विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विश्व में कोविड-19 महामारी के कारण बच्चों के टीकाकरण (डीटीपी) की मुहिम के विफल होने पर चिंता जाहिर की है। इस मुहिम को हर हाल में जारी रखना आवश्यक था, संगठन की चिंता जायज है क्योंकि बच्चों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी सरकारों की है। महामारी के भय में माता-पिता, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में रहते लोग बच्चों को अस्पताल नहीं लेकर जा रहे। हर किसी के मन में यह डर है कि कहीं बच्चे कोरोना के शिकार न हो जाएं। सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा भी इस दौरान विज्ञापनों के माध्यम से कोविड-19 से बचाव संबंधी प्रचार किया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग सहित पुलिस विभाग भी कोरोना की रोकथाम में जुटा हुआ है। इन परिस्थितियों में जागरूकता की कमी और स्टाफ की समस्या है।
कोरोना काल में ही यह स्पष्ट हो गया था कि देश के अस्पतालों में स्टॉफ की भारी कमी है, क्योंकि विभिन्न राज्यों द्वारा डॉक्टरों व अन्य पैरा-मेडिकल स्टॉफ की भर्ती के ऐलान किए जा रहे हैं। यह बात देश के स्वास्थ्य सम्बन्धित नीतियों की कमजोरी को उजागर करती है कि सरकारों द्वारा समय पर डॉक्टरों और पैरा-मेडिकल स्टाफ की भर्ती नहीं की गई। आशा वर्करों, फार्मासिस्ट स्टाफ तो महामारी दौरान सरकारों के खिलाफ रोष प्रदर्शन करता देखा गया। यदि स्टाफ पूरा हो तब महामारी से बचाव के साथ-साथ सामान्य मैडीकल सेवाएं भी जारी रखी जा सकती हैं। दरअसल विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीकाकरण मुहिम स्वास्थ्य सेवा के इतिहास में बड़ी उपलब्धि थी। इसी मुहिम के कारण ही पोलियो जैसे रोग पर काबू पाया जा सका था। टीकाकरण से काली खांसी, डिप्थीरिया और टैटनस जैसे रोगों से मुक्ति मिली थी। नि:संदेह कोरोना महामारी से लड़ना भी एक संघर्षपूर्ण लड़ाई है, फिर भी सामान्य मेडिकल सेवाओं को दरूस्त रखने के अलावा जन स्वास्थ्य की कोई गारंटी नहीं। बच्चों को बीमारियों से बचाव के लिए टीकाकरण की मुहिम को पूरी दृढ़ता से शुरू करना होगा। केंद्र व राज्य सरकारों को चाहिए कि महामारी के दौरान नई पीढ़ी के स्वास्थ्य की गारंटी के लिए विज्ञापनों द्वारा प्रचार करने और विशेष टीमें बनाकर बच्चों का टीकाकरण किया जाए।
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