिक नेताओं को पेश करनी चाहिए ताकि अन्य लोग भी उनसे प्रेरणा ले सकें। कोई भी व्यक्ति देश के कानून से ऊपर नहीं हो सकता। कानून बनाने वाले ही कानून का पालन नहीं करेंगे, तो सुधार की उम्मीद नहीं कर सकते।