पंजाब की जनता ने आम आदमी पार्टी को 117 में से 92 सीटों का बहुमत सौंपकर एक नए बदलाव को चुना है। जिस प्रकार से कांग्रेस और अकाली दल जैसी पारंपरिक पार्टियों का सफाया हुआ है, वह बताता है कि पंजाब के लोगों को आम आदमी पार्टी से बहुत ज्यादा उम्मीदें तो हैं ही, वहीं चुनौतियां भी हैं। पहली चुनौती तो बिजली को लेकर ही है, जहां पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को केंद्र सरकार ने बिजली फंड देने से पहले 85 हजार प्रीपेड मीटर लगाने का टास्क दे दिया। केंद्र के उक्त आदेश के पीछे कहीं न कहीं केंद्र सरकार यह मानती है कि पंजाब में बड़े स्तर पर बिजली चोरी हो रही है। यही नहीं कृषि सेक्टर के लिए भी मुफ्तखोरी की सुविधा जारी है। राज्य की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। यह कर्जे के बोझ से लदा है। इस पर 2 लाख 82 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। इतने बड़े कर्ज के बाद बिजली के अलावा पानी के साथ ही अच्छी शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं की गारंटी पूरी करना बहुत बड़ी चुनौती होगी। यही नहीं पंजाब में खास तौर पर 18 साल से ऊपर की उम्र की सभी महिलाओं को 1000 रुपये मासिक देने, हर गांव और कस्बे के वार्डों में मोहल्ला क्लीनिक बनाने जैसे वादे पूरे करने इतने आसान नहीं, जितने सुनने में लगते हैं। जाहिर है, यह स्थिति भगवंत मान के नेतृत्व में बनने वाली आम आदमी पार्टी की इस सरकार पर जिम्मेदारियों का अतिरिक्त बोझ डालती है। वैसे भगवंत मान सरकार ने भ्रष्टाचार पर नकेल कस, कई ग्रांटों को बंद कर व विधायकों की एक से अधिक पेंशनों को भी बंद करने का ऐलान किया, जो सभी सराहनीय फैसले रहे हैं। उक्त फैसले पंजाब के खजाने को मजबूत तो करेंगे ही, इससे सुधार भी होगा। इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल भी यह बयान दे चुके हैं कि पंजाब में भ्रष्टाचार जड़ों तक फैला हुआ है। मुख्यमंत्री भगवंत मान के हेल्पलाइन पर शिकायतें मिलने के तुरंत बाद कार्रवाई होने पर भ्रष्टाचार घटेगा और खजाने में पैसा आएगा। ऐसे में देखना होगा कि नई सरकार अपने वायदों को पूरा करने की कौन सी राह निकालती है। कुल मिलाकर देखा जाए तो आम आदमी पार्टी की नई पारी पूरे देश की राजनीति में एक नए प्रयोग के रूप में देखी जा रही है। इसकी कामयाबी या नाकामी के गहरे निहितार्थ होंगे।
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