आर्थिक मोर्चे पर नया साल चुनौतीपूर्ण

Economy

देश में अधिकतर लोगों के लिए बुनियादी मुद्दा आजीविका से जुड़े हुए रोटी, कपड़ा और मकान हैं और प्रत्येक सरकार जानती है कि इन बातों का लोगों के जीवर पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भाजपा सरकार ने अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने के बजाय हिन्दुत्व के मुद्दे पर बल दिया है। जबकि सरकार को अर्थव्यवस्था को उबारने पर पूरा ध्यान देना चाहिए था। किंतु नागरिकता संशोधन कानून लाकर उसने एक ऐसा संकट पैदा कर दिया जिससे बचा जा सकता है। रेटिंग एजेंसी फिंच के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 4.6 प्रतिशत रहने की संभावना है। हाल ही में एक राष्ट्रीय दैनिक को दिए गए साक्षात्कार में अंतर्राष्ट्रीय मुदा कोष की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने कहा कि हालांकि वर्ष 2020 वर्ष 2019 से अच्छा रहेगा किंतु उन्होने आगाह किया है कि इस विषम स्थिति से निपटने में 5-6 वर्ष लग जाएंगे।

गीता गोपीनाथ के अनुसार वित्तीय क्षेत्र में गैर-निष्पादनकारी आस्तियां बहुत अधिक हैं इसलिए इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। हालांकि दिवालियापन से संबंधित कानून के लागू होने के बाद गैर-निष्पादनकारी आस्तियों की स्थिति में सुधार हुआ है। तथापि सबसे बड़ी चिंता निवेश का अभाव है जो मंदी के दौर से गुजर रही अर्थव्यवस्था को उबारने क लिए आवश्यक है। इस संबंध में मोदी की उस बात का उल्लेख करना आवश्यक है जिसमें उन्होंने कहा था कि अर्थव्यवस्था वर्तमान मंदी के दौर से मजबूत होकर उभरेगी। ऐसोचैम के शताब्दी समारोह में उन्होंने निजी क्षेत्र से आग्रह किया कि वृद्धि दर को बढाने के लिए वे साहसिक निवेश निर्णय लें और आशा व्यक्त की कि भारत वर्तमान स्थिति से एक मजबूत राष्ट्र के रूप में उभरेगा। उन्होंने बताया कि अवसंरचना के निर्माण पर 100 लाख करोड़ रूपए और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सुधार के लिए 25 लाख करोड़ रूपए खर्च किए जाएंगे। जिससे वर्ष 2024 तक हमारी अर्थव्यवथा दोगुनी होकर 5 ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था बन जाएगी।

मोदी के इस बयान से जो बात सामने आती है वह यह है कि सरकार यह निवेश तीन वर्ष की अवधि में करेगी और निजी क्षेत्र निवेश करने का इच्छुक नहंी है। प्रश्न यह भी उठता है कि इस राशि में से 2020-21 में कितनी राशि खर्च की जाएगी और निजी क्षेत्र निवेश करने का इच्छुक क्यों नहीं है। यह भी स्पष्ट है कि इस वित्तीय वर्ष में संसाधनों की कमी के कारण सरकार को लाभ अर्जित करने वाली बीपीसीएल जैसी कंपनियों का विनिवेश करना पड़ा। कंपनी के विस्तार कार्यक्रम को देखते हुए यह एक गलत कदम है। अब इसके निजीकरण से एक लाभ अर्जित करने वाली कंपनी से सरकार हाथ धो बैठेगी। तथापि वर्तमान आर्थिक स्थिति में भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में सुधार आया है। विदेशी मुद्रा भंडार रिकार्ड स्तर पर है। सरकारी क्षेत्र के बैंक धीरे-धीरे पेशेवर प्रवतियां अपना रहे हैं। शायद सरकार को अहसास हो गया है कि सरकारी बैंकों के मामले में अत्यधिक हस्तक्षेप अवांछित है और उन्हें अधिक स्वायत्तता दी जानी चाहिए।

