नयी दिल्ली, 24 फरवरी (एजेंसी)
अागामी आम चुनाव में सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की ही नहीं बल्कि एक परिवार के प्रभुत्व वाले राजनीतिक दलों में उभरे नये नेतृत्व की भी परीक्षा होगी। पिछले पांच वर्ष में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), द्रमुक और पीडीपी जैसे कई दलों में अलग-अलग कारणों से नेतृत्व परिवर्तन हुआ है और इन दलों की कमान नयी पीढ़ी के हाथों में आ गयी है। परिवार की विरासत संभालने वाले नये उत्तराधिकारियों की अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनाव में कड़ी परीक्षा होगी और पता चलेगा कि उनमें कितना दम खम और राजनीतिक कौशल है।
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी राजनीति में तो एक दशक से अधिक समय से सक्रिय है लेकिन इस आम चुनाव में कांग्रेस पहली बार पूरी तरह से उनके नेतृत्व में मैदान में उतरेगी। गांधी पिछले लोकसभा चुनाव में भी पार्टी के स्टार प्रचारक थे लेकिन उस समय पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी थीं। उस चुनाव में कांग्रेस काे करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था और वह सिर्फ 44 सीटें जीत पायी थी। गांधी ने दिसंबर 2017 में अध्यक्ष पद संभाला था जिसके बाद पार्टी तीन राज्यों में सत्ता में वापसी करने में सफल रही है। आगामी चुनाव के लिए रणनीति बनाने से लेकर उम्मीदवारों के चयन तक का पूरा अधिकार उन्हीं के पास है। उनकी बहन प्रियंका गांधी भी अब सक्रिय राजनीति में कूद पड़ी हैं। इस चुनाव में दोनों भाई बहन की प्रतिष्ठा दांव पर होगी।
लोकसभा चुनाव की दृष्टि से सबसे अहम राज्य उत्तर प्रदेश में ये चुनाव सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिये कड़ी परीक्षा साबित होंगे। पार्टी के अंदर कलह के बीच जनवरी 2017 में अध्यक्ष पद संभालने वाले अखिलेश यादव उसी वर्ष हुये राज्य विधानसभा चुनाव में सपा की नैया पार नहीं लगा पाये थे। उस समय उन्होंने कांग्रेस से मिलकर चुनाव लड़ा था। इस बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का सामना करने के लिए सपा ने बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन किया है।
पार्टी का 1992 में गठन करने वाले उनके पिता मुलायम सिंह यादव ने उनके इस कदम पर नाराजगी जतायी है । मुलायम के भाई शिवपाल यादव ने तो सपा छोड़कर पहले ही नया दल बना लिया है। पिछले लाेकसभा चुनाव में सपा सिर्फ पांच सीटें जीत पायी थी। इन सीटों पर यादव के परिवार के सदस्यों ने ही जीत हासिल की थी। उत्तर प्रदेश से लगे और राजनीतिक रुप से महत्वपूर्ण बिहार में इस बार राष्ट्रीय जनता दल की कमान युवा नेता तेजस्वी यादव के हाथों में होगी।
चारा घाेटाले में लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद से वह ही पार्टी का कामकाज देख रहे हैं। लालू प्रसाद यादव यदि जमानत पर रिहा नहीं हो पाये तो 1997 में राजद का गठन करने के बाद पहली बार वह लोकसभा चुनाव में सक्रिय भूमिका नहीं निभा सकेंगे। बिहार के पड़ोसी राज्य झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन राज्य के प्रमुख दल झारखंड मुक्ति मोर्चा का बड़ा चेहरा बन गये हैं। भाजपा के विरुद्ध गठबंधन तैयार करने में वह अहम भूमिका निभा रहे हैं।
आगामी चुनाव में उनका नेतृत्व भी कसौटी पर होगा। दक्षिण भारत के एक प्रमुख राज्य तमिलनाडु में सबकी नजरें राजनीति के दो दिग्गज एम करुणानिधि और जे जयललिता के उत्तराधिकारियों पर होंगी। वर्ष 1969 से पिछले साल तक द्रमुक का नेतृत्व संभालने वाले करुणानिधि के निधन के बाद पार्टी की बागडोर अब पूरी तरह से उनके पुत्र एम के स्टालिन के हाथों में है। पिछले आम चुनाव में द्रमुक एक भी सीट नहीं जीत पायी थी। अगला चुनाव वह कांग्रेस के साथ मिल कर लड़ने जा रही है।
आतंकवाद के चलते सुर्खियों में रहने वाले जम्मू कश्मीर के दो प्रमुख नेताओं उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के लिए भी आगामी चुनाव बहुत महत्वपूर्ण होगा। अब्दुल्ला जहां अपने पिता फारुख अब्दुल्ला के साथ मिलकर नेशनल कांफ्रेंस का नेतृत्व कर रहे हैं वहीं 2016 में पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की मृत्यु के बाद पीडीपी की कमान पूरी तरह से उनकी पुत्री महबूबा के हाथों में अा गयी है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से लगे हरियाणा की एक प्रमुख पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल में उत्तराधिकार काे लेकर पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के परिवार में छिड़ी जंग काफी समय से चर्चा में हैं। चौटाला के पोते दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी के नाम से अलग पार्टी बना ली है। उनकी पार्टी हाल में हुये जींद उपचुनाव में दूसरे नंबर पर रही थी। वह पिछला लाेकसभा चुनाव इंडियन नेशनल लोकदल के उम्मीदवार के रुप में हिसार से जीते थे। आगामी चुनाव में उन पर भी नजर रहेगी।
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