कट्टरता नहीं, सद्भावना की जरूरत

Fanaticism, Need, Goodwill, India

‘वंदे मातरम्’ महान गीत है, जो देश को प्यार करने वाले लोगों के दिल में सहज ही उठता है लेकिन इस गीत को लेकर जो टकराव के हालात बन रहे हैं वह बेहद चिंताजनक है। इस मामले में पूर्व राज्यपाल अजीज कुरैशी की टिप्पणी बेहद स्टीक है। उन्होंने इस्लाम के नाम पर ‘वंदे मातरम्’ का विरोध करने वालों को यह नसीहत दी कि ‘वंदे मातरम्’ कभी भी इस्लाम के खिलाफ नहीं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ‘वंदे मातरम्’ को धक्के से गंवाने वाले भी दोषी हैं। कुरैशी की बात में दम है। वैसे भी देखा जाए देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जो ‘वंदे मातरम्’ नहीं गाते लेकिन इसका सम्मान करते हैं।

‘वंदे मातरम्’ का विरोध करने वाले लोग धर्म की हाल दुहाई देकर सुर्खियां बटोरने की कोशिश कर रहे हैं। दरअसल देश भक्ति का प्रचार करने के लिए सद्भावना ही सबसे बड़ा स्त्रोत है। देश के लिए मर मिटने वाले देश भक्त सबके सांझा होते हैं। उन पर किसी धर्म का ठप्पा लगाना संकुचित सोच का परिणाम है। यह बड़ी गर्व की बात व राष्ट्रीय एकता का सबूत है कि देश के लिए मर-मिटने वालों में सभी धर्मों के लोग थे। देश भक्ति राष्ट्र के लिए समर्पण भाव है, जिसे फैलाने के लिए प्यार व भाईचारे की जरूरत है। देश के सभी नागरिकों को समानता व सम्मान की भावना से देखने के से उनमें राष्ट्र प्यार की भावना पैदा होगी।

राजनेताओं को इस मामले पर राजनीति करने से संकोच करना चाहिए। पिछले कुछ सालों में कुछ राजनेताओं ने राष्ट्रीय गीत के समर्थन में तो किसी ने विरोध में ऐसी शब्दावली का प्रयोग किया, जिससे वे नेता तो चर्चा में आ गए लेकिन उनकी इस बयानबाजी से समाज में टकराव वाले हालात पैदा हो गए। राजनेता विवादों को उलझाने की बजाए सुलझाने पर बल दें। नेताओं को इस प्रकार की बहस से भी संकोच करना चाहिए जो जनता को बांटने का काम करते हों। राष्ट्रीय एकता की मजबूती ही प्रत्येक राजनीतिक पार्टी का उद्देश्य होना चाहिए। जनता में फूट डालने व आपस में झगड़ा करवाने से देश कमजोर होता है। मजबूत राष्ट्र के लिए सद्भावना व प्यार जरूरी है।