प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सन् 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने का वायदा फिर दोहराया है। यह वायदा पुराने वायदे पूरे करने की बजाय उसे चमकाकर नया रूप देना है। एनडीए ने अपने चुनाव मनोरथ पत्र में स्वामी नाथन कमिशन की सिफारिशों को लागू करने का वायदा किया था जो देश भर के किसान संगठनों की मांग भी थी। यह वायदा इसी सरकार से पूरा होना चाहिए था। यदि स्वामीनाथन कमिशन की सिफारिशें लागू हो जातीं तो खेती संकट काफी हद तक दूर हो सकता था।
मौजूदा समय किसानों को आमदनी दोगुना होने के फिकर से ज्यादा फिकर खर्चे पूरे करने और थोड़ी बहुत आमदनी बढ़ाने का है। दोगुनी-तिगुनी आमदनी के वायदे प्रशासन में शगूफे बन गए हैं। आज किसान खुदकुशी कर रहे हैं। केन्द्र सरकार ही एक राज्य में वही फसल अन्य राज्यों के मुकाबले एक हजार रुपये मंहगी खरीद रही है। सारे देश के लिए एक खेती नीति क्यों नहीं बन रही है।
फिर भी यदि सरकार की इच्छा किसानों की आमदनी दोगुना करने की है तो इसके लिए सन् 2022 तक पूरे पांच वर्षों का इंतजार क्यूं? कर्मचारियों का डीए तथा अन्य भत्ते हर साल बढ़ाये जाते हैं फिर किसान को लंबे समय इंतजार करने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए। कहने को किसानों को ‘अन्नदाता’ जैसे विशेषण से नवाजा जाता है पर किसान की हालत की तरफ गौर नहीं कि या जा रहा। यदि 2022 के राजनीति मायने देखे जाएं तो यह मौखिक चुनाव घोषणा पत्र ही है क्योंकि आमदनी दोगुना करने के वायदे से लोकसभा चुनाव 2019 के लिए वोट मांगने का मकसद स्पष्ट है।
नि:संदेह किसानों को कर्ज माफी ही खेती संकट का एकमात्र हल नहीं। इसके लिए खेती के ढांचे को मजबूत करना जरूरी है, जिस में जमीन की सेहत को लेकर सस्ते बीज, खाद के साथ-साथ कीटनाशकों का जरूरत अनुसार उपयोग तथा मार्केटिंग पर जोर देना जरूरी है पर स्वामीनाथन कमिशन रिपोर्ट पर सरकार का स्पष्टीकरण नहीं आना हैरानीजनक है।
किसान की जरूरतों को सरकारी कर्मचारियों की तरह देखने की आवश्यकता है। खेती फसलों के भाव से ना तो किसान संतुष्ट हैं तथा ना ही वो खेती विशेषज्ञ जिनसे सरकार सलाह लेती है। खेती संबंधी फै सले राजनीति नुक्तों की बजाय अर्थ शास्त्री नुक्ते से लिए जाएं तो खेती संकट का हल निकल सकता है। किसानों को दोगुना या तिगुनी आमदनी की जरूरत नहीं बल्कि खेती फसलों को थोक भाव कीमत सूचक से जोड़ने की है। खेती संकट के हल के लिए पांच वर्ष मोंने किसी भी तरह जायज नहीं।