केंद्र सरकार ने कोविड-19 महामारी के दौरान दो करोड़ रुपए तक मकान निर्माण, क्रेडिट कार्ड बकाया, शिक्षा व वाहनों पर लोन लेने वालों को लोन के ब्याज पर ब्याज वसूली को माफ कर दिया लेकिन कृषि को इस माफी के दायरे से बाहर रखा गया। दरअसल ब्याज पर ब्याज माफी का आधार उन आर्थिक रिपोर्टों को बनाया गया है जिनमें महामारी दौरान केवल कृषि को छोड़कर अन्य सभी सैक्टरों को प्रभावित समझा गया।
नि:संदेह महामारी में कृषि की विकास दर में कोई ज्यादा गिरावट नहीं आई, लेकिन कृषि के अंतर्गत उन किसानों के नुकसान पर कोई विचार नहीं किया गया जो नई तकनीक व पारंपरिक फसलों से हटकर अलग कृषि कर रहे हैं। धान की फसल, मक्का, बाजरा व गवारे जैसी फसलों के काश्तकार महामारी में कोई ज्यादा प्रभावित नहीं हुए, लेकिन जो किसान फूलों व फलों की कृषि के साथ-साथ डेयरी का धंधा कर रहे हैं उन्हें लॉकडाउन में यातायात नहीं चलने के कारण भारी नुकसान झेलना पड़ा। पंजाब हरियाणा के छोटे व बड़े शहरों में फूलों की न तो खपत व न ही कोई मंडी है। कुछ मेहनती किसान फूलों की फसल दिल्ली व अन्य शहरों में जाकर बेचते थे। लॉकडाउन में यातायात बाधित होने के कारण किसानों ने हरी भरी फसल को खेत में ही नष्ट कर दिया था। इसी प्रकार हजारों किसानों ने कर्ज लेकर पॉली हाऊस बनाकर सब्जियों की खेती की थी जो सप्लाई नहीं हो सकी।
इसी प्रकार डेयरी का धंधा करने वाले किसानों ने कहीं दूध को सस्ते रेट में बेच दिया या फिर खराब हो गया। कई शहरों में डेयरी मालिकों ने 300 के करीब प्रति किलोग्राम बिकने वाला पनीर 100 रुपए किलो में बेच दिया था। इसी प्रकार मधु-मक्खी पालकों को भी भारी नुक्सान हुआ। बदलते मौसम के कारण मक्खियों के छत्तों को दूसरे क्षेत्रों में लेकर जाना पड़ता है, जो यातायात नहीं चलने के कारण लॉकडाउन में प्रभावित रही। शहद के उत्पादन पर भी प्रभाव पड़ा। ऐसे किसानों व डेयरी मालिकों को भी भारी नुकसान हुआ। केंद्र व राज्य सरकार किसानों को गेहूँ-धान की फसल से बाहर निकलने के लिए बड़े कार्यक्रम चला रही और इनके लिए अलग फंड भी आरक्षित रखे हैं, इसीलिए यह आवश्यक है कि तकनीकी कृषि करने वाले किसानों को उनके व्यापार से जोड़कर रखें व उन्हें उत्साहित करने के लिए राहत दी जाए। नवोदित कृषि करने वाले मेहनती किसान लाखों किसानों के लिए प्रेरणादायक हैं। केंद्रीय कृषि मंत्रालय व राज्य के कृषि मंत्रियों को किसानों की सुध लेनी चाहिए।
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