पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज के चिकित्सों की बेमिसाल उपलब्धि
- बच्चे को बेहोश करना था बहुत बड़ा चैलेंज
- संस्थान में आए नए उपकरणों की बदौलत मिली कामयाबी
रोहतक (सच कहूँ/नवीन मलिक)। पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज के चिकित्सों के एक सप्ताह के अंदर दो रिकार्ड सर्जरी करके दिखा कि पीजीआईडीएस पूरे देश में टॉप तीन कॉलेजों में क्यों गिना जाता है। पीजीआईडीएस के ओरल एंड मैक्सिलोफेसियल सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. विरेंद्र व उनकी टीम ने जन्म से दोनों जबड़े जुड़े बच्चे का अपने आप में हरियाणा में पहला अनोखा आॅपरेशन किया है। इस अनोखी सर्जरी के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए डॉ. विरेंद्र सिंह ने बताया कि गत माह उनके पास एक नवजात शिशु ओपीडी में लाया गया था, जिसका जन्म पीजीआईएमएस में ही हुआ था। जब बच्चे की जांच की गई तो पता चला कि बच्चे के दोनों जबड़े जन्म से ही जुड़े हुए हैं, ऐसे में बच्चे के ऑप्रेशन का फैसला लिया गया, लेकिन उसमें वजन व खून की कमी के चलते वह बेहोश नहीं किया जा सकता था, इसलिए उस समय ऑप्रेशन करना संभव नहीं था।
जिसके चलते उसकी सर्जरी को आगे बढ़ाया गया ताकि ऑप्रेशन के दौरान बच्चे की जान का खतरा ना रहे। डॉ. विरेंद्र सिंह ने बताया कि जब बच्चा दो माह का हो गया तो उनके साथ उनके विभाग के डॉ. अमरीश व डॉ. राजीव के साथ निश्चेतन विभाग के डॉ. एस.के. सिंगल, डॉ. सुशीला तक्षक, डॉ. प्रशांत, व डॉ. दीपिका की टीम बनाकर बच्चे के आॅप्रेशन का फैसला लिया गया। डॉ. अमरीश ने बताया कि बच्चे का ऑप्रेशन करीब 3 घंटे तक चला। उन्होंने बताया कि ऊपर नीचे का जबड़ा अलग-अलग काट कर विभाजित किया गया तथा बीच में फ्लैप लगा दिया ताकि यह आसानी से फिर ना जुड़े। डॉ. अमरीश ने बताया कि यदि फ्लैप नहीं लगाया जाता तो यह दो माह बाद फिर जुड़ जाता। उन्होंने बताया कि बच्चा अभी स्वस्थ है और अब वह अच्छे से दूध पी पा रहा है, जिसके चलते उसका वजन भी बढ़ऩा शुरू हो गया है।
डॉ. अमरीश ने कहा कि यह हरियाणा में पीजीआईएमएस में अपनी तरह का पहला ऐसा आप्रेशन है। डॉ. प्रशांत कुमार ने बताया कि ऑप्रेशन के दौरान निश्चेतन विभाग की टीम के सामने सबसे बच्चे को बेहोश करना अपने आप में एक बहुत बड़ा चैलेंज था, क्योंकि बच्चे का मुंह बंद था और नाक का रास्ता छोटा था, वहीं ऊपर के तालू में भी छेद था। बच्चे का जबड़ा जुड़े होने के चलते नलकी डालने में परेशानी आ रही थी और इसमें संस्थान में आए नए उपकरणों का सहारा लिया गया, जिसमें फिट कैमरे के माध्यम से एयरवे चैक किया गया, फिर नलकी डाली गई, जिसकी सहायता से बच्चे को एनस्थिसिया दिया गया और दोनों विभागों की टीम ने एक सफल ऑप्रेशन करने में कामयाबी हासिल की।
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