देवेन्द्रराज सुथार। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21-ए में कहा गया है कि 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। हालांकि भारत की साक्षरता दर लगभग 74 प्रतिशत है, जिसका अर्थ है कि एक चौथाई आबादी बुनियादी पढ़ने और लिखने के कौशल से वंचित है। भारत की गरीबी और अशिक्षा एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। दुनिया की सबसे बड़ी आबादी होने के बावजूद भारत एक तिहाई गरीबी का घर है। इस निराशाजनक स्थिति से लड़ने के लिए देश के नेताओं ने कुल सरकारी खर्च का लगभग 10.5 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च किया है। लेकिन लोगों को उनके कल्याण के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं की जानकारी ही नहीं है। 22 साल की हेमंती सेन (Hemanti Sen) को इस समस्या का एहसास तब हुआ जब एक दिन उन्होंने मुंबई के फुटपाथों पर छोटे-छोटे बच्चों को पैसे मांगते और पेन और गुब्बारे बेचते हुए देखा।
हालात के बारे में जानने की उनकी जिज्ञासा ने उनके प्रयासों को ‘जुनून’ में बदल दिया। हेमंती शुरूआत में ‘जुनून’ में 20 बच्चों का नामांकन कराने में सफल रही। शुरूआती दौर में उनके लिए सबसे चुनौतीपूर्ण काम इन बच्चों के माता-पिता को समझाना था। बच्चों के स्कूल जाने के कारण उनसे होने वाली आय खत्म हो गई, जिसके कारण उनके परिवार अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार नहीं थे। काफी प्रयास के बाद हेमंती बच्चों के परिजनों का विश्वास जीतने में सफल रही। अब बच्चों के माता-पिता अपने बच्चों का भविष्य हेमंती (Hemanti Sen) के एनजीओ ‘जुनून’ में देखते हैं। हेमंती अब उन बच्चों को अच्छे से समझती हैं और यही उनकी सफलता का राज है। ‘जुनून’ उन बच्चों में शिक्षा के प्रति जागरूकता लाकर उन्हें शिक्षित करता है जो सरकारी स्कूल होने के बावजूद स्कूल नहीं जाते। लेकिन ये काम उतना आसान नहीं है जितना लगता है।
नगर पालिका स्कूल इन बच्चों को अपने स्कूलों में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। क्योंकि ये बच्चे हर दिन स्कूल नहीं जाते हैं, वे केवल स्कूल से मिलने वाली मुफ्त चीजें लेने आते हैं और दूसरों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं। और अगर 8 साल के बच्चे को अक्षर ज्ञान भी न हो, तो भी स्कूल उन्हें दाखिला देने के लिए तैयार नहीं होते। इसलिए हेमंती उन्हें स्कूल के लिए तैयार करने के लिए प्राथमिक शिक्षा और अच्छे शिष्टाचार सिखाती हैं। उन्होंने रेलवे स्टेशनों के स्काईवॉक पर इन छात्रों के लिए ट्यूशन लेना शुरू कर दिया, जहां ये बच्चे भीख मांगते थे या कुछ नौकरियां करते थे। टीम ‘जुनून’ उन्हें रोज स्कूल छोड़ने और स्कूल से वापस लाने के लिए तैयार करती है और सावधानी बरतती है, ताकि बच्चे किसी भी कारण से स्कूल से न चूकें। ‘जुनून’ के चार केंद्रों में 80 छात्र हैं, जिन्हें हेमंती और कई स्वयंसेवक चलाते हैं। इसके अलावा ‘जुनून’ बच्चों को दोपहर का भोजन भी उपलब्ध कराता है।