नवाचार और प्रोत्सहन की बातें भी की जा रही हैं। नवााचर संबंधी कोई बड़ी परियोजनाएं सामने नही आयी हैं किंतु देश के विभिन्न भागों में ऐसी छोटी-छोटी परियोजनाएं चल रही हैं जो अर्थव्यवस्था को आगे बढाने के लिए पर्याप्त है। राज्यों को भी ग्रामीण विकास, रोजगार सृजन और स्थानीय क्षेत्र विकास की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए 5-7 जिलों को सर्वांगीण विकास के लिए चुनना होगा। साथ ही विशेषकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों पर ध्यान देना होगा क्योंकि इन उपक्रमों में रोजगार सृजन की बहुत संभावनाएं हैं और ये ग्रामीण विकास की प्रक्रिया में गति ला सकते हैं। सरकार बड़े उद्योगपतियों को अनेक सुविधाएं दे रही है किंतु इस रणनीति में बदलाव करना होगा और सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उपक्रमों को वित्तीय और प्रौद्योगिकी सहायता उपलब्ध करानी होगी।

सैद्धांतिक रूप से इस सरकार ने ग्रामीण विकास पर बल दिया है किंतु व्यावहारिक रूप से देखना है कि यह कितना सफल होता है और किस तरह यह ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति में सुधार लाता है और लोगों को आजीविका के अवसर उपलब्ध कराता है। राज्यों को भी कुशासन और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाकर अपनी भूमिका निभानी होगी। किंतु इसमें सबसे बड़ी अड़चन सरकार के समक्ष संसाधनों की कमी है। आर्थिक विकास पर चर्चा करते हुए हम अक्सर कृषि क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका को भूल जाते हैं जो कृषक समुदाय को आजीविका और आय के अवसर उपलब्ध कराता है। साथ ही कृषि उत्पादन 130 करोड़ लोगों को भोजन उपलब्ध कराने और महंगाई पर अंकुश रखने के लिए आवश्यक है। कृषि उत्पाादों का विविधीकरण किया जाना चाहिए और ऐसी फसलों पर बल दिया जाना चाहिए जिनमें निर्यात के अवसर हों।

वर्तमान में अर्थव्यवस्था की चुनौती एक गंभीर चुनौती है और इसके लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। सभी संबंधित पक्षों विशेषकर निचले स्तर पर पंचायतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बदलाव आए जो कि राजनीतिक और आर्थिक विकेन्द्रीकरण के लिए आवश्यक है। समाज में भी उथल-पुथल मची हुई है और इसमें स्थिरता लाने की आवश्यकता है। साथ ही संस्थानों और संगठनों को मजबत कर विकास की प्रक्रिया में तेजी लायी जा सकती है अ‍ैर यह जिम्मेदारी सत्तारूढ़ राजनीतिक दल की है कि वह सामाजिक, आथिर्क विकास सुनिश्चित करे और ऐसा बदलाव लाए जिससे देश में गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की स्थिति में सुधार हो क्योंकि बढ़ती विषमता सतत और संतुलित विकास के मार्ग में अड़चन बनती जा रही है।

आज का महत्वाकांक्षी युवा चाहता है कि हमारा देश विकसित देशों की श्रेणी में आए जहां पर हर किसी को समान अवसर और बेहतर जीवन दशाएं मिले किंतु जैसा कि हर साल रिपोर्टों से पता चलता है कि राजनीकि वर्ग द्वारा गरीब और पिछड़े वर्गों की उपेक्षा की जा रही है और वह बड़े उद्योगपतियों तथा उच्च मध्यम वर्ग के हितों पर ध्यान देती है। आशा की जाती है कि वर्ष 2020 की शुरूआत शुभ होगी। क्या नए वर्ष में एक सुदृढ विकास नियोजन और प्रक्रिया देखने को मिलेगी जिसमें जनता की भागीदारी हो और जो करोड़ों वंचित लोगों को समृद्धि के मार्ग पर आगे बढा सके। अर्थव्यवस्था को मजबूत करने तथा सवार्गीण विकास के लिए आवश्यक है कि सही रणनीति का चयन किया जाए। विकास प्रक्रिया में आगे बढने के लिए सामाजिक न्याय भी एक मुख्य कारक है। सरकार को महात्मा गांधी की इस चेतावनी पर ध्यान देना चाहिए: भारत तब तक सच्चे रूप में स्वतंत्र नहीं होगा जब तक राज्य के स्वरूप मे ही बदलाव न किया जाए।
धुर्जति मुखर्जी

 

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